नई दिल्ली। हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया के साथ भगवान परशुराम की जयंती भी मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास के तृतीया तिथि को प्रदोष काल में हुआ था। भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठे स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि परशुराम का जन्म धरती पर राजाओं द्वारा किए जा रहे अधर्म, पाप का विनाश के लिए हुआ था। कहा जाता है कि भगवान परशुराम चिरंजीवी है जो आज भी जीवित हैं।
परशुराम जंयती के महत्व के बारें में बात करें तो,माना जाता है कि भगवान परशुराम का जन्म धरती से अन्याय को खत्म करने के लिए हुआ था। भगवान परशुराम के पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था। भगवान परशुराम को भगवान शिव का एकमात्र शिष्य माना जाता है। मान्यता है कि भगवान परशुराम ने कठोर तपस्या करके महादेव को प्रसन्न करके किया था। इसके उपरांत ही उन्हें परशु (फरसा) मिला था।
मान्यता है कि परशुराम जयंती के दिन व्रत रखने के साथ विधिवत तरीके से पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं निसंतान लोग इस व्रत को रखें तो जल्द ही पुत्र की प्राप्ति होती है। भगवान परशुराम की पूजा करने से विष्णु भगवान की भी कृपा जातक के ऊपर बनी रहती है।
वहीं हम आपको परशुराम जयंती पर पूजा करने की विधि को लेकर बता दे कि तृतीया तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर मंदिर या घर की साफ-सुथरी जगह पर एक चौकी में कपड़ा बिछाकर भगवान परशुराम की तस्वीर या फिर मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद जल, चंदन, अक्षत, गुलाल, फूल आदि चढ़ाएं।
इसके बाद भगवान को तुलसी दल भी चढ़ाएं। भोग में मिठाई, फल आदि जलाएं। विधिवत तरीके से पूजा करने बाद घी का दीपक और धूप जलाकर आरती कर लें। इस दिन जो जातक व्रत रख रहे हैं वो लोग बिना अनाज खाएं दिनभर व्रत रखें। तो इस तरह से आप अपने दिन को शुभ मना सकते है और भगवान को याद कर सकते है।