Friday, October 18, 2024
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क्या इसराइल और ईरान के युद्ध से उत्पन्न हो सकता है खतरा?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इसराइल और ईरान के युद्ध से खतरा उत्पन्न हो सकता है या नहीं! ईरान ने इजरायल पर लगभग 200 मिसाइलें दागीं, जिनमें से ज्यादातर को इजरायल ने मार गिराया। इस हमले में कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। ईरान का कहना है कि यह हमला हिज्बुल्ला प्रमुख हसन नसरल्लाह, IRGC कमांडर अब्बास निलफोरूशान और हमास प्रमुख इस्माइल हनियेह की हत्या का बदला लेने के लिए किया गया है। इजरायल ने भी इस हमले का मुंहतोड़ जवाब देने की बात कही है। यह टकराव सालों से चला आ रहा है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे पूरी तरह जंग में बदलने से रोकने की कोशिश कर रहा है। ईरान आधिकारिक तौर पर इजरायल के अस्तित्व को मानने से इनकार करता है। इजरायल विरोधी सशस्त्र ग्रुप्स का समर्थन करता है। इजरायल के प्रधान मंत्री नेतन्याहू हमेशा से ईरान को फिलिस्तीनी मुद्दे से ज्यादा बड़ा खतरा मानते रहे हैं। उन्होंने हाल ही तक इसे दरकिनार करने की कोशिश की थी। नेतन्याहू ने ईरान के साथ पश्चिमी देशों के समझौते को कमजोर करने के लिए सक्रिय रूप से काम किया। अब यह संघर्ष इतना बढ़ गया है कि कोई भी इस बात पर विचार नहीं कर रहा है कि क्या ईरान और इजरायल सुलह के लिए कोई रास्ता निकाल सकते हैं।

अपनी बयानबाजी के बावजूद, ऐसा नहीं लगता कि ईरान वास्तव में सोचता है कि वह इजरायल के साथ युद्ध जीत सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि ईरान शांति पसंद करता है। लेकिन तेल अवीव के साथ टकराव का तेहरान का पसंदीदा तरीका लॉन्ग टर्म और अप्रत्यक्ष लड़ाई है। यह समझ में आता है क्योंकि ईरान कहीं न कहीं सैन्य स्थिति में इजरायल से कमजोर है। खासकर जब अमेरिका को इस समीकरण में शामिल किया जाए। इसके अलावा, इजरायल से अलग, ईरान के पास ऐसा कोई देश नहीं है जो उसे सुरक्षा की गारंटी दे सके। ईरान और इजरायल के साथ अपने लंबे समय से चले आ रहे टकराव में अप्रत्यक्ष और अपरंपरागत तरीकों का इस्तेमाल करना पसंद करता है। हिज्बुल्लाह, हमास और हौथिस जैसे गैर-राज्य सशस्त्र समूहों के साथ अपने गठबंधन के नेटवर्क पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इजरायल का प्रतिरोध करना, ईरान के लिए प्रतिरोधक का काम करना और अपनी घरेलू राजनीतिक भूमिकाएं निभाना अहम है।

हालांकि, ये भूमिकाएं कभी-कभी टकरा जाती हैं, जैसा कि हम अब हिज्बुल्लाह के साथ देख रहे हैं। 7 अक्टूबर के बाद, हिज्बुल्लाह ने हमास के साथ एकजुटता में इजरायल पर गोलीबारी करके अपनी प्रतिरोधक भूमिका पर जोर दिया। वह फैसला अब उल्टा पड़ सकता है, क्योंकि इजरायल की प्रतिक्रिया ने हिज्बुल्लाह को नुकसान पहुंचाया है और ईरान के प्रतिरोध को कमजोर किया है। ईरान ने अप्रैल में भी इजरायल पर मिसाइलों से हमला किया था। यह हमला सीरिया में IRGC अधिकारियों की हत्या के जवाब में किया गया था। अगर इसका उद्देश्य ईरान के प्रतिरोध को बहाल करना था, तो यह काम नहीं आया। इजरायल हत्याओं के अभियान के साथ आगे बढ़ा। ईरान ने उस समय कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की और कहा कि उसका मानना है नेतन्याहू तेहरान को एक ऐसे युद्ध में फंसाने की कोशिश कर रहे थे जो वह नहीं चाहता था।

हालांकि, जैसे ही इजरायल नसरल्लाह की हत्या में सफल हुआ और उसने लेबनान पर जमीनी अटैक शुरू कर दिया। ईरान के अंदर इस बात पर बहस तेज हो गई कि क्या उसके संयम को कमजोरी माना जा रहा। अमेरिका के मिले-जुले मैसेज, जिसने पिछले हफ्ते युद्धविराम का आह्वान किया था, लेकिन फिर नसरल्लाह की हत्या की प्रशंसा की गई। इसका मतलब तेहरान में कम से कम कुछ लोग सोच रहे कि वाशिंगटन ने उन्हें जानबूझकर गुमराह किया, युद्धविराम की बात कही, जबकि तेल अवीव को हमले की तैयारी में मदद की।

अगर ईरान ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तो प्रतिरोध की धुरी बहुत ही एकतरफा सौदेबाजी की तरह दिखेगी। ईरान को हमेशा उम्मीद थी कि इजरायल के किसी भी हमले की स्थिति में हिज्बुल्ला उसका बचाव करेगा। लेकिन ऐसा लग रहा कि वह बस किनारे पर ही खड़ा है, जबकि हमास और हिज्बुल्ला नेता मारे गए। हालांकि, सबसे बढ़कर ईरान को सीधे इजरायली हमले का डर है। चारों ओर युद्ध की बयानबाजी के साथ, ईरान ने गणना की होगी कि इजरायली हमला तब भी हो सकता है, चाहे वह कार्रवाई करे या चुपचाप रहे। ऐसा इसलिए वह दिखाना चाहता था कि वह कम से कम इजरायल को नुकसान पहुंचा सकता है, भले ही वह निर्णायक रूप से युद्ध न जीत सके।

इजरायल अब यह प्लान कर रहा कि कैसे जवाब दिया जाए। इसने इस क्षेत्र में ईरान समर्थित सशस्त्र ग्रुप्स के खिलाफ अपना हवाई अभियान जारी रखा है। इस बात की प्रबल संभावना है कि वह ईरान के अंदर रणनीतिक स्थलों, जैसे परमाणु सुविधाओं और सैन्य स्थलों पर हमला करेगा। हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं कि क्या इजरायल हवाई हमलों के जरिए ईरान की परमाणु हथियारों को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है। अगर ईरान ने तय कर लिया कि मौजूदा घमासान केवल परमाणु हथियारों से ही सुलझ सकता है तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। इसके दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को लेकर भी निहितार्थ हो सकते हैं। खासकर अगर ईरान और पाकिस्तान के बीच फिर से तनाव पैदा होता है। ईरान ने इस साल की शुरुआत में पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों पर हमला किया था। इन हालात में अमेरिका और यूरोप को पश्चिम एशिया में संघर्षों से बाहर निकलने का अधिक टिकाऊ रास्ता खोजने के लिए गैर-पश्चिमी शक्तियों के साथ काम करना चाहिए।

 

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