वर्तमान में विपक्ष सरकार का बायकाट करता हुआ नजर आ रहा है! बहुमत से दूर खड़ी मोदी सरकार को विपक्ष चुनौती देने का कोई मौका छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार की नीतियों का विरोध और आम जनता के अधिकारों की बात करने वाले विपक्ष ने शनिवार को पीएम मोदी की अध्यक्षता में होने वाली नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक का बॉयकॉट कर सरकार और सत्तारूढ़ दल को एक बड़ा संकेत देने की कोशिश की है। दरअसल, जिस तरह से हालिया बजट को लेकर समूचा विपक्ष गैर एनडीए शासित प्रदेशों की अनदेखी का आरोप संसद से सड़क तक लगा रहे हैं, उसके बाद गैर एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों का नीति आयोग की बैठक में न आना उस विरोध पर एक औपचारिक मुहर की तरह सामने आया। विपक्ष ने कहीं न कहीं यह संकेत देने की कोशिश की कि भले ही अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं, लेकिन एक बड़े मुद्दे पर पूरा विपक्ष एकजुट है। उल्लेखनीय है कि बैठक का सबसे पहले बॉयकॉट का फैसला तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन ने लिया। उसके बाद कांग्रेस के तीनों मुख्यमंत्रियों कर्नाटक के सिद्धारमैया, तेलंगाना के रेवंत रेड्डी व हिमाचल के सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी इसमें भाग न लेने की बात कही। पंजाब के सीएम भगवंत मान ने दूरी बनाई तो केरल के सीएम पिनराई विजयन भी नहीं आए। विपक्ष की ओर से वेस्ट बंगाल सीएम ममता बनर्जी व झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने आने की बात कही थी, लेकिन ऐन मौके पर सोरेन भी नहीं पहुंचे। जबकि ममता शामिल तो हुईं, लेकिन बोलने न देने और माइक बंद करने का आरोप लगाते हुए बीच बैठक से निकल गईं। हालांकि इस बैठक से बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी दूरी बनाई है, लेकिन बिहार सरकार की तरफ से बाकायदा इसकी सफाई सामने आई है। उनके न आने की वजह एक अहम मीटिंग बताई गई, जबकि नीतीश कुमार की जगह उनके दोनों डिप्टी सीएम विजय कुमार और सम्राट चौधरी ने बिहार का प्रतिनिधित्व किया।
उल्लेखनीय है कि हर राज्य की केंद्र सरकार से शिकायत है कि उसे केंद्र से अपने हिस्से का फंड नहीं मिलता है और उसका पैसा केंद्र के पास बकाया है। इस बार के बजट में जिस तरह से केंद्र सरकार ने बिहार व आंध्र प्रदेश के लिए अपना खजाना खोला, उसने बाकी राज्यों में असंतोष और बढ़ा दिया। विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी सिर्फ अपनी सरकार वाले राज्यों के अलावा अपने घटक दलों पर मेहरबानी करता है, बाकी राज्यों के साथ भेदभाव का आरोप लगा रहा है। वहीं विपक्ष मोदी सरकार पर सहकारी संघवाद की अनदेखी का आरोप भी लगाता रहा है। ऐसे में नीति आयोग जैसे मंच जो संघवाद की अहम कड़ी के तौर पर काम करते हैं, वहां शामिल न होकर विपक्ष ने सरकार व सत्तारूढ़ दल को साफ संकेत दिया है। सरकार का विरोध कर विपक्षी दल अपने राज्य के लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि विपक्षी राज्य होने के नाते उनकी अनदेखी हो रही है, लेकिन अपने लोगों के लिए वे लड़ते रहेंगे। इन दिनों संसद के दोनों सदनों में फिलहाल बजट पर चल रही चर्चा के दौरान इंडिया गठबंधन के तमाम दल इसी लाइन पर मोदी सरकार पर हमलावर दिखे।
हालांकि ममता बनर्जी के आरोपों के बाद विपक्षी दलों ने बनर्जी के पक्ष में आवाज बुलंद की। डीएमके चीफ स्टालिन ने ममता के आरोपों के मद्देनजर केंद्र सरकार को घेरते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि क्या यही सहकारी संघवाद है? क्या मुख्यमंत्री के साथ व्यवहार करने का यही तरीका है? केंद्र की बीजेपी नीत सरकार को यह समझना चाहिए कि विपक्षी दल हमारे लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं और उन्हें दुश्मन नहीं समझा जाना चाहिए। सहकारी संघवाद के लिए संवाद और सभी आवाजों का सम्मान जरूरी है। वहीं कांग्रेस ने नीति आयोग की बैठक में ममता बनर्जी के साथ हुए व्यवहार को पूरी तरह से अस्वीकार्य बताया।
कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश का कहना था कि है। दस साल पहले स्थापित होने के बाद से ही नीति आयोग प्रधानमंत्री का एक अटैच्ड ऑफिस रहा है। यह प्रधानमंत्री के लिए ढोल पीटने वाले तंत्र के रूप में काम करता है। रमेश ने दावा किया कि नीति आयोग किसी भी तरह से सहकारी संघवाद को मजबूत नहीं कर रहा। इसका काम करने का तरीका साफतौर से पक्षपात से भरा रहा है। यह कतई पेशेवर और स्वतंत्र नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा कि इसकी बैठकें महज दिखावा मात्र की होती हैं। जबकि आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह का कहना था कि ये लोग पूरे विपक्ष का अपमान करने पर आमादा हैं। उन्होंने मीडिया में कहा कि बनर्जी का इस बैठक में जाने का मकसद सच्चाई जानना था और उन्होंने सच्चाई जानने के बाद ही अपना बयान दिया।
विपक्षी दलों का ऐसी बैठकों से दूरी बनाना कोई नई बात नहीं है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए के 10 साल की सरकार में ऐसे कई मौके आए जब एनडीसी की बैठकों से गैर कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने दूरी बनाई। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री, ओडिशा के तत्कालीन सीएम नवीन पटनायक, तमिलनाडु की जयललिता, यूपी की मायावती और वेस्ट बंगाल की ममता बनर्जी के साथ मिलकर एनडीसी की बैठक में सहकारी संघवाद की अनदेखी का आरोप लगाते हुए विरोधी सुर बुलंद किए थे। गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए नरेंद्र मोदी ने जिन अहम मुद्दों पर विरोध का सुर उठाया था उसमें से जीएसटी भी एक था।