यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भारत और चीन फिर से नजदीक आ रहे हैं या नहीं! एशिया के दो बड़े देश हैं चीन और भारत। दोनों में दशकों से विवाद चलता रहा है। चीन भारत का पड़ोसी भी है और प्रतिद्वंदी भी। अपनी विस्तारवाद की पुरानी नीति पर चलने वाले चीन के दुनिया के 22 देशों से विवाद है। चीन अपनी इस आदत को बदलने को तैयार नही हैं। पश्चिमी देश भलीभांति इस बात से वाकिफ हैं कि अगर ये दोनों देश एक साथ एक मंच पर आ गए तो इनसे बड़ी महाशक्ति पूरी दुनिया में नहीं होगी, लेकिन वो ये भी जानते हैं कि इनका एक मंच पर आना असंभव तो नहीं लेकिन आसानी से संभव भी नहीं है। बीते दो दिनों में जो कुछ भी हुआ वो दुनिया के लिए एक बड़ा मैसेज था। वो ये था कि चीन और भारत के बीच मतभेदों को दूर करने की कवायद की जा रही है। इसमें कुछ सकारात्मक बदलाव देखने को भी मिले है। ये सब उस वक्त हो रहा है जबकि रूस में ब्रिक्स समिट चल रही है। पीएम मोदी रूस के लिए रवाना हो चुके थे। वो रूस के कजान शहर पहुंचे ही थे कि चीन ने भी भारत की बात पर मुहर लगाते हुए कहा कि पूर्वी लद्दाख पर एलएसी विवाद पर हम अपनी पुरानी स्थिति पर लौटेंगे। दुनियाभर के एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि इस दोस्ती के पीछे रूस है। रूसी प्रेसिडेंट पुतिन ने ही चीन पर दवाब बनाया है तभी चीन माना होगा। जब तक हमारे पास इसका कोई ठोस सबूत नहीं होगा तब तक हम इसका दावा नहीं कर सकते है लेकिन ये एक्सपर्ट्स का अपना एक ओपिनियन हो सकता है।
अब ब्रिक्स समिट से एक और तस्वीर सामने आई है। वो तस्वीर अपने आप में एक कहानी बयां कर रही है। कई तस्वीर आजीवन के लिए अमिट हो जाती है ऐसी तस्वीरों को हम लोग ऐतिहासिक शब्द देते हैं। ब्रिक्स समिट के दौरान डिनर का आयोजन किया गया। डिनर पर ही म्यूजिकल शो भी था। जब भी इस तरह के वैश्विक आयोजन होते हैं तो इसमें बारीक सी बारीक चीजों का ध्यान रखा जाता है। प्रोटोकॉल का ध्यान रखा जाता है। कौन नेता कहां बैठेगा, किस तरफ बैठेगा इन सब बातों का बहुत ही बारीकी से परखा जाता है। डिनर के दौरान बीच में राष्ट्रपति पुतिन बैठे हुए हैं। उनके एक तरफ पीएम मोदी और दूसरी तरफ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बैठे हुए हैं। हो सकता है कि ये तस्वीर बाकी देशों के लिए कोई खास न हो मगर जो तीन नेता इसमें शामिल हैं उन देशों के लिए ये बेहद खास है। किसी से ये बात छिपी नहीं है कि दशकों से चीन और भारत के संबंध कैसे रहे हैं।
अरुणाचल प्रदेश और पूर्वी लद्दाख को चीन अपनी सरजमी कहता है। यहां के गांवों को वो अपने नाम दे देता है। भारत अगर वहां विकासकार्य कराता तो चीन बयानबाजी करता है। 1962 में हिंदी चीनी भाई भाई का नारा देकर उसने हमारे साथ विश्वासघात किया। भारत का पड़ोसी देश है पाकिस्तान। दहशतगर्दों के लिए जन्नत की तरह ये देश भारत को अस्थिर करने में लगा रहता है। चीन उसका साथ सिर्फ इसलिए देता है क्योंकि वो भारत का दुश्मन है। चीन पाकिस्तान में निवेश कर रहा है। जो भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है। इतनी सारी असहजताओं के बावजूद अगर ब्रिक्स समिट के दौरान बीच में पुतिन और अगल बगल भारत और चीन के नेता मौजूद हैं तो ये बड़ी बात है।
