यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वर्तमान की राजनीति हिंदुत्व को कमजोर बताती है या नहीं! आज देश में मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग फिर से विभाजनकारी मानसिकता का भौंडा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन पूरा विपक्ष हिंदुत्व को जहरीला बता रहा है। इन्हें भी पता है कि अगर वो मलाई चाटने के लिए जिन चुनावों में जीतकर सत्ता की कुर्सी तक पहुंचते हैं, वो सिर्फ और सिर्फ इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि यहां हिंदुओं की बड़ बहुमत है। लेकिन इन्हें दुनिया की सारी बुराइयां हिंदुत्व में ही दिखती हैं। फिर चालाकी से ये भी बताते हैं कि वो जिस हिंदुत्व का विरोध करते हैं, वो कुछ और है और असली हिंदुत्व कुछ और है। लेकिन क्या मजाल कि वो यही बात इस्लाम के लिए कह दें। उन्होंने हिंदुत्व के भेद बता रहे समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता से जब पूछ लिया कि क्या वो इस्लाम में भी इसी तरह का भेद बता पाएंगे तो उन्होंने चुप्पी ठान ली। एंकर महोदय बार-बार पूछते रहे, सपा नेता बार-बार टालते रहे। एक बार भी इस्लाम का उच्चारण करने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाए। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और अभी-अभी लोकसभा में विपक्ष के नेता बने राहुल गांधी भी हिंदुत्व और आरएसएस से देश को खतरा बताते हैं। उन्होंने लोकसभा में यहां तक कह दिया कि जो अपने आपको हिंदू कहते हैं वो चौबीसों घंटे हिंसा करते हैं, नफरत में जीते हैं और असत्य बोलते हैं। फिर सत्ता पक्ष ने इस पर सवाल उठाया तो वो तुरंत चालाकी पर उतर आए कि उन्होंने तो बीजेपी वालों को कहा है, सभी हिंदुओं को नहीं। तो क्या बीजेपी से जुड़े नेता, कार्यकर्ता और उनके समर्थक हिंदू हिंसक हैं? सोशल मीडिया एक्स यूजर विजय पटेल ने राहुल की टिप्पणी का जबर्दस्त जवाब दिया है। उन्होंने लिखा, ‘राहुल गांधी इतने बहादुर हैं कि हिंदुत्व के खिलाफ लड़ रहे हैं! इसलिए मैं दुनियाभर के 143 हिंदुत्व आतंकी संगठनों के नाम बता रहा हूं। हमारी धरती और पूरी मानव जाति इन्हीं हिंदुत्व आतंकी संगठनों के कारण खतरे में है। मैं आपको वो सारे नाम दिखाता हूं।’
खैर, ये तो हुई सच को झूठ और झूठ को सच बनाने की कथित सेक्युलर माइंडसेट की बात। यही सेक्युलर ब्रिगेड जो स्वामी विवेकानंद और बीजेपी के हिंदुत्व में अंतर देखता है, वही किस तरह इस्लाम की खामियों पर पर्दा डालता है, अब इसकी बात हो जाए। हिंदू समाज में जाति एक सच्चाई है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है। लेकिन क्या बदलते वक्त के साथ हिंदू समाज ने खुद को नहीं बदला? क्या आज जातियों का जकड़न तेजी से कमजोर नहीं पड़ रहा है? दूसरी तरफ, मुसलमानों का क्या? क्या वहां जातियां नहीं हैं? क्या वहां फिरके नहीं हैं? क्या मुसलमानों की उच्च जातियां पूरे समुदाय पर हावी नहीं है? लेकिन हिंदुओं को जाति के नाम एक-दूसरे से भिड़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ने वाले मुसलमानों की एकता की चाहत रखते हैं। इसके पीछे की एक ही मानसिकता है, हिंदू जातियों में बंटकर एकतरफा वोट नहीं करे और मुसलमान का एकमुश्त वोट कथित सेक्युलर पार्टी को मिल जाए, फिर बल्ले-बल्ले। इसके लिए देश-समाज को गर्त में धकेलने को तैयार, ऊपर से खुद के सबसे पवित्र होने की भी धृष्टता। ये है सेक्युलर दलों की हकीकत। मुसलमानों में जाति, वर्ग के आधार पर विभाजन हो गया तब तो वो बोट बैंक नहीं रह जाएगा। फिर धर्मनिपेक्षता की ढोंगपूर्ण राजनीति कैसे चलेगी? इस्लाम के अंदर फिरकापरस्ती किस हद तक है, यह आप इस वीडियो क्लिप से अच्छे से समझ सकते हैं।
