Friday, October 18, 2024
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आखिर भारत से क्यों तिलमिलाया अमेरिका?

हाल ही में अमेरिका भारत से तिलमिला उठा है! भारत के ईरानी बंदरगाह चाबहार को संचालित करने के लिए 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से अमेरिका तिलमिला गया है। अनुबंध के कुछ घंटे बाद ही अमेरिका ने भारत को ईरान के साथ डील के लिए प्रतिबंध की धमकी दी है। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है कि ईरान के साथ डील करने वाले को प्रतिबंध से सावधान रहना चाहिए। सोमवार को भारत और ईरान ने रणनीतिक चाबहार पोर्ट को लेकर अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके बाद 10 साल के लिए इस बंदरगाह के संचालन का अधिकार मिल गया है। 10 साल बाद ये अनुबंध स्वतः आगे बढ़ जाएगा। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने भारत-ईरान डील को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, ‘कोई भी जो ईरान के साथ साथ व्यापार सौदों को अंजाम दे रहा है, उन्हें उन संभावित प्रतिबंधों के खतरों के बारे में पता होना चाहिए, जिसके वे करीब जा रहे हैं।’ सोमवार को भारत के शिपिंग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और उनके ईरानी समकक्ष की मौजूदगी में इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईजीपीएल) और ईरान के पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन ने दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

ओमान की खाड़ी के पास ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह को भारत विकसित कर रहा है। भारत क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह पर जोर दे रहा है। रणनीतिक बंदरगाह को पाकिस्तान में चीन की मदद से विकसित किए जा रहे ग्वादर बंदरगाह के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। चाबहार बंदरगाह और ग्वादर के बीच समुद्र के रास्ते सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी है।यह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण व्यापार धमनी के रूप में कार्य करता है।’ सोनोवाल ने कहा, ‘इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने से चाबहार बंदरगाह की व्यवहार्यता और दृश्यता पर कई गुना प्रभाव पड़ेगा।’इसके रास्ते भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच हासिल होगी और पाकिस्तान को बायपास करने में सक्षम होगा। इसके पहले भारत को अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान की जरूरत पड़ती थी। इसके साथ ही इस रणनीतिक बंदरगाह को पाकिस्तान में चीन की मदद से विकसित किए जा रहे ग्वादर बंदरगाह के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। चाबहार बंदरगाह और ग्वादर के बीच समुद्र के रास्ते सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी है। इसे आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) से जोड़ने की योजना है। 7200 किलोमीटर लंबा ये गलियारा भारत को ईरान, अजरबैजान के रास्ते होते हुए रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से जोड़ेगा।

इस पोर्ट का महत्व भारत के लिए इससे भी समझा जा सकता है कि चुनाव के व्यस्त समय के बीच मोदी सरकार ने अपने मंत्री को इस डील के लिए ईरान भेजा था। समझौते पर हस्ताक्षर के साथ दोनों देशों ने चाबहार में दीर्घकालिक साझेदारी की नींव रखी है। समझौते के तहत, चाबहार बंदरगाह पर सरकारी स्वामित्व वाली आईपीजीएल लगभग 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी, जबकि अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर वित्तपोषण में दिए जाएंगे, जिससे अनुबंध का मूल्य 370 मिलियन डॉलर हो जाएगा। सोनोवाल ने समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद कहा, ‘चाबहार बंदरगाह का महत्व भारत और ईरान के बीच एक मात्र माध्यम के रूप में इसकी भूमिका से कहीं अधिक है।

भारत और ईरान ने रणनीतिक चाबहार पोर्ट को लेकर अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके बाद 10 साल के लिए इस बंदरगाह के संचालन का अधिकार मिल गया है। 10 साल बाद ये अनुबंध स्वतः आगे बढ़ जाएगा। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने भारत-ईरान डील को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, ‘कोई भी जो ईरान के साथ साथ व्यापार सौदों को अंजाम दे रहा है, उन्हें उन संभावित प्रतिबंधों के खतरों के बारे में पता होना चाहिए, जिसके वे करीब जा रहे हैं।’इसके पहले भारत को अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान की जरूरत पड़ती थी। इसके साथ ही इस रणनीतिक बंदरगाह को पाकिस्तान में चीन की मदद से विकसित किए जा रहे ग्वादर बंदरगाह के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। चाबहार बंदरगाह और ग्वादर के बीच समुद्र के रास्ते सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी है।यह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण व्यापार धमनी के रूप में कार्य करता है।’ सोनोवाल ने कहा, ‘इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने से चाबहार बंदरगाह की व्यवहार्यता और दृश्यता पर कई गुना प्रभाव पड़ेगा।’ उन्होंने कहा, ‘चाबहार न केवल भारत का निकटतम ईरानी बंदरगाह है, बल्कि यह समुद्री दृष्टिकोण से भी एक उत्कृष्ट बंदरगाह है।’

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