यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इजरायल के प्रधानमंत्री ईरान को तबाह क्यों करना चाहते हैं! मार्च, 2015 की बात है, जब अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स में 1993 में ओस्लो शांति समझौते के खिलाफ एक आलोचनात्मक लेख छपा, जिसमें कहा गया था कि नेतन्याहू ने फिलिस्तीनियों के साथ शांति को लेकर पूर्व पीएम यित्जाक रॉबिन की तुलना नेविल चेंबरलेन से की थी। लेख में ईरान के साथ परमाणु समझौते को बेकरार नेतन्याहू के बारे में कहा गया था कि वह खुद को दुनिया बचाने वाले नायक के रूप में देखते हैं। दरअसल, नेतन्याहू आतंकी समूहों जैसे हिजबुल्लाह और हमास के साथ-साथ ईरान के हमले होने पर अकसर ये धमकी देते नजर आते हैं कि वह किसी भी कीमत पर अपने दुश्मनों से बदला लेकर रहेंगे। उनके मंत्री दिग्गज भारतीय हीरो रहे राजकुमार का वो मशहूर डायलॉग मारते नजर आते हैं कि हम मारेंगे…मगर जगह और समय हम तय करेंगे। ऐसी बयानबाजियां कुछ समय के लिए भले ही इजरायलियों को अच्छी लगें, मगर हकीकत में उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता है। इजरायली ऐसी राजनीतिक बयानबाजियों को ज्यादा तवज्जो देते नजर नहीं आते हैं। यही वजह है कि बीते साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमले के बाद से ही इजरायली कई बार नेतन्याहू के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं। इजरायली अखबार हारेत्ज के एक इजरायली स्तंभकार और ‘माई प्रॉमिस्ड लैंड: द ट्राइंफ एंड ट्रेजेडी ऑफ इजराइल (2013) के लेखक अरी शावित के अनुसार, नेतन्याहू तीन दशकों से खुद को ब्रिटेन के महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री रह चुके विंस्टन चर्चिल के रूप में मानते हैं। उन्होंने खुद को पश्चिम के उद्धारकर्ता की शानदार भूमिका में ढाल लिया है। यह ठीक वैसे ही जैसे द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान चर्चिल यह मानते थे कि दुनिया पर राज करना उनके देश का जन्मसिद्ध अधिकार है और दुनिया के उनकी बात मानेगी। उनका कहना है कि यह एक तरह का चर्चिल कॉम्प्लेक्स है, जिसमें नेतन्याहू हकीकत से परे खुद को हीरो के रूप में देखते हैं।
नेतन्याहू कई इंटरव्यू में यह कह चुके हैं कि ईरान 21वीं सदी का नाजी जर्मनी है, वहीं इजरायल 21वीं सदी का ग्रेट ब्रिटेन है। और वह खुद चर्चिल हैं। इस वक्त भी नेतन्याहू चर्चिल के चाहने वाले की तरह व्यवहार कर रहे हैं। उनका मानना है कि इजरायल उनके वैश्विक कद के हिसाब से काफी छोटा देश है। नेतन्याहू खुद की तुलना अक्सर चर्चिल के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति रहे फ्रैंकलिन डेलानो रूजवेल्ट से भी करते रहे हैं, जो अमेरिका के महानतम राष्ट्रपतियों में से एक माने जाते हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध 1940-1945 के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे चर्चिल को भारतीयों की नेतृत्व क्षमता पर कभी भरोसा नहीं होता था। इसलिए वो कहा करते थे कि अगर भारत का नेतृत्व भारतीयों को सौंप दिया जाएगा तो इंडियन कभी इस देश को नहीं चला पाएंगे। उनकी नीतियों की वजह से बंगाल में उस वक्त इतना भीषण अकाल पड़ा कि 30 लाख लोग मारे गए थे। चर्चिल को भी यह मुगालता रहता था कि वह दुनिया को बचा रहे हैं। इसके बावजूद जब विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज पूरी दुनिया में अस्त हो गया।
नेतन्याहू अक्सर तब घिर जाते हैं, जब इजरायल फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास के खिलाफ गाजा पट्टी में लड़ाई करता है। इसके लिए इजरायल को कई बार गहन अंतरराष्ट्रीय जांच का सामना भी करना पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों और सहायता समूहों ने भी कई बार गाजा पट्टी में बड़ी संख्या में मारे गए नागरिकों को लेकर इजरायली सरकार की आलोचना की है।
नेतन्याहू पर कई बार ये भी आरोप लगे हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान बड़ी संख्या में निर्दोष इजरायली नागरिक मारे गए। बीते कुछ महीने पहले ही बंधक संकट में भी नेतन्याहू के कमजोर नेतृत्व को लेकर सवाल उठे थे। यह आरोप लगता है कि इजरायल नागरिक हताहतों की संख्या को कम करने में विफल रहा है। वहीं, नेतन्याहू अक्सर ये तर् देते दिखते हैं कि इजरायल डिफेंस फोर्सेज ने 2003 के इराक युद्ध के दौरान इराकी शहर फालुजा में अमेरिकी सेना की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया था।
नेतन्याहू डेमोक्रेटिक राजनेताओं और उदार बुद्धिजीवियों का तिरस्कार करते हैं, जिन्हें वह कमजोर लोगों के रूप में देखते हैं। इस जटिलता के कारण उन्हें नागरिक नेता नहीं माना जाता है। ज्यादातर लोग ये मानते हैं कि नेतन्याहू को सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और कानून के शासन से कोई सरोकार नहीं है। उनके राष्ट्र की कहानी 21वीं सदी में पश्चिम की परस्पर विरोधी संस्कृतियों के बीच एक शक्तिशाली संघर्ष की कहानी है।
74 वर्षीय प्रधानमंत्री नेतन्याहू इस वक्त भी लेबनान में इजरायली सेना भेजी है, मगर यह अब तक जितनी भी बार इजरायली सेना लेबनान में घुसी, उसे आखिर में बिना कुछ हासिल किए लौटना ही पड़ा है। नेतन्याहू के सबसे कट्टर आलोचकों में से एक पूर्व राजनयिक एलोन पिंकस ने इजरायली अखबार हारेत्ज में लिखा, वह विंस्टन चर्चिल नहीं हैं, जिनसे वह अपनी तुलना करते हैं। त्रासदी और संकट के पलों के दौरान कोई भी उनकी ओर नहीं देखता है।