क्या 50 साल पहले भी शेख हसीना के साथ ऐसा ही हुआ था?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या 50 साल पहले भी शेख हसीना के साथ ऐसा ही हुआ था या नहीं! आधी सदी और समय का चक्र पूरा हो गया। शेख हसीना आज फिर बेघर हो गईं। बांग्लादेश में आरक्षण आंदोलन ने शेख हसीना सरकार की बलि ले ली। निवर्तमान प्रधानमंत्री को जान बचाने के लिए देश छोड़ना पड़ा है। प्रधानमंत्री आवास में अराजकता का माहौल है। लोग वहां से फर्नीचर एवं अन्य सामान कंधों पर उठाकर ले जा रहे हैं। सबसे दुखद तस्वीर शेख मुजीब उर रहमान की मूर्ति तोड़ते हुई आई। करीब 50 वर्ष पहले सैन्य तख्ता पलट में इसी मुजीब उर रहमान समेत उनके परिवार के 18 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। मुजीब की दो बेटियां शेख हसीना और शेख रिहाना ही बच पाईं, वो भी भारत की मदद से। आज समय का चक्र पूरा हुआ तो शेख हसीना फिर भारत की शरण में हैं। 1975 में उनके पिता और बांग्लादेश के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद भारत ने शेख हसीना को शरण दी थी। 1975 के सैन्य तख्ता पलट में हसीना और रिहाना इसलिए बच पाईं क्योंकि दोनों 15 दिन पहले ही बांग्लादेश से निकलकर जर्मनी चली गई थीं। हसीना के पति न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे और जर्मनी में ही थे। 30 जुलाई, 1975 की वो तारीख थी जब हसीना अपने पिता से आखिरी बार मिल पाई थीं। दो हफ्ते बाद 15 अगस्त, 1975 को हसीना को पता चला कि सैन्य तख्ता पलट में उनके पिता की हत्या हो गई। लेकिन उन्हें तब तक पता नहीं था कि पिता ही नहीं, पूरा परिवार खत्म हो चुका है।हसीना के बेटे जॉय और प्रणब दा के बेटे अभिजीत में गहरी दोस्ती हो गई। प्रणब दा की पत्नी ने हसीना का खास ख्याल रखा। 2015 में जब प्रणब मुखर्जी की पत्नी का निधन हुआ तो शेख हसीना तुरंत दिल्ली पहुंच गईं। भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मुजीब परिवार की दोनों बेटियों की चिंता हुई। उन्होंने जर्मनी में अपने राजदूत हुमायूं राशिद चौधरी को हसीना के पास भेजा।

हसीना की इंदिरा गांधी से बात हुई। उन्होंने भारत में शरण लेने का फैसला किया। फिर प्लानिंग हुई कि बिना किसी को भनक लगे हसीना और रिहाना को भारत कैसे लाया जाए? आखिरकार 24 अगस्त की दोपहर शेख हसीना ने अपने पति के साथ जर्मनी के फ्रैंकफर्ट से उड़ान भरीं। भारत ने उन्हें लाने एयर इंडिया का एक विमान भेजा था। 25 अगस्त, 1975 के तड़के विमान दिल्ली पहुंच गया। उन्हें 56 रिंग रोड स्थित एक सेफ हाउस में रखा गया। उनकी असली पहचान छिपाने के लिए मिस्टर और मिसेज मजूमदार की नई पहचान दी गई। खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनका खास ख्याल रखा।

कुछ दिनों के बाद शेख हसीना को पंडारा पार्क के सी ब्लॉक स्थित तीन कमरों के एक मकान में शिफ्ट कर दिया गया। चौतरफा सुरक्षा कर्मियों का पहरा था। डिटेक्टिव भी तैनात किए गए। हसीना के साइंटिस्ट पति को नई दिल्ली स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में नौकरी मिल गई। वहां उन्होंने सात वर्ष काम किया।  इंदिरा गांधी ने प्रणब मुखर्जी को शेख हसीना की जिम्मेदारी सौंपी। मुखर्जी ने हसीना के गार्जियन की भूमिका निभाने में कोई कोताही नहीं बरती। हसीना भी प्रणब दा ही नहीं, उनके परिवार में घुल-मिल गईं। हसीना के बेटे जॉय और प्रणब दा के बेटे अभिजीत में गहरी दोस्ती हो गई। प्रणब दा की पत्नी ने हसीना का खास ख्याल रखा। 2015 में जब प्रणब मुखर्जी की पत्नी का निधन हुआ तो शेख हसीना तुरंत दिल्ली पहुंच गईं।

शेख हसीना के विमान का रुख आज भी दिल्ली की ओर है। 50 वर्ष पहले जर्मनी से दिल्ली आईं हसीना को छह साल यहां गुजारने पड़े थे। वो 17 मई, 1981 को अपने वतन बांग्लादेश लौट पाई थीं। इस बार बांग्लादेश में सैन्य तख्तापलट नहीं हुआ है और न ही हसीना के परिवार को कोई नुकसान पहुंचा है। लेकिन आरक्षण आंदोलन की आड़ में हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग के साथ को कुचलने की जो साजिश हुई है, लेकिन उन्हें तब तक पता नहीं था कि पिता ही नहीं, पूरा परिवार खत्म हो चुका है। भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मुजीब परिवार की दोनों बेटियों की चिंता हुई। उन्होंने जर्मनी में अपने राजदूत हुमायूं राशिद चौधरी को हसीना के पास भेजा।वह 1975 के आघात जैसा ही है। हसीना आज फिर बेघर हैं। ईश्वर जाने इस बार उन्हें दिल्ली कब तक अपने आगोश में रखती है। हसीना का नसीब जाने वो इस बार कब वतन लौट पाएंगी?