वर्तमान में अधिकतर मां-बाप अपने बच्चों का दर्द नहीं समझ पा रहे हैं! कोटा में एक और छात्र ने खुदकुशी कर ली है। कोचिंग में नीट परीक्षा की तैयारी कर रहे 20 साल के भरत राजपूत ने अपने कमरे में पंखे से लटककार जान दे दी। अपने सुसाइड नोट में उसने कहा है कि सॉरी पापा, इस बार भी मेरा सेलेक्शन नहीं हो पाएगा। छात्र नीट की तैयारी कर रहा था। उसका दो बार से सेलेक्शन नहीं हो पाया था। कोटा में इस साल अब तक 10 छात्र जान गंवा चुके हैं। नीट की परीक्षा 5 मई को होनी है। दरअसल, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सोशल वर्क एंड ह्यूमन सर्विसेज प्रैक्टिस में छपी एक रिसर्च-स्टूडेंट्स सुसाइड्स इन इंस्टीट्यूशंस ऑफ हायर एजुकेशन इन इंडिया: रिस्क फैक्टर्स एंड इंटरवेंशंस में कहा गया है कि सबसे ज्यादा खुदकुशी 15-29 साल के युवा करते हैं। इसके बाद 30-44 साल के लोगों में खुदकुशी का ट्रेंड ज्यादा देखा गया। इसके बाद 45-59 साल के लोगों में अपेक्षाकृत सुसाइड का चलन कम है, वहीं, 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में काफी कम सुसाइड करने का चलन है। सबसे ज्यादा यूथ सुसाइड हर 1 लाख में से 80 लड़कियां करती हैं। वहीं, हर 1 लाख में 34 लड़के सुसाइड कर लेते हैं। ओमेगा-जर्नल डेथ एंड डाइंग में छपी एक स्टडी कहती है कि युवाओं में सुसाइड के पीछे कई तरह के रिस्क फैक्टर होते हैं।- ये हैं बायोलॉजिकल रिस्क फैक्टर्स, साइकोलॉजिकल रिस्क फैक्टर्स और सोशियो-एनवायरनमेंटल फैक्टर्स। स्टडी के अनुसार, युवावस्था अपने आप में सुसाइड का एक रिस्क फैक्टर होता है। किशोरावस्था से युवावस्था की दहलीज पर कदम रखने वाले युवाओं में शारीरिक बदलाव काफी ज्यादा होते हैं, जो उन्हें मानसिक रूप से आक्रामक बनाता है। उनमें कई तरह के हॉर्मोन निकलते हैं, जो उनके मूड को चिड़चिड़ा और आक्रामक बनाते हैं। वो सही-गलत के फैसले नहीं ले पाते हैं। वहीं, साइकोलॉजिकल फैक्टर्स में युवावस्था की ओर बढ़ रहे लड़के-लड़कियों में नकारात्मक असर ज्यादा होते हैं। उनका आत्मविश्वास डगमगाया रहता है। नाउम्मीदी ज्यादा आसानी से घर कर सकती है। इससे आत्महत्या की आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा, किसी युवा के साथ सेक्शुअल, फिजिकल और इमोशनल अब्यूज हो रहा है या कभी हुआ है तो वह उससे किसी सदमे से कम नहीं होता है। वह जल्दी इससे उबर नहीं पाता है। वह धीरे-धीरे खुद को अकेला पाता है। इसके अलावा, परीक्षा के दौरान पढ़ाई और प्रदर्शन का लगातार दबाव कुछ बच्चे झेल नहीं पाते और खुदकुशी की कोशिश करते हैं। कोचिंग और शिक्षण संस्थानों का दबाव उन्हें ऐसे गलत कदम उठाने पर मजबूर कर देता है।
2021 में 13 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने खुदकुशी की। इसका मतलब यह है कि हर दिन 35 छात्र किसी ने किसी वजह से अपनी जान गंवा रहे थे। वहीं, 2022 में भी 13 हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान दे दी। इनमें से 18 साल से कम उम्र के 1123 खुदकुशी की वजह परीक्षा में फेल होना बताया गया। जान गंवाने वालों में 578 लड़कियां, 575 लड़के थे। वहीं, परीक्षा में फेल होने की वजह से किसी भी उम्र के 2,095 छात्रों ने अपनी जान दे दी। NCRB के आंकड़े इतने भयावह हैं कि आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं कि बच्चों के मन पर क्या गुजर रही है? वो परीक्षा के दौरान कितने टेंशन में रहते हैं। 2022 में 18 साल से कम उम्र के बच्चों ने खुदकुशी करके जान गंवाई है, उनकी संख्या 10,295 है। इनमें 5,588 लड़कियां और 4,616 लड़के थे। समाधान अभियान की प्रमुख अर्चना अग्निहोत्री कहती हैं कि 18 साल से कम उम्र की लड़कियां लड़कों के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील होती हैं। एक तो आगे बढ़ने का अवसर मिलने पर उन पर सामाजिक दबाव भी ज्यादा होता है औ दूसरा यह है कि उनके शरीर में कई तरह के हॉर्मोनल बदलाव भी होते रहते हैं। ऐसे में उन्हें इस उम्र में शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा समस्याएं होती हैं। माता-पिता इस बात को अक्सर नजरअंदाज करते हैं, जो कई बार भारी पड़ जाता है। यही बात लड़कों के मामले में भी लागू होती है। मगर, चूंकि वह घर से बाहर जा पाते हैं, दोस्त बना लेते हैं और खेलकूद जैसी गतिविधियां लड़कियों के मुकाबले ज्यादा आसानी से कर पाते हैं तो उनमें सुसाइड की आशंका अपेक्षाकृत कम होती है।
अर्चना अग्निहोत्री बताती हैं कि हमें अपने बच्चों का अभिभावक बनने के बजाय उनका दोस्त बनना होगा। परीक्षा के दौरान आपको उनसे लगातार बात करनी होगी। उनके मूड को अच्छा बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। आप बच्चे के साथ कुछ समय के लिए खेल सकते हैं। कोई फिल्म दिखा सकते हैं। उनके पसंद की कोई रेसेपी बना सकते हैं। और सबसे बड़ी बात उनके दिमाग से यह बोझ हटाना होगा कि अगर परीक्षा में फेल हो गए तो भी टेंशन की कोई बात नहीं है। परीक्षा इतनी बड़ी चीज नहीं है। कैरियर हजारों हैं। ऐसी बातें करके परीक्षा का दबाव हल्का करना चाहिए। उनसे कभी परीक्षा के नंबरों पर बात नहीं करनी चाहिए।