Monday, December 23, 2024
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क्या युटयुबर्स ने भी मोदी के लक्ष्य में कसर नहीं छोड़ी?

हाल ही में युटयुबर्स ने भी मोदी को लक्ष्य प्राप्त करने में कसर नहीं छोड़ी है! 2019 के पिछले राष्ट्रीय चुनावों में सोशल मीडिया स्पेस पर भाजपा का दबदबा था। 2024 के लोकसभा चुनाव में यूट्यूबरों ने भगवा पार्टी की पकड़ से उस स्पेस को छीनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन I.N.D.I.A की स्थिति में सुधार हुआ। कई यूट्यूबरों ने मोदी और बीजेपी विरोधी भावनाएं मजबूत कीं बल्कि सरकार के विरोधी मतदाताओं को एकजुट भी रखा। यहां तक कि इन यूट्यूबरों ने ब्रिटिश वीकली जर्नल द इकॉनमिस्ट का भी ध्यान आकर्षित किया। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 476 मिलियन यूट्यूब दर्शक हैं। आंकड़े बताते हैं कि ध्रुव राठी इस चुनाव में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले यूट्यूबर हैं। राठी के ‘मोदी: द रियल स्टोरी’ को अकेले 27 मिलियन बार देखा गया।मीडिया कमेंटेटर वनिता कोहली-खांडेकर कहती हैं कि नैशनल टीवी चैनल्स इस दर्शक वर्ग को संतुष्ट करता है और उन्हें आश्चर्य होता है कि कोई भी न्यूज चैनल सभी भारतीयों या एक बड़े वर्ग को क्यों नहीं देखता। वो कहती हैं, ‘जानकारी का एक अंतर है। और प्रकृति खाली जगह पसंद नहीं करती है। वॉट्सऐप, यूट्यूब, फेसबुक, रील्स और दर्जनों शॉर्ट वीडियो ऐप इस अंतर को भरते हैं। कुछ दूसरों की तुलना में बेहतर काम करते हैं और इसलिए ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं।’ हालांकि मीडिया टिप्पणीकार सेवंती निनान ने उन्हें ‘इन चुनावों की बड़ी नई घटना’ बताया है। मीडिया टिप्पणीकार और स्तंभकार माधवन नारायणन कहते हैं कि उनके जैसे यूट्यूबर अक्सर वही भूमिका निभा रहे हैं जो मुख्यधारा के मीडिया को निभानी चाहिए- तथ्यों की जांच करना, विरोधाभासों पर सवाल उठाना और सार्थक संदर्भ और पृष्ठभूमि प्रदान करना।

वे कहते हैं, ‘लोग उन्हें उनके जुनून, अनौपचारिकता और कहानी कहने की शैली के लिए पसंद करते हैं। समाचार से जुड़े यूट्यूबर ज्ञान के ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने स्थिर या कर्कश टीवी एंकरों की जगह ले ली है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसने शिक्षित युवाओं और मध्यम वर्ग के बीच राय और मीडिया उपभोग को नया रूप दिया है।’ मीडिया कमेंटेटर वनिता कोहली-खांडेकर कहती हैं कि नैशनल टीवी चैनल्स इस दर्शक वर्ग को संतुष्ट करता है और उन्हें आश्चर्य होता है कि कोई भी न्यूज चैनल सभी भारतीयों या एक बड़े वर्ग को क्यों नहीं देखता। वो कहती हैं, ‘जानकारी का एक अंतर है। और प्रकृति खाली जगह पसंद नहीं करती है। वॉट्सऐप, यूट्यूब, फेसबुक, रील्स और दर्जनों शॉर्ट वीडियो ऐप इस अंतर को भरते हैं। कुछ दूसरों की तुलना में बेहतर काम करते हैं और इसलिए ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं।’

निनान कहती हैं कि मतदाताओं से जुड़ने के लिए राजनेताओं ने भी यूट्यूब चैनलों की भी तलाश की है, जिससे उन्हें मुख्यधारा के मीडिया की गेटकीपिंग रोल से बचने में मदद मिलती है। वे कहती हैं, ‘मीडिया जगत में कंपनियों से व्यक्तियों की ओर सत्ता का एक बदलाव हो रहा है।’ इसका असर साफ दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य प्रस्तावित प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक के जरिए ओटीटी चैनलों सहित प्रसारण सेवाओं को इसके दायरे में लाना है। यह ध्यान देने वाली बात है कि ध्रुव राठी हों या मोदी विरोधी कोई और यूट्यबर, सबने सरकार और भारत की उपलब्धियों को बहुत बेईमानी से खारिज किया। उन्होंने बड़ी उपलब्धियों की या तो चर्चा नहीं की या फिर उनमें भी कुछ ना कुछ खामियां निकालीं और उन्हें एंप्लीफाई करके बताया। इनके वीडियोज पर गौर करें तो साफ झलकता है कि इनका मकसद सच्चाई को सामने लाना नहीं बल्कि एक खास तरह का मतदाता वर्ग की तुष्टि करना या फिर सरकार विरोधी भावनाएं भड़काना रहा। बता दें कि चुनाव में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले यूट्यूबर हैं। राठी के ‘मोदी: द रियल स्टोरी’ को अकेले 27 मिलियन बार देखा गया। हालांकि मीडिया टिप्पणीकार सेवंती निनान ने उन्हें ‘इन चुनावों की बड़ी नई घटना’ बताया है। मीडिया टिप्पणीकार और स्तंभकार माधवन नारायणन कहते हैं कि उनके जैसे यूट्यूबर अक्सर वही भूमिका निभा रहे हैं जो मुख्यधारा के मीडिया को निभानी चाहिए- तथ्यों की जांच करना, विरोधाभासों पर सवाल उठाना और सार्थक संदर्भ और पृष्ठभूमि प्रदान करना। उन्होंने कई तथ्य छिपाए, कई तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया। इसलिए अगर इन्होंने सरकार की गलितयां उजागर मेनस्ट्रीम मीडिया की जगह ली तो यह भी उतना ही सच है कि इन यूट्यूबरों ने भी खुद को विपक्ष की कठपुतली के तौर पर ही पेश किया।

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