
यह सवाल उठना लाजिमी है कि पाकिस्तान ने SCO समिट में कश्मीर का मुद्दा आखिर क्यों नहीं उठाया !इस्लामाबाद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शासनाध्यक्षों की परिषद (सीएचजी) की बैठक पाकिस्तान के लिए मुश्किल वक्त में बड़ा मौका बनकर आई। 15-16 अक्टूबर को हुए इस आयोजन के जरिए पाकिस्तान की पूरी कोशिश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि सुधारने की रही। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार के समापन भाषण में कश्मीर मुद्दे का जिक्र न होना यह दर्शाता है कि पाकिस्तान इस आयोजन को किसी भी विवाद से दूर रखना चाहता है। कश्मीर मुद्दा भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से तनाव की वजह रहा है और यह कई बार इस्लामाबाद के आधिकारिक बयानों का हिस्सा रहा है। हालांकि पीएम शरीफ ने अपने समापन भाषण में राजनीतिक मतभेदों और विभाजनों पर सहयोग को प्राथमिकता देने की अपील की।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से जूझ रही है। भारी कर्जे में डूबे देश को बाहरी मदद की सख्त जरुरत है। इसलिए वो चाहता है कि उसकी इंटरनेशनल इमेज में सुधार हो जिससे वह विदेशी निवेश को आकर्षित कर सके। पाकिस्तानी अखबार द डॉन की मंगलवार की रिपोर्ट के मुताबिक व्यापारिक समुदाय ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने की उम्मीद जताई।हालांकि यह एक कम समय के लिए यात्रा नहीं होगी जैसा कि पहले सोचा गया था। जयशंकर भारत वापस जाने से पहले संभवतः पाकिस्तान में 24 घंटे से अधिक समय नहीं बिताएंगे।
लाहौर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एलसीसीआई) के अध्यक्ष मियां अबुजर शाद ने सोमवार को एक बयान में कहा, “यह आयोजन पाकिस्तान को प्रमुख अंतरराष्ट्रीय भागीदारों, विशेष रूप से चीन के साथ अपने व्यापार और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। शिखर सम्मेलन वैश्विक निवेशकों को देश के व्यापार और निवेश के अवसरों के प्रति खुलेपन के बारे में एक स्पष्ट संदेश भी भेजेगा।” प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को इस्लामाबाद में 23वें शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए क्षेत्र की कनेक्टिविटी की सामूहिक क्षमता में निवेश करने का आह्वान किया। पाकिस्तान विदेश नीति के मोर्च पर भी जूझ रहा है। उसके संबंध इस समय अफगानिस्तान के साथ बेहद तनावपूर्ण है। कभी तालिबान को पूरा समर्थन देने वाला पाकिस्तान अब उस पर आतंकवादियों को पालने का आरोप लगा रहा है।
इस्लामाबाद लगातार कहता रहा है तालिबान सरकार अपनी जमीन पर टीटीपी जैसे आतंकी संगठनों को पनाह दे रही है जो पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। दूसरी तरफ काबुल इन आरोपों को खारिज करता रहा है। ईरान के साथ भी पाकिस्तान के सबंधों में पिछले दिनों दरार देखी गई। दोनों देशों के बीच सैनिक झड़पें भी हुईं। ऐसे में पाकिस्तान अब नहीं चाहता है कि उसकी छवि अस्थिर विदेश संबंधों वाली देश की बने।
एससीओ में चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और बेलारूस शामिल हैं – और 16 अन्य देश पर्यवेक्षक या “वार्ता साझेदार” के रूप में इससे जुड़े हैं। पाकिस्तान कजाकिस्तान में 2017 में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन में इसका पूर्ण सदस्य बन था। एससीओ बैठक ने पाकिस्तान को वो मौका दिया जिसे वह लंबे समय से खोज रहा था। अब उसे इंतजार रहेगा कि अगले इंटरनेशनल इवेंट की मेजबानी की।
बता दे कि उम्मीद है कि मंत्री बुधवार को मुख्य शिखर सम्मेलन से पहले भारतीय विदेश मंत्री डिनर में शामिल होंगे। जयशंकर मेजबान देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और अपने समकक्ष इसहाक डार के साथ दिखाई देंगे। हालांकि यह एक कम समय के लिए यात्रा नहीं होगी जैसा कि पहले सोचा गया था। जयशंकर भारत वापस जाने से पहले संभवतः पाकिस्तान में 24 घंटे से अधिक समय नहीं बिताएंगे।
जयशंकर 15-16 अक्टूबर को पाकिस्तान में होंगे। यह पिछले एक दशक में किसी भी भारतीय विदेश मंत्री की पहली पाकिस्तान यात्रा होगी। हालांकि, भारत द्वारा उनकी पाकिस्तान यात्रा की पुष्टि करने के एक दिन बाद, जयशंकर ने कहा कि वह पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों पर चर्चा करने के लिए इस्लामाबाद नहीं जा रहे हैं, बल्कि एससीओ का ‘अच्छा सदस्य’ बनने के लिए जा रहे हैं। कश्मीर मुद्दा भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से तनाव की वजह रहा है और यह कई बार इस्लामाबाद के आधिकारिक बयानों का हिस्सा रहा है। हालांकि पीएम शरीफ ने अपने समापन भाषण में राजनीतिक मतभेदों और विभाजनों पर सहयोग को प्राथमिकता देने की अपील की।एससीओ में रूस, चीन, ईरान और 4 मध्य एशियाई देशों के अलावा भारत और पाकिस्तान भी सदस्य हैं।