यह सवाल उठना लाजिमी है कि कांग्रेस जम्मू कश्मीर की सरकार में आखिर क्यों शामिल नहीं हुई! नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। सीएम के तौर पर उन्होंने दूसरी बार शपथ ली है। जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद वह सूबे के पहले मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन उनकी सरकार में सहयोगी कांग्रेस शामिल नहीं हुई। मतलब राज्य में I.N.D.I.A की सरकार नहीं बनी! दोनों पार्टियां साथ मिलकर चुनाव लड़ी थीं तो फिर कांग्रेस सरकार में क्यों शामिल नहीं हुई? इसका जवाब है- महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव। उमर अब्दुल्ला के शपथ से पहले जबरदस्त सस्पेंस बना हुआ था। सस्पेंस इस पर कि कांग्रेस सरकार में शामिल होगी या नहीं। छन-छनकर खबरें आने लगीं कि पार्टी सरकार में शामिल नहीं होगी। अटकलें लगने लगीं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस में शायद सबकुछ ठीक नहीं है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैली में कहा था कि उनका घोषणापत्र देखकर पाकिस्तान बहुत खुश है। पीएम ने पाकिस्तान के मंत्री ख्वाजा आसिफ के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि आर्टिकल 370 की बहाली के मुद्दे पर नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन का रुख एकदम पाकिस्तान वाला है।शपथ समारोह होते ही सबकुछ शीशे की तरह साफ हो गया। कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार में शामिल नहीं हुई। आखिर इसके पीछे वजह क्या है?
कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार का हिस्सा नहीं बनी, उसकी वजह पार्टी चाहे जो बताए लेकिन हकीकत में वजह महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव हैं। हो सकता है कि बाद में पार्टी सरकार में शामिल हो जाए लेकिन दो अहम राज्यों के चुनाव से पहले नहीं। कारण ये कि अगर वह सरकार का हिस्सा बनती है तो दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनाव घोषणा पत्र के बहाने से उसे घेरने का बड़ा मौका हाथ लग सकता है। कांग्रेस नहीं चाहती कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनावी वादों की सीधी आंच उसे महाराष्ट्र और झारखंड में झेलनी पड़े। पार्टी अभी हरियाणा चुनाव में हार के झटकों से भी नहीं उबरी है। अटकलें लगने लगीं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस में शायद सबकुछ ठीक नहीं है। बता दें कि कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार का हिस्सा नहीं बनी, उसकी वजह पार्टी चाहे जो बताए लेकिन हकीकत में वजह महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव हैं।आखिर कांग्रेस को नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनावी वादों का चुनाव में नुकसान का डर क्यों सता रहा है? जवाब उसी में छिपा है यानी चुनावी वादों में।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने आर्टिकल 370 और 35 ए की बहाली की कोशिश का वादा किया है। वादा किया है कि राजनीतिक कैदियों की रिहाई होगी। वादा किया है सार्वजनिक सुरक्षा कानून (पीएसए) को रद्द करने का। भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत आगे बढ़ाने का। जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से ध्वज और संविधान की बहाली का। एक वादा ये भी कि शंकराचार्य पर्वत और हरि पर्वत किला के बीच रोपवे चलाई जाएगी। अब रोपवे चलाने में क्या बुराई है लेकिन विवाद नाम का है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने मैनिफेस्टो में शंकराचार्य पर्वत को तख्त-ए-सुलेमान और हरि पर्वत किला को कोह-ए-मारन नाम दिया है। जम्मू-कश्मीर चुनाव के दौरान भी बीजेपी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के मैनिफेस्टो को लेकर कांग्रेस को घेरा था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैली में कहा था कि उनका घोषणापत्र देखकर पाकिस्तान बहुत खुश है। पीएम ने पाकिस्तान के मंत्री ख्वाजा आसिफ के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि आर्टिकल 370 की बहाली के मुद्दे पर नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन का रुख एकदम पाकिस्तान वाला है।
अब अगर कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार में शामिल होती तो बीजेपी को उसे महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनाव घोषणा पत्र के बहाने से घेरने का मौका मिल जाता। हरियाणा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस फूंक-फूंककर कदम रखना चाहती है। बता दें कि उमर अब्दुल्ला के शपथ से पहले जबरदस्त सस्पेंस बना हुआ था। सस्पेंस इस पर कि कांग्रेस सरकार में शामिल होगी या नहीं। छन-छनकर खबरें आने लगीं कि पार्टी सरकार में शामिल नहीं होगी। अटकलें लगने लगीं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस में शायद सबकुछ ठीक नहीं है। बता दें कि कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार का हिस्सा नहीं बनी, उसकी वजह पार्टी चाहे जो बताए लेकिन हकीकत में वजह महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव हैं। हो सकता है कि बाद में पार्टी सरकार में शामिल हो जाए लेकिन दो अहम राज्यों के चुनाव से पहले नहीं। वह बीजेपी को ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहती। यही वजह है कि वह उमर अब्दुल्ला सरकार में फिलहाल शामिल नहीं हुई।