यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या जातिगत जनगणना पर पीएम मोदी यू टर्न ले सकते हैं या नहीं! मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में एक के बाद एक फैसलों पर यू-टर्न लेती दिख रही है। लेटरल एंट्री, न्यू पेंशन स्कीम, ब्रॉडकास्टिंग बिल के ड्राफ्ट से लेकर वक्फ संशोधन एक्ट और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन जैसे मुद्दे शामिल हैं। खास बात है कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सरकार के यू-टर्न पर खूब खुश नजर आ रही है। इतना ही नहीं वह यह संदेश देने की भी कोशिश कर रही है कि किस तरह से नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में में विपक्ष और अपने सहयोगी दलों के दबाव में अपने फैसलों पर पीछे हटने को मजबूर हो रही है। हालांकि, सरकार की तरफ से यू-टर्न के पीछे अपने तर्क दिए जा रहे हैं। न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार सरकार से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार की तरफ से यह कदम जनता की प्रतिक्रिया के प्रति जागरूक होने के का प्रतीक है। साथ ही सरकार कांग्रेस की रणनीति को ध्वस्त करती जा रही है। बीजेपी में कई लोगों का मानना है कि यह लोकसभा चुनावों में जीत के बाद पॉलिटिकल नैरेटिव को फिर से अपने पक्ष में करने का हिस्सा है। इसके अलावा पीएम मोदी की तरफ से दिखाई गई राजनीतिक व्यावहारिकता का एक उदाहरण है।
रिपोर्ट के अनुसार अब सत्ता के गलियारों में दो बड़े मुद्दों पर चर्चा हो रही है। ये मुद्दे अग्निपथ योजना और जातिगत जनगणना है। विपक्ष इन मुद्दों को लेकर मोदी सरकार पर लगातार हमला कर रहा है। इसके अलावा एनडीए के सहयोगी दल भी इन मुद्दों पर मुखर हो रहे हैं। चिराग पासवान तो जातिगत जनगणना के पक्ष में खुल कर बोल रहे हैं। वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी कई मौकों पर यह कह चुके हैं सरकार ‘अग्निपथ’ योजना में और सुधार के लिए बदलाव के लिए तैयार है। सशस्त्र बलों में प्रवेश के लिए दो साल पहले शुरू की गई इस योजना को लोकसभा चुनावों में भाजपा की चुनावी हार के प्रमुख कारणों में एक माना जा रहा है। कांग्रेस ने सत्ता में आने पर अग्निपथ योजना को खत्म करने का वादा भी किया था।
इसी तरह, जाति जनगणना एक ऐसा मुद्दा है जिसके पक्ष में एनडीए के दोनों प्रमुख सहयोगी दल जेडीयू और एलजेपी सरकार से अलग अपना रुख व्यक्त कर चुके हैं। बिहार में जाति की राजनीति की प्रकृति को देखते हुए यह मुद्दा काफी अहम हैं। खास बात है कि राज्य में अगले साल चुनाव होने हैं। दूसरी तरफ अब तक, प्रधानमंत्री ने ‘अग्निपथ’ योजना का जोरदार बचाव किया है। पिछले महीने कारगिल में भी मोदी ने इसका बचाव किया गया था। सरकार ने भी जाति जनगणना की सभी मांगों को दृढ़ता से खारिज कर दिया है। सरकार का कहना है कि यह ‘विभाजनकारी कदम’ साबित होगा। हालांकि, पेंशन योजना समेत प्रमुख मुद्दों पर सरकार ने जिस तरह से दो कदम पीछे खींचे हैं। ऐसे में ऐसे में आने वाले दिनों में पीएम मोदी इस दोनों मुद्दों पर कोई बड़ी घोषणा करें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
इन दोनों मुद्दों के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का ऐसा मुद्दा है जो सुलग रहा है। इस मुद्दे पर विचार करने के लिए समिति गठित हो चुकी हैं। विपक्ष किसानों के लिए MSP की गारंटी देने वाले कानून की मांग कर रहा है। हरियाणा, पंजाब के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों की मोदी सरकार से नाराजगी जगजाहिर है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल और दूसरे कार्यकाल में दो बड़े फैसले वापस लिए गए थे। इनमें से एक भूमि अधिग्रहण अधिनियम और दूसरा तीन कृषि कानूनों में बदलाव था। ये बदलाव तब हुए जब केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी। मोदी सरकार के हाल के कदम खींचने को लेकर पार्टी के नेता कहते हैं कि सरकार के निर्णय के पीछे की वजह विपक्ष का दबाव नहीं बल्कि राजनीतिक व्यावहारिकता है।
केंद्रीय राजनीतिक विमर्श में जाति की राजनीति की वापसी भी सरकार के अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण और क्रीमी लेयर बहिष्कार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने या पहली बार लेटरल एंट्री स्कीम में आरक्षण को पेश करने के फैसलों को निर्धारित कर रही है। न्यूज 18 ने अपनी रिपोर्ट में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से बताया है सरकार ऐसे मुद्दों पर लोगों को आंदोलन के लिए उकसाने की विपक्ष की साजिशों से भी वाकिफ है। ऐसे में वह देश की विकास कहानी को पटरी से नहीं उतारना चाहती है।


