यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भारतीय अमेरिका के स्थाई निवासी नहीं बन पा रहे हैं ! अमेरिका में रह रहे भारतीयों के लिए ‘ग्रीन कार्ड’ पाना किसी सपने के सच होने से कम नहीं है। यहां लोगों को ग्रीन कार्ड के लिए कभी खत्म ना होने वाला इंतजार करना पड़ रहा है। राहत की उम्मीद भी दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रही है। हालांकि यूएस ब्यूरो ऑफ कॉन्सुलर अफेयर्स (US Bureau of Consular Affairs) की आधिकारिक वेबसाइट में जानकारी दी गई है कि ग्रीन कार्ड प्रक्रिया में 24 महीने से ज्यादा नहीं लगते हैं। लेकिन अमेरिका में रह रहे कई भारतीयों एनआरआई ने बताया कि 40 साल से लेकर 100 साल तक का इंतजार करने को कहा जा रहा है। यह स्थिति तब है जब ये लोग दशकों से अमेरिका में रह रहे हैं और सभी जरूरी शर्तें पूरी करते हैं, जैसे कि योग्य वीजा होना और कोई आपराधिक रिकॉर्ड न होना। 1996 में सिकंदराबाद से अमेरिका आए और न्यू जर्सी में रहने वाले एक शख्स ने बताया, ‘मैंने 2005 में अपने ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन किया था। मेरा वर्तमान वेटिंग टाइम 81 वर्ष है। मैं पहले ही 53 वर्ष का हो चुका हूं।’ उन्होंने कहा, ‘जब भी मैं इमिग्रेशन और सिटीजनशिप डिपार्टमेंट से संपर्क करता हूं, तो वे न केवल भारत से बल्कि दुनिया भर से बड़ी संख्या में आवेदनों का हवाला देते हैं।’ उन्हें चिंता है कि भारत में पैदा हुए उनके बच्चों को भी अपने जीवनकाल में ग्रीन कार्ड नहीं मिल पाएगा। यह कोई पहला मामला नहीं है। एक थिंक टैंक, केटो इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले 2024 में अधिकारियों के पास 34.7 मिलियन आवेदन दायर किए गए थे, जिनमें से केवल 3% को ही इस वित्तीय वर्ष में स्थायी निवास प्राप्त होने की उम्मीद है। इस वर्ष के लिए सफल आवेदनों की वार्षिक सीमा 1.1 मिलियन निर्धारित की गई है।
विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने कहा कि यह लंबा इंतजार निराशाजनक है। कैलिफोर्निया में रहने वाले एक प्रोजेक्ट मैनेजर ने कहा, ‘मेरी प्रतीक्षा अवधि 62 वर्ष है, और मैं लगभग 40 वर्ष का हूं। जब मैं मर जाऊंगा तो ग्रीन कार्ड का क्या इस्तेमाल होगा? मैं सभी मानदंडों को पूरा करता हूं- योग्य वीजा, कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं।’ वह 2010 में नागपुर से अमेरिका आए थे।
ग्रीन कार्ड अमेरिका में स्थायी निवास और काम करने का रास्ता खोलता है। ग्रीन कार्ड, जिसे आधिकारिक तौर पर परमानेंट रेजिडेंट कार्ड कहा जाता है, अमेरिका में स्थायी रूप से रहने और काम करने की अनुमति देता है। इससे अमेरिका आने-जाने के लिए वीजा की आवश्यकता नहीं पड़ती है। साथ ही यह अमेरिकी नागरिकता के लिए आवेदन करने का रास्ता भी खोलता है। यही नहीं अमेरिका में नौकरी कर रहे 12 लाख भारतीयों को ग्रीन कार्ड आवेदन किए हुए कई साल बीत गए, मगर अभी तक उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। उनका वेटिंग पीरियड बढ़ता ही जा रहा है। इन 12 लाख भारतीयों में उनके आश्रित भी शामिल हैं। इनमें ज्यादातर प्रोफेसर, रिसर्चर, मल्टीनेशनल कंपनियों में एग्जीक्यूटिव और मैनेजर, आईटी प्रोफेशनल्स वगैरह शामिल हैं। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। USCIS ने हाल ही में अमेरिका में नौकरी आधारित ग्रीन कार्ड वीजा का बुलेटिन जारी किया है, जिससे पता चलता है कि अभी वहां पर ग्रीन कार्ड पाने की राह बेहद कठिन है। आज ग्रीन कार्ड के बारे में समझते हैं।
अमेरिका में जिसके पास ग्रीन कार्ड होता है, उसे वहां स्थायी रूप से बसने या वहां रहकर काम करने की वैधता मिल जाती है। दरअसल, यूएस सिटिजनशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज (USCIS) किसी व्यक्ति को स्थायी रूप से रहने के लिए परमानेंट रेजिडेंट कार्ड जारी करता है, जिसे आमतौर पर ग्रीन कार्ड कहा जाता है। अमेरिकी नागरिकों और स्थायी निवासियों के पति या पत्नी, माता-पिता, बच्चे और भाई-बहन परिवार आधारित ग्रीन कार्ड के लिए पात्र हो सकते हैं। इसके लिए वो लोग भी पात्र हैं, जिनके अमेरिकी नागरिकता वाले पति या पत्नी नहीं हैं। अपने माता-पिता को अमेरिका में ग्रीन कार्ड धारक के रूप में रहने के लिए आपको अमेरिकी नागरिक होना चाहिए। साथ ही आपकी उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए।
अगर अमेरिकी संसद इस मामले में जल्दी दखल नहीं देती है तो भारतीयों की संख्या दिनोंदिन और बढ़ती जाएगी। कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के एक अनुमान के अनुसार, 2030 तक अमेरिका में नौकरी कर रहे और ग्रीन कार्ड का इंतजार करने वाले भारतीयों की संख्या 21 लाख के पार हो जाएगी। इन सभी को ग्रीन कार्ड मिलने में करीब 200 साल लग जाएंगे। USCIS के अनुसार, करीब 12 लाख भारतीय ऐसे हैं, जो बरसों से अमेरिका का ग्रीन कार्ड हासिल करने के लिए कतार में हैं। इसकी वजह यह है कि अमेरिका में हर देश के हिसाब से ग्रीन कार्ड की लिमिट तय है और सालाना कोटा भी काफी कम है। अमेरिकी कानून के अनुसार, रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड जारी किए जाने की सालाना लिमिट 1,40,000 है। इसके अलावा, हर देश के लिए 7 फीसदी ही कोटा है। इसका खामियाजा भारत-चीन जैसे ज्यादा आबादी वाले देशों के हाई स्किल्ड युवाओं को भुगतना पड़ता है।