यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या जम्मू कश्मीर में कभी 370 की वापसी हो सकती है या नहीं! 5 अगस्त 2019 को केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करते हुए इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया। राज्य को दो हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। केंद्र के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 अर्जियां दी गईं। सुनवाई के बाद 5 जजों की बेंच ने दिसंबर 2023 में सरकार के फैसले को बरकरार रखा और अपनी सुप्रीम मुहर लगा दी। इस फैसले के बाद ऐसा लगा कि शायद इस पर राजनीति बंद हो जाए लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस फैसले के बाद भी आवाज उठी और 370 हटने के बाद जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव पहली बार होने जा रहे हैं तब इसकी गूंज और जोर से सुनाई पड़ रही है। एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इसकी कभी वापसी नहीं होगी तो वहीं अब जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम रहे उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इसे हम दोबारा लागू करेंगे। ऐसे में यह समझना जरूरी हो जाता है कि क्या ऐसा संभव है। उससे पहले यह जान लेते हैं कि किसने क्या कहा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी का संकल्प पत्र एक दिन पहले जारी किया और कहा कि अनुच्छेद 370 अब इतिहास बन गया है और केंद्र शासित प्रदेश में इसकी कभी वापसी नहीं होगी। केंद्रीय गृह मंत्री ने भाजपा का घोषणापत्र जारी करने से पहले अपने संबोधन में कहा कि मैं नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के एजेंडे को जानता हूं। मैं पूरे देश को यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि अनुच्छेद 370 अब इतिहास बन चुका है और इसकी कभी वापसी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 अब संविधान का हिस्सा नहीं है। इस अनुच्छेद ने युवाओं के हाथों में सिर्फ हथियार और पत्थर दिए हैं और उन्हें आतंकवाद की ओर धकेला है।
अमित शाह के इस बयान को चुनौती देते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम रहे उमर अब्दुल्ला ने कहा कि हम चुनाव जीते तो अनुच्छेद 370 को दोबारा लागू करेंगे। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इसके लिए वक्त लगेगा, लेकिन यह होकर रहेगा। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को फिर जम्मू-कश्मीर में लागू करेंगे। यह ऐसी चीज है जिसके लिए हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते, हम इसके लिए सरेंडर नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी माना कि इसे दोबारा लागू करना इतना आसान नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि आप इसे अगले 5 साल में लागू कर देंगे। यह सत्य है कि इसमें समय लगेगा।
चुनाव के बीच यह बड़ा सवाल है कि क्या ऐसा संभव है। जिस 370 को हटाने में वर्षों लग गए क्या उसे इतनी आसानी से वापस लाया जा सकता है। जानकार बताते हैं कि न यह तब आसान था और अब तो दोबारा लागू करना और भी मुश्किल है। संविधान की गहरी समझ रखने वाले जानकारों ने बताया कि इसे दोबारा लागू करना लगभग असंभव है। केंद्र की मोदी सरकार और गृह मंत्री अमित शाह ने इसके लिए अच्छा खासा होमवर्क किया था। तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 5 अगस्त 2019 को सीओ 272 जारी किया। राष्ट्रपति का यह वह आदेश था जिसके जरिए संविधान के अनुच्छेद 367 को संशोधित किया गया। इसमें कहा गया कि अनुच्छेद 370 (3) में उल्लेखित संविधान सभा की जगह इसे विधानसभा कहा जाएगा। इससे ही 370 हटाने का रास्ता साफ हुआ।
राष्ट्रपति के इस आदेश के कुछ ही समय बाद राज्य सभा में यह पास हुआ कि अनुच्छेद 370 नहीं रहेगा। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि विधानसभा की शक्ति राज्यपाल में समाहित थी और देश की संसद राज्यपाल की ओर से कानून बना सकती थी। राष्ट्रपति ने सीओ 273 जारी किया जिसके माध्यम से 370 पर अमल न करने की संसद की सिफारिश को लागू कर दिया गया। जिसके बाद 370 हट गया। अब चुनाव के बीच दावे किए जा रहे हैं कि इसे वापस लाएंगे। क्या कोई केंद्र की सरकार ऐसा करना चाहे तो यह उसके लिए इतना आसान होगा। केंद्र की किसी भी सरकार को अनुच्छेद 368 के रास्ते आगे बढ़ना काफी काफी मुश्किल होगा। युवाओं के हाथों में सिर्फ हथियार और पत्थर दिए हैं और उन्हें आतंकवाद की ओर धकेला है।क्योंकि इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत और 50 प्रतिशत विधानसभाओं की मंजूरी चाहिए जो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में मुश्किल लगता है।