Sunday, September 8, 2024
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क्या अभिभावकों की लापरवाही बच्चों से करवाती है गुनाह?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अभिभावकों की लापरवाही बच्चों से गुनाह करवाती है या नहीं! पुणे में हाल ही में हुए एक भयानक सड़के हादसे से पूरा देश गुस्से में है। हर जगह इसकी चर्चा चल रही हैं। इस दुर्घटना में एक 17 साल के नाबालिग लड़के ने कथित तौर पर शराब पी रखी थी और उसने बाइक सवार दो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को टक्कर मार दी, जिससे उनकी मौत हो गई। इस घटना से यह सवाल भी उठता है कि ऐसे गंभीर मामलों में नाबालिगों और बड़ों की जवाबदेही कैसी होनी चाहिए? इस पर गंभीरता से चर्चा करने की जरूरत है। जब भी नाबालिग अपराध की बात आती है, तो अक्सर यह भूल हो जाती है कि उनकी हरकतों के पीछे की सोच को नहीं समझा जाता। विज्ञान कहता है कि नाबालिगों में फैसले लेने का दिमाग बड़ों जितना विकसित नहीं होता। वह जल्दी से आवेश में आ जाते हैं और वे अपने किए कामों के नतीजों को अच्छे से नहीं समझ पाते। इसी वजह को ध्यान में रखकर नाबालिगों को बड़ों से कम सजा दी जानी चाहिए क्योंकि उनकी दिमागी सोच पूरी तरह से विकसित नहीं होती। हालांकि, नाबालिगों को अपने किए की सजा जरूर मिलनी चाहिए, मगर उनकी गलती के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार वो बड़े होते हैं जिनका उन पर असर होता है और जो उन्हें सही रास्ता दिखा सकते हैं। गौर करने वाली बात ये है कि कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के बच्चे 50 सीसी से ज्यादा की गाड़ी नहीं चला सकते और उन्हें स्कूटी या लूना जैसी गाड़ियां ही चलाने की इजाजत होती है। इस मामले में नाबालिग पर आईपीसी की धारा 304 के तहत आरोप लगाए गए हैं। यह वह धारा है जिसके तहत किसी की लापरवाही से मौत हो जाती है, लेकिन हत्या का इरादा नहीं होता। इस धारा के तहत अधिकतम 10 साल की सजा हो सकती है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अनुसार, अगर किसी अपराध में 7 साल या उससे ज्यादा की सजा हो सकती है तो उसे ‘जघन्य’ अपराध माना जाता है। इस कानून के हिसाब से, नाबालिग पर शायद एक बड़े व्यक्ति की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे ज्यादा सजा भी हो सकती है। लेकिन, इससे पहले कि ऐसा कुछ किया जाए, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के सिद्धांतों को समझना जरूरी है। यह कानून सजा देने से ज्यादा नाबालिगों के सुधार पर ध्यान देता है। कानून मानता है कि नाबालिगों की उम्र और दिमाग के विकास की वजह से उन्हें उतना ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता जितना किसी बड़े को। इस मामले में, ऐसा लगता है कि नाबालिग ने किसी सोची-समझी साजिश या बुरे इरादे से नहीं, बल्कि बहुत बड़ी लापरवाही से काम लिया। इसलिए, इसे जघन्य अपराध कहने से ज्यादा एक बहुत बड़ी गलती कहना ज्यादा सही होगा।

इस पूरे मामले में पिता की भूमिका से साफ पता चलता है कि उन्होंने अपने बेटे और आम जनता दोनों की सुरक्षा को पूरी तरह से नजरअंदाज किया। नाबालिग को इतनी तेज गाड़ी चलाने देना लापरवाही का सबसे बड़ा उदाहरण है। माता-पिता या अभिभावकों को यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है कि वो अपने बच्चों की देखरेख करें और उन्हें गलत काम करने से रोकें। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 199A के तहत, अगर कोई नाबालिग गाड़ी चलाते हुए पकड़ा जाता है और कानून तोड़ता है, तो इसकी जिम्मेदारी गाड़ी के मालिक या अभिभावक की मानी जाती है, जब तक वो खुद को बेकसूर साबित ना कर दें। इसी तरह, जिस जगह पर नाबालिग को शराब दी गई, वहां भी बहुत लापरवाही बरती गई। उन्होंने नाबालिग को शराब देकर कानून तोड़ा और भयानक हादसे की संभावना को भी नजरअंदाज किया।

इस घटना के बाद सिस्टम जागा है और कुछ सख्त ऐक्शन लिए हैं। मोटर वाहन अधिनियम के नियमों के अनुसार, नाबालिग को 25 साल की उम्र तक ड्राइविंग लाइसेंस नहीं दिया जाएगा और उस लग्जरी कार का रजिस्ट्रेशन भी 12 महीने के लिए किसी भी RTO ऑफिस में नहीं हो पाएगा। पुलिस ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 75 और 77 के तहत पिता और उस जगह के कर्मचारियों पर भी आरोप लगाए हैं। धारा 75 बच्चों की लापरवाही से देखभाल करने के बारे में है और धारा 77 बच्चों को शराब देने के अपराध से जुड़ी है। ये कानूनी नियम बताते हैं कि नाबालिगों को गलती करने से बचाना बड़ों की जवाबदेही है, खासकर तब जब वो अपने कम उम्र के कारण सही फैसला नहीं ले पाते।

ये गुस्सा जायज है, लोगों को लगता है कि अमीर और रसूखदार होने के नाते शायद उन्हें सजा ना मिले। लेकिन गुस्से में कोई गलती न हो। ना तो उस लड़के की जिंदगी बर्बाद करनी चाहिए और ना ही उस बेगुनाह ड्राइवर को फंसाना चाहिए, जिसे शायद परिवार दुर्घटना का इल्जाम लेने के लिए दबाव डाल रहा है। अमीर लोग गरीबों को कैसे फंसा लेते हैं, ये हम सब जानते हैं। इस गुस्से का इस्तेमाल अच्छे के लिए होना चाहिए। जिस तरह से हादसे में मौत हुई है, उसका सम्मान करते हुए ऐसा कोई रास्ता निकाला जाए जिससे भविष्य में ऐसे हादसे ना हों। नाबालिग को उसकी उम्र को ध्यान में रखते हुए सजा मिले और लापरवाही करने वाले बड़ों और दुकानों पर भी सख्त कार्रवाई हो। ऐसे संतुलित फैसले से ये संदेश जाएगा कि नाबालिगों को शराब देना और माता-पिता की लापरवाही दोनों ही गलत हैं और इन पर सजा हो सकती है।

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