Tuesday, September 17, 2024
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आखिर मध्य प्रदेश सरकार ने सीबीआई पर क्यों का कसा शिकंजा?

हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने सीबीआई पर शिकंजा कस दिया है! राज्य में किसी भी मामले में सीबीआई जांच के लिए राज्यों की अनुमित के मुद्दे पर बीजेपी को झटका लगता दिख रहा है। विपक्षी दलों के शासित राज्यों की तर्ज पर मध्यप्रदेश सरकार ने भी सीबीआई की जांच को संबंध में एक अहम फैसला किया है। मध्य प्रदेश सरकार ने का कहना है कि सीबीआई को अपने अधिकार क्षेत्र में जांच शुरू करने से पहले राज्य से लिखित सहमति की आवश्यकता होगी। इस संबंध में मंगलवार को एक अधिसूचना प्रकाशित की गई थी। यह आदेश राज्य में 1 जुलाई से प्रभावी माना जाएगा। पश्चिम बंगाल, केरल, पंजाब और तमिलनाडु पहले ही सीबीआई जांच की अनुमति को लेकर केंद्र सरकार का विरोध कर रहे हैं। जबकि राज्य ने अपने अधिकार क्षेत्र में मामलों की जांच के लिए संघीय एजेंसी को दी गई सहमति वापस ले ली है। बंगाल सरकार ने 2018 में ही सीबीआई को जांच के लिए दी गई अनुमति वापस ले लिया था।पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार का मामला तो हाल ही में सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था। अब मध्यप्रदेश सरकार का यह फैसला आया है। मध्यप्रदेश में सीएम मोहन यादव की सरकार ने सीधे-सीधे तो सीबीआई के क्षेत्राधिकार या मामले की जांच को रोकने की बात तो नहीं कही है लेकिन उसने लिखित सहमति का ‘ब्रेक’ जरूर लगा दिया है। इसके साथ ही बीजेपी शासित मध्य प्रदेश उन राज्यों की लंबी सूची में शामिल हो गया है, जिनमें ज्यादातर विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं। इनमें बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब, केरल और तेलंगाना शामिल हैं। इन राज्यों में सीबीआई को जांच से पहले संबंधित सरकारों से अनुमति लेने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट के अनुसार गृह विभाग के सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार की तरफ से पारित तीन नए आपराधिक कानूनों में से एक भारतीय न्याय संहिता के कार्यान्वयन के बाद नए कानूनी ढांचे का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक था। सूत्रों ने कहा कि बदलावों का पालन करने के लिए अधिसूचना महत्वपूर्ण थी। सूत्रों ने कहा कि अन्य भाजपा शासित राज्यों द्वारा भी इसी तरह की अधिसूचनाएं पारित किए जाने की उम्मीद है। विशेष रूप से, सीबीआई को अब निजी व्यक्तियों, सरकारी अधिकारियों या राज्य के भीतर किसी भी संस्था की जांच करने के लिए मध्य प्रदेश प्रशासन से लिखित मंजूरी की आवश्यकता है। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, सीबीआई को अपने अधिकार क्षेत्र में जांच करने के लिए राज्य सरकार से सहमति लेना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 के अनेक प्रावधानों का जिक्र करते हुए कह चुका है कि स्थापना, शक्तियों का प्रयोग, अधिकार क्षेत्र का विस्तार, डीएसपीई का नियंत्रण, सब कुछ भारत सरकार के पास है। ऐसे में विपक्षी दल केंद्र सरकार पर सीबीआई का बदले की भावना से प्रयोग का आरोप लगाते रहे हैं।

इससे पहले पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मूल वाद दायर किया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि सीबीआई प्राथमिकियां दर्ज कर रही है और जांच कर रही है, जबकि राज्य ने अपने अधिकार क्षेत्र में मामलों की जांच के लिए संघीय एजेंसी को दी गई सहमति वापस ले ली है। बंगाल सरकार ने 2018 में ही सीबीआई को जांच के लिए दी गई अनुमति वापस ले लिया था।

सीबीआई को जांच की अनुमति वापस लिए जाने की राज्यों की कार्यवाई पर पिछले साल दिसंबर में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। केंद्र सरकार ने कहा था कि सीबीआई को अनुमति लेने की आवश्यकता होने से मामलों की जांच करने की उसकी शक्तियां गंभीर रूप से सीमित हो गई हैं। एक संसदीय पैनल ने कहा था कि एक कानून बनाने की आवश्यकता है ताकि एजेंसी राज्य के ‘हस्तक्षेप’ के बिना मामलों की जांच कर सके। बता दें कि सीएम मोहन यादव की सरकार ने सीधे-सीधे तो सीबीआई के क्षेत्राधिकार या मामले की जांच को रोकने की बात तो नहीं कही है लेकिन उसने लिखित सहमति का ‘ब्रेक’ जरूर लगा दिया है। इसके साथ ही बीजेपी शासित मध्य प्रदेश उन राज्यों की लंबी सूची में शामिल हो गया है, जिनमें ज्यादातर विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं। साथ ही, पैनल ने यह भी माना कि सीबीआई के कामकाज में निष्पक्षता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है ताकि राज्य भेदभाव की शिकायत न करें।

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