क्या राहुल गांधी चुनावों के बाद बन चुके हैं हीरो?

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वर्तमान में राहुल गांधी चुनावों के बाद हीरो बन चुके हैं! लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के तहत भले ही केंद्र में तीसरी बार मोदी सरकार बनी हो, लेकिन सही मायने में लॉटरी तो कांग्रेस की लगी है। चुनाव के नतीजों के बाद राहुल गांधी देश में हीरो बनकर उभरे हैं। राहुल गांधी ने वायनाड और रायबरेली दोनों सीटों पर बड़ी जीत हासिल की है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जो कांग्रेस अपने अस्तिस्व को बचाने को लेकर जद्दोजहद में लगी हो, उसके हाथ 99 सीटें लगना किसी संजीवनी से कम नहीं है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है और 52 सीटों से 99 सीटों पर पहुंच गई है। हालांकि, कांग्रेस अपना शतक पूरा नहीं कर सकी। ऐसे में कांग्रेस को आगे की सफलताओं के लिए कड़ा संघर्ष जारी रखना होगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया है। ये जीत कांग्रेस के लिए संजीवनी से कम नहीं है। इस जीत ने साबित कर दिया है कि भारतीय राजनीति में अभी भी लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हैं। पहले ऐसा लगता था कि कांग्रेस भले ही कुछ राज्यों के चुनाव जीत ले, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उसकी वापसी मुश्किल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के आगे कांग्रेस कमजोर दिख रही थी। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने इस मिथक को तोड़ दिया है। कांग्रेस ने सिर्फ दक्षिण ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत में भी अपनी पकड़ मजबूत की है। यहां तक कि बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले इलाकों में भी कांग्रेस ने अपनी जगह बनाई है।

बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस इस जीत को आगे कैसे बढ़ाएगी? पिछले 10 सालों में जब-जब पार्टी को कामयाबी मिली, वो आगे नहीं बढ़ पाई छोटी-मोटी जीत से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। अगर कांग्रेस 2029 में वापसी करना चाहती है और 200 सीटें जीतकर सरकार बनाना चाहती है, तो उसे अपनी जीत का सिलसिला जारी रखना होगा। कुछ आंकड़े बताते हैं कि जहां-जहां भारत जोड़ो यात्रा निकली, वहां कांग्रेस को फायदा हुआ। कुल मिलाकर, यह कहना गलत नहीं होगा कि दोनों यात्राओं से कांग्रेस को वोट और सीटें दोनों जगह बढ़त मिली। यात्राओं ने पार्टी के निराश कार्यकर्ताओं में जोश भरा।

एक-दो दिन के विरोध प्रदर्शन काफी नहीं हैं। पार्टी को हफ्तों और महीनों तक चलने वाले लंबे अभियानों की जरूरत है। इस विशाल देश के 140 करोड़ विविध लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए यही कारगर तरीका है। खासकर तब जब मीडिया आपको उचित कवरेज न दे। ये काम 2028 तक नहीं टाला जा सकता। कांग्रेस पार्टी को हमेशा एक राष्ट्रीय अभियान चलाते रहना चाहिए, भले ही वह राज्य चुनावों में कैसा भी प्रदर्शन कर रही हो। राज्य चुनावों के दौरान राष्ट्रीय अभियानों को रोकने के बजाय, राष्ट्रीय अभियान को राज्य अभियानों का पूरक माना जाना चाहिए। हर साल एक बड़ा राष्ट्रीय अभियान चलाने से कोई यह नहीं कहेगा कि ‘कांग्रेस क्या कर रही है?’ और जनता से जुड़कर विपक्ष की भूमिका निभाती रहेगी। इस अभियान का नेतृत्व आदर्श रूप से राहुल गांधी को करना चाहिए, भले ही यह पहली भारत जोड़ो यात्रा जितना कठिन न हो। गांधी की भागीदारी ने सुनिश्चित किया कि पार्टी के सभी लोग गुटबाजी को दरकिनार कर यात्रा को अपना सर्वश्रेष्ठ दें।

जीत की राह आसान बनाने के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा राज्यों में जीत हासिल की जाए। सबसे पहले नज़र महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और झारखंड पर होगी। पहले दो राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा है। ऐसा लगता है कि पार्टी दोनों राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब हो सकती है। लेकिन, भाजपा भी हार मानने वालों में से नहीं है। वो महाराष्ट्र और हरियाणा में हार से बचने की पूरी कोशिश करेगी। इसलिए, कांग्रेस को ये नहीं सोचना चाहिए कि दोनों राज्य उसकी मुट्ठी में हैं। ज्यागा आत्मविश्वास से गलतियां हो सकती हैं। हरियाणा में पार्टी को एकजुट होकर चुनाव लड़ना होगा। उन्हें ये साबित करना होगा कि कांग्रेस सिर्फ जाटों की पार्टी नहीं है। पार्टी के अंदरूनी गुटबाजी को खत्म करना बहुत ज़रूरी है। कांग्रेस को अपने अभियान से ये सुनिश्चित करना होगा कि जाट विरोधी वोट एकजुट ना हो सकें।महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सबसे बड़ी पार्टी बनकर सबको चौंका दिया है। इससे महाराष्ट्र कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकती है, जिनकी पार्टियों ने कठिन परिस्थितियों में अच्छा प्रदर्शन किया है। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी गठबंधन को अपना न्यूनतम कार्यक्रम और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना चाहिए। महाराष्ट्र कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में फिर से सबसे बड़ी पार्टी बनने का लक्ष्य रखना चाहिए।

राजस्थान में अशोक गहलोत की कल्याणकारी योजनाओं का असर दिखा। भाजपा को उम्मीद थी कि उसे 150 सीटें मिलेंगी, लेकिन उसे 2023 के विधानसभा चुनावों में लगभग 120 सीटें ही मिल पाईं। राजस्थान में हर 5 साल में सरकार बदलती रहती है। लेकिन अगर भाजपा को मध्य प्रदेश जैसी बड़ी जीत मिल जाती, तो कांग्रेस लोकसभा चुनाव में 12 सीटें नहीं जीत पाती। राजस्थान से सीख मिलती है कि सिर्फ एक चुनाव के बारे में नहीं सोचना चाहिए। कांग्रेस को अगले दो-तीन चुनावों को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी चाहिए। कांग्रेस को अपनी गति बनाए रखने के लिए यही करना होगा!