यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर रोजगार की बात सारी पार्टियां क्यों कर रही है! आम चुनाव में धर्म और जाति से लेकर तमाम तरह के मुद्दे उठाकर पक्ष-विपक्ष ने एक-दूसरे को घेरने का प्रयास किया है। लेकिन, इस चुनाव में यह भी पहली बार देखा जा रहा है कि रोजगार का मुद्दा प्रमुखता से सामने आया है और सभी दलों को इस पर बात करनी पड़ रही है। युवा खासकर पहली बार वोट देने वाली पीढ़ी का साफ कहना है कि अब वक्त आ गया है, जब रोजगार के सवाल पर मतदान किया जाए। दरअसल, हाल के बरसों में जब से युवा वोटर का हस्तक्षेप राजनीति में बढ़ा है, तब से रोजगार पर बात करना और इसे अपनी मुख्य राजनीतिक थीम में लाना सभी दलों के लिए जरूरी-सा हो गया है। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. ने रोजगार को अपना मुख्य चुनावी अजेंडा बनाया है। गठबंधन का कहना है कि अगर उसकी सरकार बनती है, तो सबसे पहला काम होगा 30 लाख सरकारी नौकरी देने की दिशा में। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव सहित विपक्ष के अधिकतर नेता अपनी हर सभा में इस बारे में बात कर रहे हैं। इसका असर जमीन पर भी दिख रहा है।
रोजगार पर बात करने से विपक्ष को दो फायदे हो रहे हैं। पहला फायदा तो यह कि राष्ट्रवाद या हिंदुत्व से अलग अपनी एक दूसरी सियासी पिच बनाने में सफल हुए हैं। दूसरा फायदा है- सबसे बड़े वोट बैंक यानी युवाओं तक पहुंच। पिछले दो आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुआई में युवा वोटर्स पर BJP ने पकड़ बनाए रखी थी। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि मोदी सरकार के दूसरे टर्म में सार्वजनिक मंचों से सबसे ज्यादा रोजगार और आर्थिक मसलों से जुड़े मुद्दे उठ रहे हैं। कोविड के बाद यह मसला और मुखर हुआ है। पिछले दिनों पेपरलीक और नौकरियों को लेकर यूपी से बिहार तक स्टूडेंट्स ने आक्रामक आंदोलन किया। इनमें से कई मामलों में सरकार को झुकना पड़ा।
विपक्ष के प्रचार में सबसे ज्यादा फोकस है रोजगार पर। प्रचार का करीब एक चौथाई हिस्सा सिर्फ नौकरियों पर है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव ने NBT से बातचीत में कहा था कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने रोजगार के नाम पर वोट मांगा तो मिला। इसके बाद वह जितने भी वक्त तक सरकार में रहे, उन्होंने लोगों को नौकरियां दीं। इसी वजह से इस बार आम चुनाव में भी उन्हें युवाओं का समर्थन मिल रहा है।
ऐसा नहीं है कि BJP ने इस मुद्दे पर विपक्ष को फ्री पास दे दिया है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी सरकार और पार्टी की ओर से युवाओं से जुड़ रहे हैं। NBT के साथ बातचीत में भी उन्होंने रोजगार से जुड़े सवाल पर कहा था, ‘पिछले 10 वर्षों में रोजगार के अनेक नए अवसर बने हैं। लाखों युवाओं को सरकारी नौकरी मिली है। प्राइवेट सेक्टर में रोजगार के नए अवसर आए। EPFO के मुताबिक, पिछले सात साल में 6 करोड़ नए सदस्य इसमें जुड़े हैं। PLFS का डेटा बताता है कि 2017 में जो बेरोजगारी दर 6% थी, वह अब 3% रह गई है।’ पीएम ने कहा था, ‘हमारी माइक्रो फाइनैंस की नीतियां कितनी प्रभावी हैं, इस पर SKOCH ग्रुप की एक रिपोर्ट आई है। यह रिपोर्ट कहती है कि पिछले 10 साल में हर वर्ष 5 करोड़ पर्सन-ईयर रोजगार पैदा हुए हैं। आज देश में सवा लाख से ज्यादा स्टार्टअप्स हैं। इनसे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर बन रहे हैं। हमने अपनी सरकार के पहले 100 दिनों का एक्शन प्लान तैयार किया है। उसमें हमने अलग से युवाओं के लिए 25 दिन और जोड़े हैं। हम देशभर से आ रहे युवाओं के सुझाव पर गौर कर रहे हैं और नतीजों के बाद उस पर तेजी से काम शुरू होगा।’
जानकारों का कहना है कि मुद्दा उठने और उस पर किसी दल को वोट मिलने में फर्क है। चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख की एजेंसी के ओपिनियन पोल में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा थी। वह बताते हैं, ‘पिछले कुछ बरसों से लगातार यह बात सामने आई कि आर्थिक मुद्दा आमजन के सामने गंभीर हुआ है। लेकिन, इसे अपने पक्ष में मोड़ने के लिए कई फैक्टर की जरूरत होती है।’ वह कहते हैं कि महंगाई या बेरोजगारी के नाम पर ही सरकार को नहीं घेरा जा सकता, बल्कि इसके लिए यह बताना पड़ता है कि सत्ता पक्ष कैसे जिम्मेदार है। अगर इन मुद्दों पर चुनौती देनी है तो विपक्ष को सिर्फ शिकायत नहीं, विकल्प और विजन के साथ आना होगा।