वर्तमान में विदेशी साइबर ठग भारतीयों को नुकसान पहुंचा रहे हैं! इन दिनों साइबर ठगी के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। इंटरनेट के जरिए जालसाज ठगी के नए-नए तरीके अपना कर लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। वैसे तो साइबर ठगी के केस दुनियाभर में आ रहे हैं, लेकिन बड़ी संख्या में भारतीय इसके शिकार हो रहे हैं। आरोप है कि साइबर अपराध मुख्य रूप से तीन दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों म्यांमार, लाओस और कंबोडिया में बैठे अपराधियों द्वारा किए जा रहे हैं। भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र I4C के अनुसार, जनवरी से अप्रैल तक हुए साइबर क्राइम के कुल मामलों में से 46% इन्हीं तीन देशों से शुरू हुए थे। इन मामलों में करीब 1,776 करोड़ रुपये की ठगी हुई। I4C केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत देश में साइबर अपराध की रोकथाम, जांच और पड़ताल के लिए काम करता है। इस तरह के घोटाले करने वाले सोशल मीडिया पर फ्री ट्रेडिंग टिप्स देने वाले विज्ञापन देते हैं, जिसमें अक्सर मशहूर शेयर मार्केट एक्सपर्ट्स की तस्वीरों और फर्जी न्यूज आर्किटल का इस्तेमाल किया जाता था। पीड़ितों को व्हाट्सएप ग्रुप या टेलीग्राम चैनल से जुड़ने के लिए कहा जाता था, जहां उन्हें शेयरों में निवेश करके पैसा कमाने के टिप्स दिए जाते हैं।
कुछ दिनों के बाद, पीड़ितों को भारी मुनाफा कमाने के लिए और गाइड करने के लिए कुछ खास ट्रेडिंग एप्लिकेशन इंस्टॉल करने और खुद को रजिस्टर करने के लिए कहा जाएगा। पीड़ित साइबर अपराधियों द्वारा की गई सिफारिशों के बाद ऐप्स पर निवेश करना शुरू कर देते हैं। इनमें से कोई भी ऐप SEBI के साथ रजिस्टर नहीं होगा, लेकिन पीड़ित आमतौर पर इसकी जांच करने में लापरवाही करते हैं। कई पीड़ितों ने शेयर खरीदने के लिए खास बैंक खातों में पैसा जमा किया, और उन्हें उनके डिजिटल वॉलेट में कुछ फर्जी मुनाफा दिखाया गया। लेकिन जब उन्होंने इस पैसे को निकालने की कोशिश की, तो उन्हें एक संदेश दिखाया गया कि वे इसे तभी निकाल सकते हैं जब उनके वॉलेट में एक निश्चित राशि, मान लीजिए 30-50 लाख रुपये जमा हो जाए। इसका मतलब था कि पीड़ित को निवेश करते रहना था, और कभी-कभी, उन्हें अपने कथित तौर पर अर्जित किए गए मुनाफे पर टैक्स का भुगतान भी करना पड़ता था। I4C के CEO राजेश कुमार ने कहा, ‘इस साल के पहले चार महीनों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद, हमने पाया कि भारतीयों को ट्रेडिंग घोटाले में 1420.48 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।’
साइबर फ्रॉड का दूसरा और नया तरीका साइबर फ्रॉड है। इसमें जालसाज पीड़ित को कॉल करते हैं और बताते हैं कि उन्हें किसी ने अवैध सामान, ड्रग्स, फर्जी पासपोर्ट या अन्य बैन वस्तुओं से भरा पार्सल भेजा है। कुछ मामलों में, टारगेट व्यक्ति के रिश्तेदारों या दोस्तों को बताया जाएगा कि उनका अपना किसी गंभीर अपराध में शामिल पाया गया है। एक बार जब उन्हें अपना शिकार (जिसे सावधानी से चुना जाता था) मिल जाता था, तो अपराधी उनके साथ स्काइप या किसी अन्य वीडियो कॉलिंग प्लेटफॉर्म पर संपर्क करते थे। वे खुद को कानून प्रवर्तन अधिकारियों के रूप में पेश करते हैं। जालसाज अक्सर वर्दी पहनते हैं और पुलिस स्टेशनों या सरकारी कार्यालयों जैसे स्थानों से फोन करने का नाटक करते। इसके बाद वो कुछ रिश्वत के बदले केस बंद करने की बात करते।
इस तरह के फ्रॉड में पीड़ितों को आम तौर पर विदेशी नंबर से एक व्हाट्सएप संदेश मिलता है, जो कथित तौर पर किसी कंपनी के प्रतिनिधि का होता था, जिसमें घर से बैठे-बैठे 30,000 रुपये जैसी बड़ी रकम कमाने का ऑफर दिया जाता है। लोगों को बताया जाता है कि उन्हें फाइव स्टार रेटिंग देकर कुछ संस्थाओं की सोशल मीडिया रेटिंग बढ़ाने में मदद करनी होगी। काम पूरा होने के बाद, पीड़ितों को एक कोड मिलता है, जिसे उन्हें टेलीग्राम पर अपने मैनेजर के साथ शेयर करने के लिए कहा जाता है। मैनेजर पीड़ितों से पूछता है कि वे अपना पैसा कैसे प्राप्त करना चाहते हैं। कई बार पीड़ितों को यबट्यूब या गूगल पर रेटिंग देने के लिए 500 रुपये जैसी छोटी रकम ट्रांसफर भी कर दी जाती है।
असली खेल यहां से शुरू होता है। जालसाज लोगों को प्री-पेड या मर्चेंट काम करने के लिए कहता है, जिसमें उसकी कमाई 1,500 से एक लाख रुपये तक हो सकती है। जालसाज पीड़ितों से इसके बदले कुछ पैसे मांगते हैं, मना करने पर उन्हें ब्लॉक कर दिया जाता है। लेकिन जो लोग ऑफर चुन लेते हैं उन्हें बताया जाता है कि पैसा और मुनाफा एक दिन में उनके पास आ जाएगा। हालांकि अगले दिन पीड़ितों को बताया जाता है कि उनका परफॉर्मेंस स्कोर अच्छा नहीं है। उन्हें नए काम में भाग लेकर इसे सुधारने की आवश्यकता है ताकि उन्हें अपना पैसा मिल सके। इस तरह के घोटाले में भारतीयों को 222.58 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
I4C ने एनसीआरपी पर डेटा का विश्लेषण करने, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त सूचनाओं और कुछ ओपन-सोर्स सूचनाओं के बाद म्यांमार, लाओस और कंबोडिया पर फोकस किया। कुमार ने कहा, ‘इन देशों में स्थित साइबर अपराध ऑफिस फर्जी रोजगार के अवसरों के साथ भारतीयों को लुभाने के लिए सोशल मीडिया का फायदा उठाकर धोखाधड़ी की रणनीति बनाते हैं। I4C ने पाया है कि अपराध में इस्तेमाल किए गए कई वेब अनुप्रयोगों में मंदारिन अक्षर थे। कुमार ने कहा, “हम किसी तरह के चीनी कनेक्शन से इनकार नहीं कर सकते।”