हाल ही में बांग्लादेश ने शेख हसीना की गिरफ्तारी का वारंट निकल दिया है! बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्रिब्यूनल ने वारंट जारी कर दिया दिया है। बांग्लादेश में हुए हिंसक छात्र आंदोलन के दौरान मानवता के विरुद्ध अपराध के आरोप के तहत पूर्व पीएम शेख हसीना और अन्य 45 लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया है। हसीना को 18 नवंबर तक ट्रिब्यूनल के सामने पेश होना है। ऐसे में अब बड़ा सवाल भारत की प्रतिक्रिया को लेकर है। ये देखना होगा कि भारत इस मामले में अगला कदम क्या उठाता है। हसीना फिलहाल भारत में शरण लिए हुए हैं। शेख हसीना ने 5 अगस्त को बांग्लादेश छोड़ा था। वो तभी से भारत में शरण लेकर रह रही हैं। वहीं बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। बांग्लादेश में पहले से ही हसीना के खिलाफ कई केस चल रहे हैं। इस बीच अब हसीना के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट से तकनीकी रूप से देश की अंतरिम सरकार द्वारा भारत से उनके प्रत्यर्पण की संभावना बन सकती है। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि हसीना समेत भगोड़ों को वापस लाने के लिए इंटरपोल की मदद ली जाएगी।
भारत और बांग्लादेश में प्रत्यर्पण को लेकर पहले से एक समझौता है। 2013 में दोनों देशों के बीच हुए इस प्रत्यर्पण समझौते के तहत भारत सरकार हसीना को वापस भेज सकती है। लेकिन बांग्लादेश की मांग के बाद भी अब तक भारत ने ऐसा नहीं किया है। लेकिन सवाल ये है कि अगर अब इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्रिब्यूनल या बांग्लादेश की सरकार शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करती है तो क्या भारत उसकी अपील खारिज कर पाएगा?
भले ही दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि हो। लेकिन इस समझौते में 2016 में एक संशोधन हुआ था। इस संशोधन के मुताबिक प्रत्यर्पण के लिए सबूतों की भी जरूरत नहीं है। अगर किसी देश की अदालत गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है, तो प्रत्यर्पण से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि संधि का अनुच्छेद 6 कहता है कि अगर अपराध राजनीतिक प्रकृति का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। इसके अलावा सैन्य अपराध के मामलों में भी प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। ऐसे में भारत हसीना के अपराध को राजनीतिक प्रकृति का करार देकर प्रत्यर्पण से मना कर सकता है। बता दें कि बांग्लादेश के इंटरनैशनल क्रिमिनल ट्रिब्यूनल ने छात्रों के व्यापक आंदोलन के दौरान मानवता के विरुद्ध कथित अपराध के लिए पूर्व पीएम शेख हसीना और अवामी लीग के शीर्ष नेताओं समेत अन्य 45 लोगों के खिलाफ गुरुवार को गिरफ्तारी वारंट जारी किया। स्थानीय मीडिया के अनुसार ट्रिब्यूनल ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे हसीना और अन्य को 18 नवंबर तक उसके समक्ष पेश करें। इस मुद्दे पर बांग्लादेश भारत से संपर्क कर सकता है। ढाका ने पहले भी संकेत दिया है कि यह एक विकल्प बना हुआ है।
अभियोजन पक्ष ने इस संबंध में ट्रिब्यूनल में दो याचिकाएं दायर की थीं और गिरफ्तारी वारंट जारी करने की अपील की थी। अब तक हसीना, उनकी अवामी लीग पार्टी और 14 दलों के गठबंधन के अन्य नेताओं, पत्रकारों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पूर्व शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ ट्रिब्यूनल में जबरन गायब करने, हत्या और सामूहिक हत्याओं की 60 से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं। हसीना पर लगभग 200 मामले दर्ज हैं, जिनमें से अधिकतर मामले सामूहिक छात्र विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हत्याओं से संबंधित हैं।
बता दे कि केंद्र सरकार ने दो दिन पहले ही इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन हिज्ब-उत-तहरीर को आतंकवादी संगठन घोषित किया है। बताया जा रहा है कि यह संगठन भोले-भाले लोगों को अपनी जाल में फंसाकर उन्हें आतंक की राह पर चलने के लिए उकसाता था। मामले से परिचित लोगों ने बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार मध्य एशिया के विस्तारित पड़ोस में आतंकी संगठन की बढ़ती गतिविधियों पर कड़ी नजर रख रही है। खास बात है कि बांग्लादेश के अलावा पांच मध्य एशियाई देशों ने भी इस संगठन पर प्रतिबंध लगा रखा है। HUT का संस्थापक तकी अल-दीन अल-नभानी हैं। भारत में, अनुयायियों को सिखाया गया था कि राष्ट्र दारुल कुफ्र (गैर-विश्वासियों की भूमि) है, और उन्हें हिंसक जिहाद के माध्यम से एक इस्लामी साम्राज्य की स्थापना करके इसे दारुल इस्लाम में परिवर्तित करना था।
ब्रिटेन सरकार ने इस साल जनवरी में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था, जब उन्होंने 7 अक्टूबर को इजरायल में हुए भयानक हमलों की प्रशंसा की और जश्न मनाया। हिज्ब उत-तहरीर को कुछ मुस्लिम बहुल देशों में प्रतिबंधित किया गया है। हालांकि यह पश्चिमी देशों में यह स्वतंत्र रूप से काम करता है, जबकि पहले कई सरकारों ने इसे गैरकानूनी घोषित करने का प्रयास किया था। गुरुवार को गृह मंत्रालय ने यूएपीए के तहत इस पर प्रतिबंध लगा दिया।
आतंकवाद-रोधी एक्सपर्ट्स का दावा है कि भारत में इस संगठन की मौजूदगी मामूली थी और इसे गैरकानूनी नहीं माना गया था। इस साल की शुरुआत में मध्य प्रदेश एटीएस ने एक मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया जो पूरे राज्य में सक्रिय था। इसके बाद मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को भेजा गया। एजेंसी ने हिज्ब-उत-तहरीर के 17 सदस्यों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया।