दिन था 27, फरवरी 2002 को भला कौन भूल सकता है। ये भारतीय इतिहास का वो काला दिन है जो कोई भी भारतीय याद नही करना चाहेगा। इस दिन गोदरा ट्रेन में अग्नि कांड हुआ था जिसमे 59 लोगो ने अपनी जान गवाई थी। इस कांड पर गुजरात के गोधरा में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए दोषी रफीक भटुक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।ये बात गौरतलाब हैं की रफीक इस मामले में दोषी पाया गया 35वा आरोपी हैं। उससे पहले 34 दोषियों को भी आजीवन कारावास दिया जा चुका है।
क्या क्या गोधरा कांड का अब तक का घटना क्रम?
एक वेबसाईट के अनुसार कुछ यू रहा घटना क्रम:
- 27 फ़रवरी 2002 गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में मुस्लिमों द्वारा आग लगाए जाने के बाद 59 कारसेवकों हिंदुओं (हिन्दुओ) की मौत हो गई। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
- 28 फ़रवरी 2002 : गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़का जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गए।
- 03 मार्च 2002 : गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया।
- 06 मार्च 2002 : गुजरात सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड (काण्ड) और उसके बाद हुई घटनाओं की जाँच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की।
- 09 मार्च 2002 : पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भादसं की धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) लगाया।
- 25 मार्च 2002 : केंद्र (केन्द्र) सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से पोटा हटाया गया।
- 18 फ़रवरी 2003 : गुजरात में भाजपा सरकार के दोबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगा दिया गया।
- 21 नवंबर : उच्चतम न्यायालय ने गोधरा ट्रेन जलाए जाने के मामले समेत दंगे से जुड़े सभी मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगाई।
- 04 सितंबर 2004 : राजद नेता लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्री रहने के दौरान केद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के आधार पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश यूसी बनर्जी की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया गया। इस समिति को घटना के कुछ पहलुओं की जाँच का काम सौंपा गया।
- 21 सितंबर : नवगठित संप्रग सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और अरोपियों के विरुद्ध पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया।
- 17 जनवरी 2005 : यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि एस-6 में लगी आग एक ‘दुर्घटना’ थी और इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी।
- 16 मई : पोटा समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाए जाएँ।
- 13 अक्टूबर 2006 : गुजरात उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यूसी बनर्जी समिति का गठन ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जाँच कर रहा है। उसने यह भी कहा कि बनर्जी की जाँच के परिणाम ‘अमान्य’ हैं।
- 26 मार्च 2008 : उच्चतम न्यायालय ने गोधरा ट्रेन में लगी आग और गोधरा के बाद हुए दंगों से जुड़े आठ मामलों की जाँच के लिए विशेष जाँच आयोग बनाया।
- 18 सितंबर : नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जाँच सौंपी और कहा कि यह पूर्व नियोजित षड्यंत्र था और एस6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया।
- 12 फ़रवरी 2009 : उच्च न्यायालय ने पोटा समीक्षा समिति के इस फैसले की पुष्टि की कि कानून को इस मामले में नहीं लागू किया जा सकता है।
- 20 फरवरी : गोधरा कांड (काण्ड) के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाए जाने के उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। इस मामले पर सुनवाई अभी भी लंबित है।
- 01 मई : उच्चतम न्यायालय ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से प्रतिबंध हटाया और सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जाँच दल ने गोधरा कांड और दंगे से जुड़े आठ अन्य मामलों की जाँच में तेजी आई।
- 01 जून : गोधरा ट्रेन कांड (काण्ड) की सुनवाई अहमदाबाद के साबरमती केंद्रीय (केन्द्रीय) जेल के अंदर (अन्दर) शुरू हुई।
- 06 मई 2010 : उच्चतम न्यायालय सुनवाई अदालत को गोधरा ट्रेन कांड समेत गुजरात के दंगों से जुड़े नौ संवेदनशील मामलों में फैसला सुनाने से रोका।
- 28 सितंबर : सुनवाई पूरी हुई लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाए जाने के कारण फैसला नहीं सुनाया गया।
- 18 जनवरी 2011 : उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाने पर से प्रतिबंध (प्रतिबन्ध) हटाया।
- 22 फरवरी : विशेष अदालत ने गोधरा कांड (काण्ड) में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया।
- 1 मार्च 2011: विशेष न्यायालय ने गोधरा कांड (काण्ड) में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई।
- जिसे बाद में 2002 में गोधरा में ट्रेन के डिब्बे जलाने के मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।
क्या कहती है रिपोर्ट ?
इस मामले की जांच के लिए कई रिपोर्ट बनाई गयी जिसमे से थी नाना आती रिपोर्ट। इस रिपोर्ट के अनुसार 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे को जलाने की घटना एक पूर्व नियोजित साजिश थी, कोई दुर्घटना नहीं।
हिंसक भीड़ ने साबरमती एक्सप्रेस के चार डिब्बों में आग लगा दी, जिससे ट्रेन के अंदर 25 महिलाओं और 15 बच्चों सहित 58 लोग जिंदा जल गए। नानावती की रिपोर्ट में कहा गया है कि शौकत लाला और मोहम्मद लतिका ने दो डिब्बों के बीच के वेस्टिबुल को एस-6 कोच में 140 लीटर पेट्रोल डालने के लिए काट दिया था। एक अन्य आरोपी हसन लाला ने आग लगाने के लिए जलते हुए लत्ता को कोच में फेंक दिया। यात्रियों को बाहर आने से रोकने के लिए करीब 20 मिनट तक कोच पर बाहर से पथराव किया गया.
मौलवी उमेरजी के घर पर साजिश रची गई थी और रजा कुर्जूर और सलीम पनवाला ने इसे अंजाम दिया था। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि घटना से एक दिन पहले गोधरा के एक पेट्रोल पंप से इस प्रकरण के लिए पेट्रोल प्राप्त किया गया था।
इन लोगों द्वारा रची गई साजिश आगे भी आतंक पैदा करने और प्रशासन को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा लगती है।”
नानावटी आयोग ने भी स्वीकार किया है कि कारसेवकों की वापसी पर कोई पूर्व खुफिया जानकारी नहीं थी और यही कारण है कि पुलिस विभाग अनजान पकड़ा गया था। साजिश के तहत अफवाहें फैलाई गईं कि एक मुस्लिम लड़की का अपहरण कर लिया गया है ताकि बड़ी संख्या में मुसलमान मौके पर इकट्ठा हो सकें।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका निष्कर्ष ट्रेन के यात्रियों के बयान सहित विभिन्न आधारों पर आधारित था कि यात्रियों को कोच से बाहर आने से रोकने के लिए 10-20 मिनट तक पथराव जारी रहा।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी टी नानावती की रिपोर्ट में कहा गया है, “इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मुख्यमंत्री या उनकी परिषद के किसी मंत्री या पुलिस अधिकारियों ने गोधरा की घटना में कोई भूमिका निभाई थी।” ट्रेन जलने की घटना में
शमिल थे और इस मामले में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी गई थी।