क्या अब आईपीसी और सीआरपीसी का कोई भी वजूद नहीं रहा?

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अब आईपीसी और सीआरपीसी का कोई भी वजूद नहीं रहा है! देश में आज आधी रात से ब्रिटिश हुकूमत के तीन आपराधिक कानूनों का अंत हो गया। भारतीय संसद द्वारा बनाये गये नये कानून के साथ एक जुलाई का अरुणोदय, भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक नये युग का आगाज है। आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए एक ऐतिहासिक कदम के रूप में तीन नये कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) एक जुलाई से लागू होंगे। ये कानून क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लिया। नये आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद एफआईआर से लेकर अदालत के निर्णय तक की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन की गई है और भारत अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली में आधुनिक तकनीक का सबसे अधिक इस्तेमाल करने वाला देश बन गया। यह कानून तारीख-दर-तारीख के चलन की समाप्ति सुनिश्चित करेंगे और देश में एक ऐसी न्यायिक प्रणाली स्थापित होगी, जिसके जरिये तीन वर्षों के भीतर न्याय मिलना सुनिश्चित हो सकेगा।

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ, जवाबदेह, भरोसेमंद और न्याय प्रेरित बनाने का प्रयास है। 600 से अधिक संशोधनों और कुछ जोड़ने एवं हटाने के साथ आपराधिक कानूनों को पारदर्शी, आधुनिक और तकनीकी तौर पर कुशल ढांचे में ढाला गया है, ताकि वे भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था को कमजोर करनेवाली मौजूदा चुनौतियों से निपटने में सक्षम हों। तीनों नये आपराधिक कानून को वर्ष 2023 में संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था। नये कानूनों के लागू होने के बाद पुलिस, जांच और न्यायिक व्यवस्था का चेहरा बदल जायेगा। कई तरह के मामलों में इन कानूनों का व्यापक असर पड़ेगा। नये कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गयी है। सूचना दर्ज होने के दो महीने के भीतर जांच पूरी होगी। अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से समन की तामील की जा सकेगी। इससे कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी आयेगी। कागजी कार्रवाई कम होगी और सभी संबंधित पक्षों के बीच समुचित संवाद सुनिश्चित होगा। नये कानूनों में जांच, ट्रायल और अदालती कार्यवाहियों में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। नये कानूनों में पेश किये गये कुछ ठोस संशोधन केवल आरोपियों को दंडित करने के बजाय पीड़ित को न्याय देने को प्राथमिकता देकर हमारी सामूहिक चेतना को पुन: व्यवस्थित करने का प्रयास करते हैं।

पीड़ित, गवाह और बड़े पैमाने पर जनता के अधिकारों और भलाई की रक्षा के लिए कुछ खास चीजें जोड़ी गयी हैं और संशोधन किये गये हैं। इन तीनों कानूनों में जीरो एफआईआर, ऑनलाइन शिकायत एवं इलेक्ट्रानिक माध्यम से समन और सभी जघन्य अपराधों में घटना स्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी का प्रावधान शामिल हैं। कोई भी व्यक्ति थाने जाये बिना घटना की ऑनलाइन शिकायत कर सकेगा। पीड़ित क्षेत्राधिकार की चिंता किये बिना देश के किसी भी थाने में एफआईआर दर्ज करा सकता है। सबूत एकत्र करने के दौरान घटना स्थल की अनिवार्य रूप से वीडियोग्राफी करायी जायेगी, ताकि सबूतों के साथ छेड़छाड़ न की जा सके। पीड़ित और आरोपी दोनों को ही एफआईआर की कॉपी, पुलिस रिपोर्ट, चार्जशीट, बयान, स्वीकारोक्ति समेत मामले से जुड़े अन्य कागजात 14 दिन के भीतर हासिल करने के हकदार होंगे।

मामले को बेवजह लंबा नहीं खींचा जा सके, इसकी भी व्यवस्था की गयी है। कोई भी अदालत मामले को अधिकतम दो सुनवाई तक ही टाल सकती है। गवाहों की सुरक्षा का भी पुख्ता इंतजाम किया गया है। इसके लिए सभी राज्य सरकारों को अनिवार्य रूप से गवाह सुरक्षा योजना लागू करनी होगी। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए बीएनएस में नया अध्याय जोड़ा गया है। कई धाराएं और प्रावधान बदल गये हैं। आईपीसी में 511 धाराएं थीं, अब 356 बची हैं। 175 धाराएं बदल गयी हैं। आठ नयी जोड़ी गयीं, 22 धाराएं खत्म हो गयी हैं। इसी तरह सीआरपीसी में 533 धाराएं बची हैं। 160 धाराएं बदली गयी हैं, नौ नयी जुड़ी हैं, नौ खत्म हुई हैं। पूछताछ से ट्रायल तक सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से करने का प्रावधान हो गया है, जो पहले नहीं था। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम तीन साल में देना होगा। भारतीय न्याय संहिता में 20 नये अपराध जोड़े गये हैं। ऑर्गेनाइज्ड क्राइम, हिट एंड रन, मॉब लिंचिंग पर सजा का प्रावधान। डॉक्यूमेंट में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड शामिल हैं। आईपीसी में मौजूद 19 प्रावधानों को हटा दिया गया है। 33 अपराधों में कारावास की सजा बढ़ा दी गयी है। 83 अपराधों में जुर्माने की सजा बढ़ा दी गयी है। छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है।

भारतीय न्याय संहिता 163 साल पुरानी आईपीसी की जगह ली है, जिससे दंड कानून में महत्वपूर्ण बदलाव आयेंगे। सजा के रूप में सामुदायिक सेवा एक उल्लेखनीय परिचय है। यौन अपराधों के लिए कड़े कदम उठाये गये हैं। कानून में उन लोगों के लिए दस साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है जो शादी का वादा करके धोखे से यौन संबंध बनाते हैं। संगठित अपराध में अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, जबरन वसूली, भूमि हड़पना, अनुबंध हत्या, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध और मानव, ड्रग्स, हथियार या अवैध सामान या सेवाओं की तस्करी शामिल है। वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव तस्करी, संगठित अपराध के रूप में परिभाषित करते हुए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भौतिक लाभ के लिए हिंसा, धमकी, डराने-धमकाने, जबरदस्ती या अन्य गैरकानूनी तरीकों से अंजाम दिये गये अपराधों के लिए कड़ी सजा दी जायेगी।