आज हम आपको बताएंगे कि चीनी को आखिर सफेद सोना क्यों कहा जाता है! चीनी यानी शक्कर, जिसे शुगर भी कहा जाता है! लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर शक्कर को एक समय सफेद सोना भी कहा जाता था! इसका भारतीय इतिहास और चीनी इतिहास से काफी मिलता-जुलता गहरा संबंध है! खैर, इस इतिहास के बारे में आपको पूरी जानकारी देंगे!
आपको बता दे कि हर किसी की रसोई में कुछ और हो न हो, चीनी ज़रूर पाई जाती है. इसकी मिठास हमारी ज़ुबान पर यूं घुली हुई है कि इसे हम अपने से अलग मान ही नहीं सकते. क्या आपने कभी सोचा है कि गन्ने से बनने वाली चीनी को आखिर चीनी क्यों कहा जाता है, जबकि ये शुद्ध तौर पर भारतीय है. चीनी के मीठे ज़ायके के बिना इंसान का जीवन ही फीका हो जाएगा. इसमें न कोई विटामिन मिलता है और न ही कोई खास मिनरल, बावजूद इसके चीनी की मिठास में हर कोई जकड़ा हुआ है. आजकल चीनी हर कोई खरीद सकता है लेकिन चीनी को एक वक्त में सफेद सोना कहा जाता था. सफेद दानेदार चीनी को गन्ने और चुकंदर से बनाया जा सकता है. एक समय में चीनी इतनी महंगी थी कि सिर्फ व्यवसायी और राजा-महाराजा ही इसे अफोर्ड कर सकते थे!
गन्ने से शक्कर बनाने की प्रक्रिया का आविष्कार ही भारत में हुआ था और ईसा पूर्व सातवीं सदी में लिखे गए आयुर्वेदिन ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में इसकी जानकारी दी गई है. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी गुड़-खांड समेत 5 तरह की शक्कर का ज़िक्र है. दुनिया में इसके पुराना शक्कर बनाने का दूसरा विवरण नहीं है. भारत से ही चीनी दुनिया के दूसरे देशों तक पहुंची. भारत में तो इसका वर्णन शक्कर और शर्करा के रूप में रहा, फिर ये चीन से इसका क्या मतलब?
दरअसल भारत में इस्तेमाल होती थी- शक्कर, जो चीनी से अलग है. गन्ने के रस को गर्म करके इसे सुखाकर शक्कर बनती थी. उजली- पारदर्शी और दानेदार चीनी का चीन से गहरा वास्ता है. 13वीं सदी में इतालवी व्यापारी, खोजकर्ता और राजदूत मार्को पोलो के संस्मरणों में बताया गया है कि चीन के बादशाह कुबलई खां ने मिस्र से कारीगर बुलवाए थे, जिन्होंने चीन के लोगों को दानेदार शक्कर बनाना सिखाया. चूंकि इस तकनीक को चीन से मुगलकाल में भारत लाया गया, इसलिए इस प्रक्रिया से बनी शक्कर को चीनी कहा गया, बता दे कि चीनी की ‘जकड़’ इतनी सघन है कि मनुष्य का पूरा जीवन इसके स्वाद में ही फंसा रहता है. सबको पता है कि इसका अधिक सेवन बीमारियां पैदा करता है, लेकिन मरते दम तक आदमी इसकी मधुरता का दीवाना हुआ जाता है. इसमें मोटे तौर न कोई विटामिन है और न ही खनिज, वसा या फाइबर. जो कुछ होता भी है वह रिफाइनिंग प्रक्रिया के दौरान निकल जाता है. इसमें सिर्फ कैलोरी होती है.
वो भी एक चम्मच में मात्र 15-20, लेकिन इसे मोटापे का कारक इसलिए माना जाता है, क्योंकि लोग इससे बनने व्यंजनों के अलावा और भी आहार (इसके साथ) ज्यादा खा जाते हैं.हैरानी की बात यह है कि पूरी दुनिया में मिठास (शुगर) कई फलों, सब्जियों व अन्य पदार्थों में हैं, लेकिन सफेद दानेदार चीनी सिर्फ गन्ने और चुकंदर से ही बनाई जा सकती है. मध्य युग में चीनी (शक्कर) को दुर्लभ आहार माना जाता था.रिर्पोटों के अनुसार 15वी शताब्दी तक दुनिया के अधिकांश लोगों को शक्कर की मिठास की जानकारी नहीं थी. तब मीठे के नाम पर फलों के अलावा अलग से मिठास पाने के लिए शहद ही था. स्पष्ट था कि वैश्विक स्तर पर शक्कर के कारोबार की गुंजाइश बची थी. इसे पुर्तगाली सौदागरों ने लपका, जिसके बाद चीनी बनने का इतिहास बुरी तरह ‘कड़वा’ हो गया. 15वी शती में वे करिबियन पहुंचे. यह इलाका गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त था और वहां शक्कर बनाने के लिए जंगलों में पर्याप्त ईंधन भी. बस लोगों की कमी थी. वे पश्चिम अफ्रीका पहुंचे और वहां अफ्रीकन लोगों को दास बनाकर करिबिया लाए. दासों का सिलसिला शुरू हुआ और 1505 में वहां पहली शुगर कॉलोनी खड़ी हो गई. उस दौरान यह बहुत महंगी थी और शासकों और बड़े कारोबारियों तक ही इसकी पहुंच थी. इसी दौरान इसे ‘सफेद सोना’ भी कहा गया. भारत में तो सालों तक राशनी कार्ड पर चीनी मिलती रही है. ये नाम सफेद शक्कर के लिए इतना लोकप्रिय हुआ कि सफेद-दानेदार चीनी घर-घर में पहुंच गई. भारत में पहली चीनी मिलों को लगाने का रिकॉर्ड 1610 में मिलता है.
चीनी भले ही कुछ ज्यादा विटामिन-मिनरल न रखती हो, लेकिन इसका उपयोग डायरिया, उल्टी, बुखार-खांसी में होता रहा है. इतना ही नहीं घावों और ज़ख्मों को भरने के लिए यूरोप में इस्तेमाल होती रही है! तो यह है शर्करा यानी चीनी का पूरा इतिहास!