क्या बिहार की कानूनी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो गई?

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बिहार की कानून व्यवस्था पर अब सवाल उठने लगे हैं! अपनी तीन दिनों की दिल्‍ली यात्रा और भाजपा विरोधी दलों को जोड़ने की कोशिश का गोल पूरा करने के बाद बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार पटना लौट आए। पटना लौटने पर पत्रकारों ने उन्‍हें घेर लिया। तीन दिनों में कुछ बड़ी घटनाएं ही ऐसी हुईंं कि सवाल बनना लाजमी था। यहां से निकलने के बाद वो सीधे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के दरबार पहुंच गए। यहां उन्‍होंने राजद सुप्रीमो को तीन दिनों के कार्यक्रम का अपडेट दिया। उन्‍होंने लालू यादव को बताया वो किससे-किससे मिले। कब-कब उनकी मुलाकात हुई। मुलाकात में क्‍या बात हुई। मुलाकात का तरीका क्‍या था। भविष्य की संभावनाओं वाले दलों के क्‍या विचार थे। और ये दलों भविष्‍य की संभावनाओं को लेकर कितना गंभीर हैं। इन सभी की जानकारी नीतीश कुमार ने लालू यादव को दी।

राजनीतिक गलियारे में अब एक बात की चर्चा जोरोंं पर हो रहीं है। चर्चा है कि क्‍या नीतीश कुमार वाकई मुख्‍यमंत्री हैं या केवल मुख्‍यमंत्री का चेहरा? क्‍या बिहार की सत्‍ता पर अब भी नीतीश कुमार की हनक है? क्‍या बिहार में वही नीतीश कुमार वाला बहार है? या नीतीश कुमार बेबस और लाचार हैं? जिन्‍हे सत्‍ता में बने रहने के लिए लालू यादव के दरबार में हाजिरी लगाने की जरूरत पड़ रही है? दरअसल, मौजूदा हालात तो यही नजर आते हैं। राजनीति के जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार के पास फिलहाल को चारा भी नहीं। जिस तरीके से नीतीश कुमार दिल्‍ली यात्रा से पहले लालू प्रसाद यादव से मिले। और आने के बाद भी सबसे पहले उन्‍होंने राजद सुप्रीमो के यहां हाजिरी लगाई। उसे देखकर तो अब ये चर्चा आम हो गई है कि नीतीश कुमार केवल कुर्सी पर बैठे हैं।

बिहार में राजनीतिक इतिहास और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के अतीत को देखा जाए तो लालू यादव को परदे के पीछे से सरकार चलाने का अनुभव है। यहां पहले भी मुखौटा मुख्‍यमंत्री रहे हैं। जिसका नतीजा बिहार ने भुगता है। बिहार में हत्‍या, लूट, अपहरण का दौर देखा है। सवाल तब भी होते थे। लेकिन उस पर सफाई दी जाती थी, कार्रवाई नहीं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बिहार एक पॉलिटिकली चार्ज प्रदेश है। राजनीति को बहुत अच्‍छी तरीके से समझता है। इसमें आने वाले उतार चढ़ाव को भी समझता है। उसी के हिसाब से एक्‍ट भी करता है। ऐसे में उसने जिस तरीके की तस्‍वीर आज देखी है वो ये बताने के लिए काफी है कि बिहार में एक बार फिर लालू यादव परदे के पीछे से सरकार चला रहे हैं और नीतीश कुमार सत्‍ता में मुखौटा मुख्‍यमंत्री बन कर रह गए हैं।

जिसका नतीजा है कि राजधानी पटना में खनन विभाग के इंस्‍पेक्‍टर को खनन विभाग के दफ्तर में घुसकर जान मानने की धमकी दे देता है। बात नहीं मानने पर हाइवा चढ़ाने के की धमकी दी जाती है। बालू माफिया खनन विभाग के इंस्‍पेक्‍टर पर फाइन उसके हिसाब से काटने को कहता है। उससे सीनियर अधिकारी का नाम लेकर उसे गाली देता है। उसके सीनियर अधिकारी से दोगुने पैसे घर से वसूलन लाने की धौंस दिखाता है। जिस पर प्रशासन मौन है और मुखिया उस पर सफाई दे रहा है। बताते चलें अब तक इस मामले में गिरफ्तारी भी नहीं हुई। बीजेपी के नेता इसे जंगल राज रिटर्नस बता रहे हैं।

दिल्‍ली से गया होते हुए नीतीश कुमार पटना पहुंचे। लालू के दरबार में हाजिर होने से पहले वो पत्रकारों से मुखातिब हुए। इस दौरान पत्रकारों ने बिहार में अपराध की स्थिति और बीजेपी के जंगलराज वापसी वाले बयान पर सवाल पूछ लिया। जिस पर तिलमिलाते हुए नजर आए। नीतीश कुमार को लंबे समय से कवर करने वाले पत्रकारों का भी मानना है कि उन्होंने ऐक्‍शन लेने के बजाए सफाई दी। अपनी लकीर को तो मिटाया ही दूसरे राज्यों की लकीर को छोटा बताने की कोशिश की। 3 दिनों में तीन बड़ी घटनाएं हुईंं हैं। जिसे सामान्य बताने की कोशिश की है। उन्होंने कहा दूसरे राज्‍यों, देश और जिलों में भी घटनाएं होती हैं।

लालू से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार की तीन दिनों में बिहार में अपराधियों के मनोबल बड़ा उछाल देखा गया। बालू माफिया का आरजेडी विधायक का नाम लेकर की गई दबंगई का जिक्र हम कर चुके हैं। वहीं, मंगलवार को सिवान में पुलिस की गश्‍ती दल पर अपराधियों ने अंधाधुन फायरिंंग कर दी। जिसमें एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई। इस फायरिंंग में एक बुजुर्ग को भी गोली लगी।