यह सवाल उठना लाजमी है कि झारखंड सरकार मोदी सरकार के खिलाफ न्यायालय क्यों पहुंची है!सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के कॉलेजियम की सिफारिश पर सरकार कबतक फैसला ले, इसकी कोई निश्चित समयसीमा तय नहीं है। इसीलिए ऐसा भी देखा जाता है कि कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकारें कभी-कभी देर तक कोई फैसला नहीं लेती। लेकिन अब इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई गई है। गुहार किसी और ने नहीं बल्कि एक राज्य सरकार ने लगाई है। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने। उसका आरोप है कि झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की नियुक्ति में केंद्र सरकार जानबूझकर देरी कर रही है। झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, हेमंत सोरेन सरकार का आरोप है कि केंद्र सरकार जस्टिस एम. एस. रामचंद्र राव को झारखंड हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने के सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के 11 जुलाई के प्रस्ताव को लागू करने में जानबूझकर देरी कर रही है।
राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि जस्टिस बी. आर. सरंगी के 19 जुलाई को रिटायर होने के बाद से हाई कोर्ट में दो महीने से मुख्य न्यायाधीश नहीं है। याचिका में आगे कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इस वैकेंसी को भरने के लिए सिफारिश भेजी थी। कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को सिफारिश की थी कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का तबादला झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में किया जाए। झारखंड सरकार का कहना है कि दो महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद केंद्र सरकार ‘जानबूझकर’ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। यह स्थिति दिखाती है कि केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों की अवहेलना कर रही है।
झारखंड सरकार का कहना है कि कॉलेजियम के प्रस्ताव पर केंद्र की जानबूझकर की जा रही यह निष्क्रियता संविधान के अनुच्छेद 216 का भी उल्लंघन है। इस अनुच्छेद में कहा गया है, ‘प्रत्येक उच्च न्यायालय एक मुख्य न्यायाधीश और ऐसे अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा…’। संवैधानिक अदालतों को यह अधिकार है कि वे ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू कर सकती हैं जो जानबूझकर ऐसी अदालतों के न्यायिक आदेशों की अवहेलना करता है या उनकी अनदेखी करता है।
हालांकि, यह देखना होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों को न्यायिक आदेशों के समान ही दर्जा दिया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो केंद्र सरकार द्वारा असहमति या कार्यान्वयन में देरी करने पर अवमानना न्यायालय अधिनियम के प्रावधान लागू हो सकते हैं। कॉलेजियम की सिफारिशों के तेजी से क्रियान्वयन पर जोर देते हुए एक बार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को अदालत की अवमानना की कार्रवाई की चेतावनी दी थी। तब जस्टिस संजय किशन कौल, जो अब रिटायर हो चुके हैं, ने केंद्र को चेताया था कि उसके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू कर सकते हैं। हालांकि उन्होंने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
सुप्रीम कोर्ट ने 1990 के दशक में तीन अलग-अलग फैसलों के माध्यम से तय किया था कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति सिर्फ कॉलेजियम के माध्यम से होगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की सिफारिश को कब तक मंजूरी दी जाए, इसकी कोई डेडलाइन तय नहीं की थी। इसके अलावा, केंद्र सरकार कॉलेजियम के फैसले को अस्वीकार तो नहीं कर सकती, लेकिन वह उन मुद्दों को उठाकर पुनर्विचार की मांग जरूर कर सकती है जो उसे लगता है कि कॉलेजियम के ध्यान में नहीं आए हैं या उन पर पर्याप्त विचार नहीं किया गया है।
झारखंड द्वारा केंद्र के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की जानकारी सीजेआई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को दी। सीजेआई ने ये जानकारी उस वक्त दी जब अटॉर्नी जनरल ये गुजारिश कर रहे थे कॉलेजियम की सिफारिशों को समयबद्ध तरीके से लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका पर शुक्रवार की सुनवाई स्थगित कर दी जाए। याचिकाकर्ता हर्ष विहोर सिंह ने मांग की है कि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर को लेकर कॉलेजियम की सिफारिशों पर समयबद्ध कार्यान्वयन हो।
अटॉर्नी जनरल ने CJI और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच को बताया कि वह अगले हफ्ते उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति पर विवरण देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि वे शुक्रवार को स्थगन का अनुरोध नए सिरे से करें क्योंकि मामला पहले ही सूचीबद्ध हो चुका है। 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस राव का हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट से झारखंड तबादला करने की सिफारिश करने के अलावा 7 उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजा था। हालांकि, केंद्र ने कुछ ‘संवेदनशील सामग्री’ का हवाला देते हुए कॉलेजियम से कुछ सिफारिशों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। इस सामग्री के आधार पर, कॉलेजियम ने 17 सितंबर को तीन उच्च न्यायालयों- हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और जम्मू और कश्मीर और लद्दाख – में मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अपने प्रस्तावों में बदलाव किए थे।