वर्तमान में लद्दाख में ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं! पिछले महीने की शुरुआत से ही लद्दाख में लोग पूर्ण राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने जैसी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठन अपेक्स बॉडी लेह और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेतृत्व में उनके प्रतिनिधियों की पहले 19 फरवरी को और फिर 24 फरवरी को केंद्र सरकार से बातचीत हुई। बातचीत नाकाम रही और अब लद्दाख फिर से आंदोलन की राह पर है। सरकार की तरफ से कहा गया था कि 24 फरवरी की बैठक में लीगल एक्सपर्ट्स भी होंगे और हमारी उम्मीद के मुताबिक कुछ घोषणा होगी। मगर उस बैठक में न तो गृह सचिव थे, न गृह राज्य मंत्री और न ही लीगल एक्सपर्ट्स। छोटी-मोटी बातों पर चर्चा के बाद अगली बैठक 1-2 मार्च को रखने की बात होने लगी। यह व्यावहारिक नहीं था, क्योंकि तब तक चुनावी आचार संहिता लागू हो जाती। लिहाजा 27-28 फरवरी तक बैठक का आश्वासन दिया गया। लेकिन वह समय गुजर चुका है। अब लद्दाख की जनता फिर से बड़े स्तर पर आंदोलन करेगी। हम आमरण आंदोलन पर उतरेंगे।
यूं तो छठी अनुसूची केवल पर्यावरण के लिए नहीं है। जनजातीय संस्कृति, जमीन आदि के संरक्षण के लिए भारत के संविधान में यह प्रावधान रखा गया है। जहां तक लद्दाख की आबोहवा और पहाड़ों को बचाने की बात है, तो सिक्स्थ शेड्यूल कहता है कि यहां जिला स्तर पर एक ऑटोनोमस काउंसिल होगी, जिसमें चुने हुए प्रतिनिधि होंगे। ये प्रतिनिधि निर्णय करेंगे कि इलाके का कैसा विकास हो। इस काउंसिल को नियम बनाने की पावर होगी। वह तय करेगी कि कितना विकास हो ताकि यहां की आबोहवा, पहाड़ों पर कोई असर न हो। अभी लेह-लद्दाख में जो दो काउंसिल हैं, उनके पास कोई पावर नहीं है। अभी कहा जाता है कि सिक्स्थ शिड्यूल में लद्दाख को लाया जाता है, तो आप विकास पर रोक लगा देंगे। लेकिन ऐसी बात नहीं है। स्थानीय जनता के तालमेल से विकास का कोई भी काम हो सकता है। उद्योग लग सकते हैं।
दुनिया भर के लोगों की जो जीवनशैली है, उससे बड़े स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसेस का उत्सर्जन होता है। उसकी वजह से पूरी दुनिया का तापमान बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय में और तेजी से उसका असर देखा जा रहा है। वैसे भी हमारे ग्लेशियर्स बहुत जल्द खत्म होने वाले हैं। हमारी अपील है कि बड़े शहरों में लोग सादा जीवन बिताएं ताकि पहाड़ों में हम आसानी से जी पाएं। जहां तक स्थानीय स्तर की बात है, तो यहां जो भी उद्योग हैं, यहां तक कि घरों को गर्म करने के लिए जो आग जलाई जाती है और डीजल की गाड़ियों से जो धुआं निकलता है- ये सब ब्लैक कार्बन हैं। हवा के साथ वे particulate matter उड़ते हुए ग्लेशियर पर बैठ जाते हैं जिससे ग्लेशियर पर काली परत जम जाती है। काला रंग सूरज की किरणों को सोख लेता है और ग्लेशियर को गर्म करता है। इमिशन और ग्लोबल वॉर्मिंग से ज्यादा ये कारण ग्लेशियर्स को पिघला रहे हैं।
आप समझ सकते हैं कि घरों के धुएं से और पर्यटकों की टैक्सी से इतना नुकसान हो रहा है, तो बड़े स्तर पर उद्योग आने से क्या होगा। अभी हाल ही में कश्मीर यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च बहुत चर्चा में आई। द्रास और कारगिल के इलाके में जो ग्लेशियर्स हैं, वे और ग्लेशियर्स से ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। इसका कारण हाइवे पर चलने वाली गाड़ियां और अन्य मानवीय गतिविधियां हैं। टूरिज्म इंडस्ट्री यहां डिवेलप हो गई तो इसका फायदा कुछ लोगों को होगा, मगर बाकी लोगों को लेने के देने पड़ जाएंगे। उस रोजगार का क्या फायदा जो भविष्य को बर्बाद कर दे? इसलिए संतुलन होना चाहिए कि किस स्तर तक हम रोजगार लें और कब उस प्रक्रिया पर विराम लगा दें।
आइस स्तूप अभी पूरी शक्ल में नहीं आया है। अभी इस पर बहुत अधिक शोध की जरूरत है। हम लद्दाख के बाहर हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अन्य हिमालयी क्षेत्रों में भी देख रहे हैं। जिन जगहों पर ठंड होती है और पानी की कमी है, वहां यह प्रॉजेक्ट कारगर हो सकता है। कुछ तरीकों पर भी हम विचार कर रहे हैं जिससे बर्फ के बांध बनाकर पानी को रोका जा सके ताकि ग्राउंड वॉटर रिचार्ज भी हो पाए। हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय से हमारी बात चली थी कि कैसे ऐसे तरीकों से हिमालय के और इलाकों में भी ग्राउंड वॉटर रिचार्ज किया जा सकता है। इन पर काम करने के लिए हमने लेह के पास हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ ऑल्टरनेटिव लद्दाख नाम से एक वैकल्पिक विश्वविद्यालय बनाया है। इसमें मैं अभी कार्यरत हूं। यहां पर शोध किया जाता है और गांवों में, वादियों में उसका इस्तेमाल किया जाता है। उसके साथ विद्यार्थियों को भी जोड़ा जा रहा है ताकि ट्रेनिंग पाकर वे अपने इलाके में इस प्रयोग को आगे बढ़ाएं। सरकार से ही उम्मीद लगाए बैठा हूं कि उसने लद्दाख की जनता को जो भरोसा दिलाया है, जरूर पूरा करेगी। ‘रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाई पर वचन न जाई।’ जो सरकार राम में इतनी आस्था रखती है, वह अपना वचन निभाएगी और लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल कर यहां के संवेदनशील पर्यावरण को बचाने की दिशा में सशक्त कदम उठाएगी, ऐसा हमारा मानना है।