भारत और चीन एशिया की दो महाशक्तियां हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पश्चिमी देशों से रूस का मोहभंग हो चुका है. रूस एशिया की तरफ देख रहा है। उसने चीन के साथ अपने रिश्तों को बहुत कम समय में मजबूत किया है। भारत रूस की दोस्ती पुरानी है। अब रूस का प्रयास है कि दोनों दोस्त साथ आकर काम करें और ये तिकड़ी पूरी दुनिया को हैरान करने के लिए काफी है।
पुतिन जानते हैं कि अगर चीन के साथ भारत का जमीनी विवाद सुलझ जाएगा तो उनके लिए भी फायदेमंद होगा। साथ ही पश्चिमी देशों के लिए ये बहुत बड़ा झटका होगा। इन सब चर्चाओं को करते हुए हम पाकिस्तान को अभी छोड़ देते हैं। इधर मैं एस जयशंकर की बात का जिक्र करूंगा। एस जयशंकर की छवि पूरी दुनिया में एक तेज तरार्र नेता की बनी हुई है। ऐसा मैं नहीं बल्कि दुनिया के तमाम नेता कह चुके हैं। अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने अपनी किताब ‘Never Give an Inch: Fighting for the America I Love’ में एस जयशंकर के बारे में काफी बातें लिखीं थीं। हालांकि ये किताब विवादित भी हुई। इस किताब में पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के लिए गलत शब्द का प्रयोग किया गया था। एस जयशंकर ने इसकी कड़ी आलोचना की थी। एस जयशंकर ने एक दिन पहले एक निजी टेलीवीजन न्यूज चैनल से बातचीत के दौरान रूस संबंधों को लेकर बड़ी बातें कहीं।
एस जयशंकर ने कहा कि अगर आप इतिहास पर नज़र दौड़ाएं तो 1947 में भारत की आज़ादी के बाद से सोवियत यूनियन या रूस ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिससे भारत के हितों पर नकारात्मक असर पड़ा हो। मुझे लगता है कि इस बात से कोई भी असहमत नहीं होगा. यह बड़ा बयान है क्योंकि दुनिया में ऐसा कोई भी देश नहीं है, जिसके लिए इतना बड़ा बयान दिया जा सके। जयशंकर ने कहा, ‘अभी रूस की स्थिति बिल्कुल अलग है। पश्चिम के साथ रूस का संबंध पटरी से उतरा हुआ है। अभी एक ऐसा रूस है जो एशिया की ओर ज़्यादा झुका हुआ है। ऐसे में हमें खुद से पूछना चाहिए कि रूस अगर एशिया की तरफ़ ज़्यादा झुक रहा है तो एशिया में क्या उसके पास ज़्यादा विकल्प नहीं होने चाहिए? और एक एशियाई देश के रूप में क्या हमें एशिया में कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए जो हमारे राष्ट्र के हित में हो?’
जयशंकर ने कहा कि ये साफ है कि रूस में प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। दूसरी तरफ भारत को विकास के लिए इन संसाधनों की जरूरत है। लोग रूस के तेल की बात करते हैं, लेकिन बात केवल तेल की नहीं है। कोयला, उर्वरक और मेटल जैसी कई चीज़ें हैं। रूस के साथ आर्थिक संबंध बढ़ाने के कई कारण हैं।’ जयशंकर बातचीत के दौरान ही आगे कहते हुए नजर आ रहे हैं कि अगर आप यूरेशियाई भूभाग को देखें तो रूस, चीन और भारत तीन बड़े देश हैं। तीनों देशों के आपसी अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं। रूस हमारे लिए रणनीतिक और आर्थिक दोनों लिहाज से ठीक है। भारत और रूस के संबंधों को आप भरोसेमंद कह सकते हैं क्योंकि कई मौकों पर हमने ये पाया है, लेकिन चीन को आप कतई भरोसेमंद नहीं कह सकते। अब पुतिन ही दोनों देशों के बीच विवाद खत्म करना चाहते हैं ताकि उनकी दुविधा भी खत्म हो जाए और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों को झटका दे दिया जाए।