आज हम आपको बताएंगे कि शिवाजी का रायगढ़ किला आखिर खास क्यों बना रहा! 1656 से कुछ समय पहले की बात है, जब शिवाजी महाराज मुगल बादशाह औरंगजेब को पस्त करने और आदिलशाही सल्तनत को धूल चटाने के बाद हिंद स्वराज्य की स्थापना के बारे में सोच रहे थे। वह चाहते थे कि हिंदू पदपादशाही का केंद्र कोई ऐसी जगह हो, जहां दुश्मन भी बाल बांका न कर सके। ऐसे में उनकी नजर तब पश्चिमी भारत में सह्याद्री पर्वतों की खड़ी ढलानों के ऊपर बने एक किले रायगढ़ पर पड़ी। महाराष्ट्र के उत्तरी कोंकण क्षेत्र में बने इस किले को जंगी किले में तब्दील किया जाना था। साल 1656 में शिवाजी महाराज ने चंद्ररावजी को हराकर इस किले पर कब्जा किया था। महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में बना यह किला पहाड़ी पर बना है और महाड से करीब 25 किलोमीटर दूर है। रायगढ़ किले को पहले ‘रायरी’ के नाम से जाना जाता था। शिवाजी महाराज ने इसका नाम ‘रायगढ़’ या ‘शाही किला’ रखा था। इस किले का जीर्णोद्धार शिवाजी महाराज ने ही करवाया था।
जब शिवाजी महाराज ने रायगढ़ को अपने कब्जे में किया तो इसे उन्होंने दुर्जेय बनाया। शिवाजी महाराज ने इसकी सुरक्षा में भारी-भरकम निवेश किया। इसकी दीवारों के भीतर सैनिकों और तोपखाने को तैनात किया। उन्होंने किसी भी संभावित हमलावर को विफल करने के लिए ऐसी स्ट्रैटेजी अपनाईं कि रायगढ़ दुश्मनों से बचा रहे। 1662 में शिवाजी ने रायगढ़ किले को अपने हिंदवी स्वराज्य की राजधानी बनाया। इसी दीवारों से दिवाली पर गोला-बारूद दागे जाते थे। शिवाजी ने दिवाली के दिन किले बनाने की शुरुआत की थी, जिसे महाराष्ट्र में दिवाली के दिन लोग मिट्टी के किले बनाकर मनाते हैं। शिवाजी का राज्याभिषेक 6 जून, 1674 को इसी रायगढ़ किले में हुआ था। यहीं पर एक भव्य समारोह में शिवाजी को मराठा साम्राज्य का राजा घोषित किया गया था। शिवाजी का राज्याभिषेक वाराणसी के विश्वेश्वर (गंगा भट्ट) ने शास्त्रों के मुताबिक किया था। इस समारोह में गंगा भट्ट ने शिवाजी के सिर पर यमुना, सिंधु, गंगा, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी नदियों के जल से भरे सोने के बर्तन से पानी डाला था। यहीं पर शिवाजी को शककर्ता (एक युग का संस्थापक) और छत्रपति (छत्र के स्वामी) की उपाधि दी गई।
रायगढ़ किला छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में मराठा साम्राज्य की राजधानी का मुख्य केंद्र था। उस वक्त रायगढ़ किले पर पहुंचने के लिए 1,450 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती थीं, जिस पर आज सैलानी रोपवे से जा सकते हैं। शिवाजी ने यहीं पर हैंदव धर्मोद्धारक (हिंदू धर्म के रक्षक) की उपाधि भी धारण की थी। रायगढ़ किले से एक कृत्रिम झील भी दिखती है जिसे ‘गंगा सागर झील’ के नाम से जाना जाता है। किले का एकमात्र मुख्य मार्ग महा दरवाजा से होकर गुजरता है। रायगढ़ किले के अंदर राजा के दरबार में मूल सिंहासन की प्रतिकृति है जो मुख्य द्वार के सामने है जिसे नागरखाना दरवाजा कहा जाता है। इस घेरे को द्वार से सिंहासन तक सुनने में सहायता के लिए ध्वनिक रूप से डिजाइन किया गया था। किले में एक प्रसिद्ध गढ़ है जिसे हिरकानी बुरुज (हिरकानी गढ़) कहा जाता है, जो एक विशाल खड़ी चट्टान पर बना है। कहा जाता है कि इस किले में 300 से ज्यादा महल और 84 कुएं थे।
शिवाजी महाराज के रहते मुगल कभी रायगढ़ किले को छू भी नहीं पाए। हालांकि, 15 साल बाद रायगढ़ पर एक बार फिर दूसरी ताकतों का नियंत्रण स्थापित हुआ। 1689 में रायगढ़ के युद्ध में मुगल सेनापति जुल्फिकार खान ने रायगढ़ किले पर हमला करके मराठों के तीसरे छत्रपति राजाराम भोंसले प्रथम की सेना को हराया। इसके बाद मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने किले का नाम बदलकर ‘इस्लामगढ़’ रख दिया। 1707 तक अहमदनगर सल्तनत के राज्य प्रतिनिधि फतेह खान इस किले पर कब्ज़ा करके अगले दो दशकों तक इस पर शासन करते रहे। इसके बाद इस पर मराठों ने इस किले पर फिर से कब्जा कर लिया। उन्होंने 1813 तक यहां शासन किया। बाद में यानी 1818 में तोपों से बमबारी करने के बाद अंग्रेजों ने इस किले पर कब्जा जमा लिया। पहले इसे जमकर लूटा और फिर इसे नुकसान पहुंचाया। अंग्रेजों ने रायगढ़ की खड़ी, दुर्गम और ठोस बनावट की तुलना भूमध्य सागर में एक मशहूर रॉक से करते हुए इसे पूर्व का जिब्राल्टर करार दिया।
छत्रपति शिवाजी ने सिंधु दुर्ग किले की नींव 25 नवंबर, 1664 को रखी थी। 48 एकड़ में फैले इस किले की ऊंचाई 30 फुट है। इस किले की तीन दीवारें 12 फुट मोटी हैं, जो पुर्तगालियों, अंग्रेजों के साथ-साथ अरब सागर के समुद्री लुटेरों से भी बचाने में मददगार हुआ करती थीं। इसे 3000 से अधिक मजदूरों ने बनाया था। उस वक्त यह तीन साल में बनकर तैयार हुआ था। इस किले का निर्माण डच, फ्रांसीसी और पुर्तगालियों के आक्रमण को रोकने के लिए किया गया था।