Friday, November 22, 2024
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क्या बीजेपी ने बदल दी है लोकसभा चुनाव के नतीजे से रणनीतियां?

वर्तमान में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के नतीजे से रणनीतियां बदल दी है! हरियाणा विधानसभा चुनावों में जीत ने बीजेपी को जरूरी ताकत दी है। लोकसभा चुनाव में मिले उम्मीद से कमतर परिणाम ने बीजेपी खेमे में मायूसी का संचार कर दिया था। फिर हरियाणा में जब प्रदेश की दबंग जाति जाट ने बीजेपी के खिलाफ मोर्च खोल दिया तो पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई। प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ ‘जवान, किसान, पहलवान’ की एकजुटता का नैरेटिव गढ़ा गया। ऐसे माहौल में बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत हासिल कर तीसरी बार सरकार बनाना सुनिश्चित कर लिया। इस कामयाबी ने आगामी विधानसभा चुनावों का माहौल भी पलट गया। बीजेपी ने जिस तरह हरियाणा में सबसे दबंग जाति समूह जाट के विरोध को काफी हद तक निष्प्रभावी कर दिया, उससे महाराष्ट्र में मराठा और झारखंड में आदिवासियों को संदेश तो जरूर जाएगा जिन्होंने लोकसभा चुनावों में बीजेपी का विरोध किया था। बता दें किझारखंड में आजसू नेता सुदेश महतो ने दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ दो बैठकें कीं। महतो 13 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। हालांकि, भाजपा उन्हें आठ सीटें ऑफर कर रही थी, जिस पर 2014 में आजसू ने भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। 2019 में आजसू ने अकेले 53 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल दो सीटें जीत सकी। हरियाणा में जीत के साथ भाजपा अब आजसू को सिंगल डिजिट नंबर पर लाने के लिए दबाव बनाएगी। आजसू के अलावा भाजपा दो सीटों के साथ जेडीयू को समायोजित कर सकती है। लोजपा (रामविलास) को एक सीट देने पर अभी चर्चा नहीं हुई है।इन दोनों प्रदेशों में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से बीजेपी ने कई विधानसभा चुनावों में गैर-प्रमुख जातियों के साथ-साथ अति पिछड़े वर्ग (ईबीसी) को एकजुट करने की कोशिशें की हैं। इस ईबीसी समूह में कारीगर जातियां हैं, जिनके पास जमीन नहीं है। हरियाणा की तरह, सैनी, कुम्हार, खाती (बढ़ई) और नाई जैसी गैर-प्रमुख जातियों ने भाजपा का समर्थन किया और राज्य में पार्टी के लिए नए सपोर्ट बेस के रूप में उभरीं। झारखंड और महाराष्ट्र में भाजपा ने अतीत में राजनीतिक रूप से गैर-प्रमुख जातियों को एकजुट करने की कोशिश की है, जो जनसंख्या में छोटे हैं। हरियाणा में भाजपा की जीत झारखंड और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए उसकी रणनीति को और मजबूत करेगी, ताकि छोटी-छोटी राजनीतिक रूप से कम प्रभावशाली जातियों को अपने पक्ष में किया जा सके। दूसरी तरफ बीजेपी यह भी चाहेगी कि वह उच्च जातियों के बीच अपने सपोर्ट बेस के साथ इन पिछड़ी जातियों की सोशल इंजीनियरिंग करके उन्हें चुनाव मैदान में उतरा जा सके।

हरियाणा की जीत के साथ ही भाजपा अब सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे के मामले में भी आगे है। महाराष्ट्र में शिवसेना हाल के लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन के आधार पर सीट बंटवारे पर बातचीत करने की कोशिश कर रही है, जहां भाजपा ने नौ सीटें जीती थीं और शिवसेना ने सात। लेकिन हरियाणा चुनावों में बीजेपी की जीत ने पासा पलट दिया। अब बीजेपी सीट बंटवारे का फैसला करेगी और सहयोगियों को स्वीकार करना होगा। महाराष्ट्र भाजपा के सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार द इकनॉमिक टाइम्स (ईटी) से कहा कि बीजेपी सहयोगियों के साथ अब भी उदारता से ही पेश आएगी लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा सभी क्षेत्रों में चुनाव लड़ेगी क्योंकि इसमें सहयोगियों के लिए भी वोट आकर्षित करने की क्षमता है।

झारखंड में आजसू नेता सुदेश महतो ने दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ दो बैठकें कीं। महतो 13 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। हालांकि, भाजपा उन्हें आठ सीटें ऑफर कर रही थी, जिस पर 2014 में आजसू ने भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। 2019 में आजसू ने अकेले 53 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल दो सीटें जीत सकी।भाजपा उन्हें आठ सीटें ऑफर कर रही थी, जिस पर 2014 में आजसू ने भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। 2019 में आजसू ने अकेले 53 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल दो सीटें जीत सकी। हरियाणा में जीत के साथ भाजपा अब आजसू को सिंगल डिजिट नंबर पर लाने के लिए दबाव बनाएगी। हरियाणा में जीत के साथ भाजपा अब आजसू को सिंगल डिजिट नंबर पर लाने के लिए दबाव बनाएगी। आजसू के अलावा भाजपा दो सीटों के साथ जेडीयू को समायोजित कर सकती है। लोजपा (रामविलास) को एक सीट देने पर अभी चर्चा नहीं हुई है।

 

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