बचपन में बच्चे बिल्कुल कच्ची मिट्टी का घड़ा होते हैं! उन्हें जिस तरीके से ढाला जाता है वे उसी तरीके से पल जाते हैं! बच्चों की परवरिश करना हर दिन मुश्किल होता जा रहा है। वजह है माता-पिता की व्यस्त जीवनशैली। जिसमे उनके पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय नहीं होता। ऐसे में उन्हें लगता है कि कठोर अनुशासन और सख्ती करने से उनके बच्चे जिम्मेदार और लायक बन जाएंगे। लेकिन इसके उलट कई बार पैरेंट्स की जरूरत से ज्यादा देखभाल और सख्ती उन्हें दिमागी रूप से कमजोर बना देती है।आपका बच्चा पढ़ाई में कमजोर है या फिर किसी खास विषय में उसके नंबर कम आते हैं। लेकिन एक माता-पिता होने के नाते अगर आप उसे किसी खास स्ट्रीम में दाखिला दिलाने के लिए जोर जबरदस्ती करके पढाते हैं या फिर प्रतिस्पर्धा का डर दिखाते हैं। उसकी तुलना बाकी बच्चों से करते हैं। ऐसे में बच्चे में मन में खुद के प्रति नकारात्मक भाव जाग जाते हैं। उसे लगता है कि वो वाकई में किसी काबिल नही है। ऐसे में वो स्ट्रेस और डिप्रेशन से पीड़ित हो सकता है। उसका आत्मविश्वास खोएगा और वो अपने पसंदीदा विषय में भी कमजोर हो जाएगा।
कुछ माता पिता बच्चों को जरूरत से ज्यादा प्रोटेक्ट करते हैं। जिसका नतीजा होता है कि वो हर छोटी चीज के लिए भी माता पिता पर निर्भर रहता है। ऐसे में उसके अंदर का आत्विश्वास कम होता है। उसे लगता है कि वो कोई भी काम बिना पैरेंट्स की मदद के नहीं कर सकता। ऐसे बच्चे आगे चलकर जीवन की छोटी समस्याओं को भी हल करने में खुद को असमर्थ महसूस करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाएं।
बहुत सारे माता-पिता बच्चों को जरूरत से ज्यादा कंट्रोल करते हैं। इसके लिए वो बच्चों को डराने धमकाने के साथ ही शर्त लागू करते हैं। हर नियम को तोड़ने पर सजा निर्धारित करते हैं। जिसे सख्ती से लागू करते हैं। ऐसे में बच्चा डरा हुआ या फिर किसी भी काम को करने के लिए खुद में विश्वास नहीं जगा पाता। उसे किसी भी काम को मुश्किल होती है और सजा का डर बन जाता है।
बच्चा जब कुछ अपने पैरेंट्स से कहना चाहता है या फिर अपनी भावनाएं जाहिर करना चाहता है। तो उसे डांट दिया जाता है। या फिर उसकी बातों को गलत साबित कर दिया जाता है। किसी भी तरह के निष्कर्ष से पहले जरूरी है कि आप अपने बच्चे की भावनाओं को समझें। इसके लिए पहले उसकी बातों को सुनना होगा। तभी आप उसके अंदर की भावनाओं को समझ पाएंगे।