वर्तमान में भारत दुनिया को अपनी सॉफ्ट पावर दिखा रहा है! दुनिया के नक्शे पर अपनी मजबूत पहचान बनाने के लिए भारत इन दोनों कूटनीति के साथ-साथ अपनी सॉफ्ट पावर पर भी जोर दे रहा है। इसी दिशा में भारत सरकार का अगला कदम है- बिग कैट डिप्लोमेसी। दुनिया भर में बिग कैट परिवार को लेकर सामने आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए पीएम मोदी ने शेर व बाघ की तमाम प्रजातियों को बचाने के लिए दुनिया के सामने इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस आईबीसीए नामक मंच की परिकल्पना रखी थी। इसी दिशा में हाल ही में केंद्र सरकार ने आईबीसीए को मंजूरी देते हुए इसके लिए अगले पांच सालों में डेढ़ सौ करोड रुपए का बजट रखा है। गौरतलब है कि दुनिया के 96 देशों में बिग कैट परिवार की प्रजातियां पाई जाती हैं। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना था कि टाइगर संरक्षण की दिशा में भारत हुए कामों को आज दुनिया ने पहचाना और सराहा है। उसी की तर्ज पर अब भारत आईबीसीए के लिए काम करेगा, जिसका हेड क्वार्टर भारत में बनेगा। यह पहल बिग कैट परिवार की प्रजातियों के संरक्षण से जुड़े बेहतर प्रयासों को दुनिया के सामने रखेगा। उल्लेखनीय है कि दुनिया के 16 देशों ने इस गठबंधन में शामिल होने के लिए अपनी सहमति दे दी है, इनमें बांग्लादेश, आर्मेनिया, भूटान, ब्राजील, कंबोडिया, मिस्र, इथियोपिया, इक्वाडोर, केन्या, मलेशिया, मंगोलिया, नेपाल, नाइजीरिया और पेरु जैसे देश शामिल हैं। इनके अलावा, पर्यावरण व जैव विविधता से जुड़े 10 संगठनों ने भी इस मंच से जुड़ने के प्रति अपनी दिलचस्पी दिखाई है। इनमें स्विजरलैंड से इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर-आईयूसीएन, किर्गिस्तान का विज्ञान और संरक्षण अंतरराष्ट्रीय हिम तेंदुआ ट्रस्ट, रूस का अमूर टाइगर सेंटर जैसे संगठन शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि बिग कैट परिवार में टाइगर, शेर, चीते, जगुआर, प्यूमा, तेंदुआ और हिम तेंदुआ आता है। इनमें से पांच प्रजातियां तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर, टाइगर, शेर और चीता भारत में पाई जाती हैं। इन पांच प्रजातियों को लेकर पिछले कई सालों में भारत में काफी काम हुआ है। हाल ही में भारत सरकार ने ऐसी तमाम प्रजातियों की आबादी की गिनती कराई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जहां अपने यहां टाइगरों की आबादी 3167 है तो वहीं तेंदुओं की संख्या 13,874 और हिम तेंदुओं की आबादी 800 है। गौरतलब है कि शेर केवल भारत में ही हैं और इनकी आबादी भी 800 से ज्यादा है, जबकि देश से लुप्त हो चुके चीतों को फिर से भारत में बसाने की कोशिश हुई है, जिसके तहत 21 चीतें फिलहाल देश में मौजूद हैं।
आईबीसीए के जरिए भारत सिर्फ दुनिया में बिग कैट परिवार की प्रजातियां को लेकर सिर्फ जागरूकता और कैपेसिटी बिल्डिंग के काम तक ही सीमित नहीं रहना, बल्कि वह दुनिया के कुछ उन देशों में बिग कैट परिवार की प्रजाति को भी देना चाहता है, जहां से फिलहाल उनका अस्तित्व खत्म हो चुका है। सूत्रों के मुताबिक, भारत कजाकिस्तान और कंबोडिया जैसे देशों को इस प्रजाति के कुछ जीव दे सकता है। इतना ही नहीं, भारत अपने यहां हुए टाइगर संरक्षण की सफलता को अब दुनिया के देशों के साथ साझा करेगा। इस मामले में कंबोडिया के साथ करार को लेकर बातचीत काफी आगे तक बढ़ चुकी है। भारत कंबोडिया को बाघ संरक्षण का पाठ पढ़ाएगा। यहां आखिरी बाघ 2007 में देखा गया था, जिसकी तस्वीरें भी उतारी गई थीं। अगर सब कुछ ठीक रहा तो भविष्य में भारत कंबोडिया में फिर से बाघ को बसाने के लिए हर तरह की मदद कर सकता है। जिससे वह अपने देश में बाघों को फिर से बसा सके। बताया जाता है कि इन देशों में इन प्रजातियों को भारत द्वारा कुछ इस तरह से दिया जाएगा, जैसे अफ्रीकी देशों से चीते अपने यहां आए थे। भारत इन प्रजातियों को देने के साथ-साथ लेने वाले देशों में कैपेसिटी बिल्डिंग से लेकर जागरूकता और इन जीवों के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने में भी मदद करेगा।
गौरतलब है कि आईबीसीए के रूप में पहली बार होगा कि जब देशों की सीमाओं से परे बाघ और उनकी प्रजाति के अन्य जीवों का संरक्षण एक संगठित प्रयास के तहत किया जाएगा। इसका मकसद बिग कैट परिवार की प्रजातियां की आबादी को बढ़ाने के साथ, इनके अवैध शिकार को रोकना, इनके संरक्षण की श्रेष्ठ प्रथाओं को साझा करना, सदस्य देशों के साथ मिलकर दुनिया के 96 देशों के पारिस्थितिक तंत्र को भी बचाना है। आईबीसीए की मदद से भारत दुनिया के देशों को नेतृत्व करते हुए बिग कैट रेंज देशों और बिग कैट संरक्षण में रुचि रखने वाले गैर-रेंज देशों को एक साथ ला सकेगा। इससे इन देशों के बीच इको-पर्यटन के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ेगा। दरअसल, अधिकांश देशों में इस प्रजाति के सभी जीवों को, चाहे वह बाघ, शेर या फिर तेंदुआ हों, अपने घरों को छिनने के साथ तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।