नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा की असलियत उजागर करने में सलमान खान (Salman Khan) ने कभी कोताही नहीं की। सलमान खान कहते हैं, ‘जिन लोगों को ये लगता है कि भारत देश सिर्फ कफ परेड और अंधेरी के बीच बसता है, उनको असली भारत समझने की जरूरत है। जब तक लोग असली भारत को समझेंगे नहीं, हिंदी फिल्मों में असली भारत दिखेगा कैसे?’ सलमान खान ने इस मौके पर उन लोगों को भी आड़े हाथ लिया जो सिनेमा को हकीकत के करीब रखने और हीरो को ‘लार्जर दैन लाइफ’ रूप देने के खिलाफ रहे हैं। कफ परेड दक्षिण मुंबई का सबसे पॉश इलाका है और अंधेरी इन दिनों हिंदी सिनेमा निर्माण की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है।
मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान सलमान खान ने दिल खोलकर सिनेमा के बदलले स्वरूप पर बातें की। उन्होंने तेलुगू सिनेमा पर अपने विचार रखे। कहानियों में हीरो की अहमियत पर अपने दिल की बात साझा की और साफ साफ कहा, ‘दक्षिण भारतीय फिल्मों में हीरो को अब भी हीरो की तरह पेश किया जाता है। सलीम खान और जावेद अख्तर का सिनेमा है ये। बस इन्होंने इसे अपनाया और इसको और विशाल कर दिया। हम ‘रियलिस्टिक सिनेमा’ बनाने लग गए। मैं तो शुरू से ही लार्जर दैन लाइफ पिक्चरें ही करता आया हूं।’
सलमान खान अगले महीने अबू धाबी के यस आइलैंड में होने वाले 22वें आइफा पुरस्कारों के मेजबान रहेंगे। उनके साथ वरुण धवन और अनन्या पांडे के भी इन पुरस्कारों में परफॉर्म करने और देश से वहां जा रहे सितारों के नाम एलान करने के लिए आइफा की सोमवार को मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस भी हुई। सलमान खान ने तेलुगू सिनेमा में भी हाल ही में कदम रखा है।
फिल्म ‘आरआरआर’ के हीरो राम चरण के पिता चिरंजीवी के साथ वह फिल्म ‘गॉडफादर’ में एक स्पेशल अपीयरेंस करने जा रहे हैं। सलमान कहते हैं, ‘चिरंजीवी के साथ काम करने का अनुभव शानदार रहा। राम चरण और वह दोनों मेरे करीबी रहे हैं। राम चरण का काम फिल्म ‘आरआरआर’ में बेहतरीन है।’ इसी जिक्र से जिक्र आया तेलुगू सिनेमा के हिंदी भाषी क्षेत्रों में लोकप्रिय होने का और हिंदी फिल्मों को दक्षिण में वैसा ही प्रेम न मिल पाने का। सलमान खान ने जो कहा, वह एक तरह से हिंदी सिनेमा का दर्द भी है।
वह कहते हैं, ‘पर फिर हमारी फिल्में वहां क्यों नहीं चलती। जबकि उनकी फिल्में हमारे यहां तो चल रही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वह हीरोगिरी पर खेलते हैं। मैं तो वैसी ही लार्जर दैन लाइफ हीरो वाली फिल्में करता हूं पर लोग मानते कहां है, कहते हैं ये बड़ा पुराना है, हमें रियलिस्टिक होना चाहिए। कुछ लोगों को तो ये भी लगता है कि भारत मे जो कुछ है वह बस कफ परेड और अंधेरी के बीच में ही है। बाहर निकलो और देखो। मेरी फिल्में वहां के लोगों के लिए हैं। हकीकत पर बनी मेरी फिल्में असली भारत के लोगों के लिए हैं।’