वर्तमान में दक्षिण के राज्य केंद्र के खिलाफ प्रदर्शन करते जा रहे हैं! दिल्ली के जंतर-मंतर पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने बुधवार को अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों और कांग्रेस विधायकों के साथ धरना दिया। उसी जगह पर केरल के मुख्यमंत्री ने गुरुवार को धरना दिया। उनके साथ दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री के अलावा वाम दलों के दूसरे बड़े नेता तो थे ही, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री औ्रर नैशनल कॉन्फ्रेंस लीडर फारुख अब्दुल्ला भी थे। यानी यह किसी एक राज्य के मुख्यमंत्री का प्रदर्शन भर नहीं रहा। प्रदर्शन पर भले दो राज्यों के मुख्यमंत्री बैठे हों, ऐसी शिकायतें दूसरी तरफ से भी आ रही हैं। दक्षिणी राज्यों की ही बात करें तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन भी ऐसी शिकायतें करते रहे हैं। उन्होंने इसी सप्ताह केरल के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर उनके प्रदर्शन के प्रति अपना समर्थन जताया।
साउथ के ये तीनों राज्य मिलती-जुलती सी शिकायतें पेश कर रहे हैं। मुख्य रूप से उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने उनके कर्ज लेने पर पाबंदियां लगा दी हैं और 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के चलते उन्हें मिलने वाला फंड भी कम हो गया है। ध्यान रहे केंद्र पर फंड मुहैया कराने में पक्षपात का आरोप अन्य राज्य भी लगा रहे हैं। मसलन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र पर मनरेगा का फंड रोकने का आरोप लगाते हुए इसी महीने की दो तारीख को कोलकाता में धरने पर बैठी थीं। मगर साउथ के राज्यों से उठती आवाजें अलग संदर्भ ले रही हैं। दक्षिणी राज्यों में 2026 में जनगणना के बाद प्रस्तावित डीलिमिटेशन को लेकर भी चिंता है। उत्तर भारत के राज्यों में जनगणना तेजी से बढ़ी है, जबकि दक्षिणी राज्यों की जनसंख्या 1970 के बाद से ही कमोबेश स्थिर रही है। ऐसे में माना यह जा रहा है कि डीलिमिटेशन की वजह से लोकसभा में उत्तर भारत की सीटों की संख्या दक्षिण के मुकाबले बहुत ज्यादा हो सकती है। इसे उत्तर के संभावित वर्चस्व के रूप में पेश करने की कोशिश कुछ हलकों में हो रही है।
हालांकि इन सभी शिकायतों के जवाब में केंद्र सरकार के अपने तर्क हैं, लेकिन इन विरोध-प्रदर्शनों से एक परसेप्शन बन रहा है, जिसके निहितार्थ चुनावी राजनीति से आगे जाते हैं। इसलिए केंद्र सरकार का यह कहना काफी नहीं कि राजनीतिक कारणों से देश को उत्तर और दक्षिण में बांटा जा रहा है। इसमें सच का अंश हो, तब भी राज्यों को विश्वास में लेने और लेते हुए दिखने के विशेष प्रयास समय रहते होने चाहिए। बता दें कि उत्तर के राज्य हों या फिर दक्षिण के दूसरे राज्य तमिलनाडु की सियायत बाकी प्रदेशों से थोड़ी अलग है। तमिलनाडु में सितारों के राजनीति में आने का एक लंबा इतिहास रहा है। अब तमिल अभिनेता विजय ने राजनीति में आने का ऐलान करते हुए अपनी पार्टी बनाई है। क्या सुपरस्टार की छवि रखने वाले विजय को नई पारी में जीत मिलेगी? क्या वे नायक बनकर उभरेंगे या फिर मौजूदा दलों के लिए बाधा बनकर उभरेंगे? यह तो वक्त ही बताएगा। 2024 के आम चुनावों से पहले विजय ने पार्टी का ऐलान करके राज्य की राजनीति को गरमा दिया है, हालांकि उन्होंने साफ किया है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं बल्कि 2026 में विधानसभा चुनाव लड़ेगी। तमिलनाडु की राजनीति में सितारों की इंट्री नई नहीं है। एमजीआर, के करुणानिधि और जयललिता ने लगभग 50 वर्षों तक राज्य की राजनीति पर शासन किया। अभी भी करुणानिधि द्वारा बनाई गई डीएमके सत्ता में है। एम के स्टालिन राज्य के मुख्यमंत्री हैं। उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जा रहा है, हाल के महीने में यह भी चर्चा सामने आई थी कि उन्हें राज्य का उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
एक्टर विजय ने ऐसे वक्त पर पार्टी का ऐलान किया है राज्य में डीएमके सत्ता में है और AIADMK खेमों में बंटी हुई है। अभिनय से राजनीति में आए विजयकांत का निधन हो चुका है। रजनीकांत स्वास्थ्य कारणों से अब राजनीति में सक्रिय नहीं है, तो वहीं केंद्र की सत्ता का काबिज बीजेपी राज्य में पूर्व आईपीएस अधिकारी के अन्नामलाई को मोर्चे पर लगाकर राज्य में अपनी पैठ बनाने में जुटी है। अभिनेता विजय की पार्टी के ऐलान के बीच चर्चा यह भी हो रही है कि 2026 को चुनावों में लड़ाई युवा और नए चेहरों के बीच होगी। राज्य में डीएमके का चेहरा उदयनिधि और बीजेपी की तरफ से अन्नामलाई के साथ इस फेहरिस्त में अभिनेता विजय का नाम भी शामिल होगा। एआईडीएमके कैसे आगे बढ़ेगी? इसकी तस्वीर लोकसभा चुनावों में साफ होने की उम्मीद है। लंबे वक्त पर बीजेपी के साथ रही AIADMK अब एनडीए का हिस्सा नहीं है।
अभिनेता विजय ने अपनी पार्टी का नाम ‘तमिलका वेत्री कड़गम’ रखा है। इसे संक्षिप्त में टीवीके कहा जा रहा है। जिसका मोटे तौर पर मतलब है कि तमिलनाडु विजय पार्टी है। उनके राजनीति में आने पर समर्थकों में जश्न देखा गया। विजय के राजनीति में आने पर सत्तारूढ़ द्रमुक और विपक्षी बीजेपी ने अभिनेता को नई पारी के लिए शुभकामनाएं दी हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन भी फिल्मों में काम कर चुके हैं अब वे राज्य के खेल मंत्री हैं। तमिलनाडु के सितारे पहले जहां राजनीति में सफल रहे हैं तो वहीं हाल के सालों में पुराना इतिहास बदला है। कमल हासन ने मक्कल निधि मय्यम की शुरुआत की। रजनीकांत ने पिछले दशक में रजनी मक्कल मंद्रम का गठन किया था। जहां कमल हासन अभी भी राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं, वहीं रजनीकांत ने स्वास्थ्य कारणों से राजनीति छोड़ दी है। ऐसे में सवाल है कि एक्टर विजय क्या वाकई में रुपहले पर्दे की तरह राजनीति में जलवा बिखेर पाएंगे।