Wednesday, May 14, 2025
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क्या राज्यसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर दे सकते हैं अखिलेश यादव?

होने वाले राज्यसभा चुनाव में अखिलेश यादव भाजपा को अच्छी खासी टक्कर दे सकते हैं! उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हैं। चुनाव के लिए 27 फरवरी को मतदान होगा। कुल 10 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में कुल 11 प्रत्याशी सपा से 3 और बीजेपी से 8 मैदान में हैं। चुनाव आयोग के अनुसार 27 फरवरी को सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक मतदान होगा। चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने अपने-अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए ताकत झोंक रखी है। असल में सिर्फ एक सीट पर पेंच फंसा है। वोटों की गुणा गणित में रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया किंगमेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं। उनके जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के दो विधायक हैं। इनका समर्थन हासिल करने के लिए सपा और भाजपा लगातार प्रयास में है। सवाल ये है कि राजा भैया इस बार किस पाले में जाते हैं? पिछली बार उन्होंने राज्यसभा चुनाव में अखिलेश यादव को झटका दिया था।आइए समझते हैं पूरा चुनावी गणित, राज्यसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी की तरफ से जया बच्चन, रामजी लाल सुमन और आलोक रंजन ने नामांकन किया है। वहीं भाजपा की तरफ से आरपीएन सिंह, सुधांशु त्रिवेदी, तेजवीर सिंह, साधना सिंह, अमरपाल मौर्य, संगीता, नवीन जैन ने पर्चा दाखिल किया। ये सभी आसानी से जीतते दिख रहे थे।लेकिन आखिरी समय में संजय सेठ ने नामांकन दाखिल कर तय करा दिया कि चुनाव होगा। एनडीए के पास इस समय सहयोगियों को मिलाकर 277 वोट हैं। ऐसे में 37 का कोटा सबको आवंटित करने के बाद उसके पास 18 वोट अतिरिक्त बचेंगे। जनसत्ता दल उच्च सदन के चुनाव में अब तक भाजपा के ही साथ रहा है। इसलिए, इनके 2 वोट भी सत्ता पक्ष के साथ जाने तय हैं। ऐसे में भाजपा के पास 20 अतिरिक्त वोट होंगे। वहीं, विपक्षी गठबंधन के पास मौजूदा संख्या 119 विधायकों की है। कोटा आवंटित करने के बाद भी इस समय उनके पास 6 अतिरिक्त विधायक बचेंगे।

इस चुनाव में समाजवादी पार्टी से ज्यादा भाजपा के सामने ज्यादा बड़ी चुनौती है। दरअसल बीजेपी के पास 10 वोटों की कमी है। दरअसल राज्यसभा चुनाव के लिए 10 सीटें हैं। विधानसभा स्ट्रेंथ के हिसाब से एक सीट के लिए 37 वोटों की जरूरत है। बीजेपी के पास 252 वोट हैं। इसके अलावा उसके सहयोगी अपना दल के 13 वोट हैं, 6-6 वोट सुभासपा और निषाद पार्टी के हैं। वहीं रालोद भी अब एनडीए कैंप में है लिहाजा उसके 9 वोट भी हैं। ये कुल मिलाकर 286 हुए। बीजेपी के 7 उम्मीदवारों को 259 वोट मिलने हैं, जो आसान है। लेकिन आठवें उम्मीदवार के लिए बीजेपी के पास सिर्फ 27 वोट रह जाते हैं। जो 37 की संख्या में 10 दूर हैं।

वहीं समाजवादी पार्टी की बात करें तो उसके पास कुल 108 वोट हैं। कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान हो चुका है तो 2 वोट उनके जोड़ लीजिए। उसे अपने तीनों उम्मीदवारों को जिताने के लिए सिर्फ एक और वोट की जरूरत है। पिछले दिनों पल्लवी पटेल की समाजवादी पार्टी से नाराजगी सामने आई। अगर अखिलेश उनके वोट को कैलकुलेशन से अलग करते हैं तो सपा को 2 वोट की जरूरत होगी। वहीं दो विधायक जेल में है। अगर उन्हें अनुमति नहीं मिलती है तो जरूरत बढ़कर 4 वोट हो जाती है। हालांकि सूत्रों से खबर मिल रही है कि पल्लवी पटेल मान गई हैं, लेकिन वह सिर्फ पीडीए प्रत्याशी को ही वोट करेंगीं।

वहीं भाजपा के सामने चुनौती इसलिए और भी बड़ी हो जाती है क्योंकि भले ही जयंत चौधरी एनडीए कैंप में आ गए हों लेकिन उनके 9 में से 4 विधायक सपा के ही हैं, ये वो हैं जो विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन के तहत रालोद के टिकट पर चुनाव जीते थे। इसी तरह ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा के 3 विधायक भी ऐसे ही हैं। संजय सेठ को चुनाव मैदान में उतारने के पीछे उनकी सपा से पुरानी नजदीकी की गणित बताई जा रही है। दरअसल संजय सेठ उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित उद्योगपति हैं। 2019 में वह भाजपा में आए इससे पहले वह मुलायम सिंह यादव के करीबियों में शुमार रहे। मुलायम के बाद अखिलेश यादव के साथ भी उनके यही संबंध रहे। वह समाजवादी पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे। 2016 में सपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा था। लेकिन 2019 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दिया और भाजपा में आ गए। फिर भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। वह 2022 तक राज्यसभा सदस्य रहे लेकिन इसके बाद उन्हें मौका नहीं मिला। अब भाजपा ने उन्हें आठवें प्रत्याशी के तौर पर उतारा है और भाजपा से ज्यादा संजय सेठ पर वोटों का जुगाड़ करने की चुनौती है।

बता दें इससे पहले दरअसल 2018 में राज्यसभा चुनाव के दौरान सपा ने जया बच्चन को प्रत्याशी बनाया और बसपा ने भीमराव अंबेडकर को टिकट दिया। वो सपा बसपा गठबंधन का दौर था, लिहाजा अखिलेश यादव ने बसपा प्रत्याशी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। राजा भैया उस समय अखिलेश कैंप में ही हुआ करते थे। आखिरी समय तक राजा भैया पूरी रणनीति में अखिलेश यादव के साथ रहे। लेकिन ऐन वक्त राजा भैया ने बसपा की बजाए भाजपा उम्मीदवार को वोट कर दिया। इस चुनाव के बाद मायावती ने साफ कह दिया कि अखिलेश यादव में अनुभव की कमी है, वह राजा भैया के जाल में फंस गए।इस घटना के बाद से अखिलेश और राजा भैया में दूरियां बढ़ती गईं। इसका असर विधानसभाा चुनाव में भी देाने को मिला, जब राजा को चुनौती देने के लिए सपा ने प्रत्याशी उतार दिया। इस दौरान दोनों तरफ से तमाम तल्ख बयानबाजियां भी सामने आईं।

लेकिन पिछले कुछ समय से दोनों नेताओं रिश्तों में जमी बर्फ पिघलती भी नजर आ रही है। अब देखना ये होगा कि राजा भैया का राज्यसभा चुनाव में स्टैंड क्या होगा? वैसे राजा भैया का एक बयान इस समय खासा चर्चा में है। जिसमें उन्होंने कहा, “मैंने 28 सालों में 20 साल समाजवादी पार्टी को दिए हैं। मेरे लिए समाजवादी पार्टी पहले है। मेरे लिए यह कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है।”

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