आज अनपढ़, पिछड़े मुसलमानों को तो छोड़ दीजिए, विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े सिलेब्रिटी टाइप मुसलमान भी राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान गाने से बचते हैं। भारत माता की जय का नारा नहीं लगाएंगे, वंदे मातरम नहीं कहेंगे। इसके पीछे उनकी हजार दलीलें हैं और उनसे भी ज्यादा तर्क हैं कथित सेक्युलर ब्रिगेड का। हैरत की बात है कि दुनियाभर में हिंसा का पर्याय बन चुके एक कौम भारत में धर्मनिरपेक्षता का झंडा लहरा रहा है। दुनिया को कोई कोना नहीं जहां आतंकवाद से मुसलमान से कनेक्शन नहीं जुड़ा हो। लेकिन भारत की सेक्युलर जमात को खतरा हिंदुत्व से दिखता है। ये वही मोहम्मद अली जिन्ना की मानसिकता है जिसने भारत के दो टुकड़े करवाए थे। ये वही जिन्ना की मानसिकता है जो कहता है कि हिंदू इतने नफरती हो गए हैं कि मुसलमान उनके साथ नहीं रह सकते। आज सात दशक में ही हिंदुओं में जिधर देखो खुद को दूसरों से बड़ा जिन्ना दिखाने को बेताब है- मैं मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी, हिंदुओं और जैसी गालियां दिलवानी है दिलवा लो।
डिबेट क्लिप के वायरल होने पर वो लिखते हैं, ‘क्या यह सच नहीं कि आज कल आए दिन हिंदुओं को गाली देना, उनका अपमान करना, हिंदुओं को बांटने का षडयंत्र करना कुछ राजनीतिक दलों और नेताओं का प्रिय खेल बन गया है? कहीं डिसमैंटलिंग हिंदुत्व जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, कहीं मेरे धर्म को एड्स, डेंगू, मलेरिया कहकर उसका समूल नाश करने के भाषण दिए जा रहे हैं। इस सबसे मैं दुखी हूं, गुस्से में हूं और फिर उस दिन राहुल गांधी ने संसद में विश्व के सबसे शांतिप्रिय, सबसे सहिष्णु हिन्दू धर्म को हिंसक और नफरत फैलाने वाला बोल दिया। इस सबका गुस्सा और दर्द कुछ शब्दों के रूप में मेरे मुंह से निकल गए।’ वो आगे कहते हैं, ‘और जब यह क्लिप वायरल हुआ तो मुझे एहसास हुआ कि उस दिन मैंने जो कुछ कहा वो अकेले मेरी नहीं करोड़ों हिंदुओं के हृदय की आवाज है। उम्मीद है कि राहुल गांधी सहित जो लोग भी हिंदुओं को हिंसक, एड्स, डेंगू और मलेरिया कहते हैं, सनातन का समूल नाश करने की बातें करते हैं वो करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को समझेंगे और ऐसी घटिया हरकतों की पुनरावृति से बचेंगे।’
यह लेख पढ़कर एक वर्ग मुझमें जहर ढूंढेगा, लेकिन वही वर्ग बताएगा कि कश्मीर के मुसलमानों या देश के अन्य किसी हिस्से के मुसलमानों में अगर आक्रोश है तो क्यों। वो बताएगा कि दरअसल मुसलमानों को लेकर भड़काया जा रहा है, उन्हें हाशिये पर धकेला गया है। वही वर्ग बताएगा कि कैसे मुसलमानों की दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए। सोचिए, जिन मुसलमानों ने कश्मीर से हजारों हिंदुओं का नरसंहार किया, जिन्होंने डायरेक्ट ऐक्शन डे, मोपला नरसंहार समेत तमाम हिंसक कार्रवाईयों में हिंदुओं की लाशें बिछा दीं, उनके दिल जीतने की जरूरत अब भी है, लेकिन बात-बात में कत्लेआम हुआ हिंदू अपनी वेदना भी बयां कर दे तो जहरीला हो जाता है। ये है भारत में धर्मनिरेपक्षता का दंश। धर्मनिरपेक्षता की ऐसी राग किसी भी देश, समाज का मर्सिया है और कुछ नहीं। सोचिए, नूपुर शर्मा के मामले में देश में मुसलमानों का कैसा खौफ था। यह कोई छठी सदी की बात नहीं, बस सालभर पहले का खौफनाक वाकया है जब आठ निर्दोष हिंदुओं की बर्बर हत्या की गई। लेकिन खोंट हिंदुत्व में है। हिंदुत्व में यह खोट बताने वाले जबकि इस्लाम में अमन का पैगाम पढ़ने वाले धर्मनिरपेक्ष हैं। ये वर्तमान की सबसे बड़ी विडंबना है।