Wednesday, December 4, 2024
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क्या मोब लिंचिंग के खिलाफ भी सख्त हो गया है कानून?

वर्तमान में भारतीय कानून मोब लिंचिंग के खिलाफ भी सख्त हो गया है !आईपीसी का दौर जा चुका है, एक जुलाई यानी सोमवार से देश में नए क्रिमिनल लॉ लागू हो चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि तीन नए कानूनों के कार्यान्वयन से दंड की जगह न्याय होगा और देरी की जगह तुरंत सुनवाई होगी। इस दौरान उन्होंने मॉब लिंचिंग पर कानून का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मॉब लिंचिंग के अपराध को लेकर पहले के कानून में कोई प्रावधान नहीं था। अब नए कानूनों में पहली बार मॉब लिंचिंग को परिभाषित किया गया। मॉब लिंचिंग के मामले में 7 साल की कैद या उम्रकैद यहां तक की फांसी की सजा का प्रावधान है। कानून बनाने से पहले इसके हर पहलू पर चार सालों तक विस्तार से अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा की गई। आजादी के बाद से अब तक किसी भी कानून पर इतनी लंबी चर्चा पहले कभी नहीं हुई।अमित शाह ने कहा कि आजादी के 77 साल बाद आपराधिक न्याय प्रणाली स्वदेशी हो रही। नए कानूनों में मॉब लिंचिंग पर अलग से कानून बनाया गया है। इस कानून के तहत शरीर पर चोट पहुंचाने वाले क्राइम को धारा 100-146 तक का जिक्र है। मॉब लिंचिंग के मामले में न्यूनतम 7 साल की कैद हो सकती है। इसमें उम्रकैद या फांसी की सजा का भी प्रावधान है। इसके अलावा हत्या के मामले में धारा 103 के तहत केस दर्ज होगा। धारा 111 में संगठित अपराध के लिए सजा का प्रावधान है। धारा 113 में टेरर एक्ट बताया गया है।

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 2023 सोमवार से पूरे देश में प्रभावी हो गए। इन तीनों कानून ने ब्रिटिश कालीन कानूनों क्रमश: भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली है। अमित शाह ने कहा कि देशभर के 99.9 फीसदी पुलिस थाने कंप्यूटराइज हो चुके हैं। ई-रिकॉर्ड जनरेट करने की प्रक्रिया भी 2019 से शुरू कर दी गई थी। जीरो एफआईआर, ई-एफआईआर और चार्जशीट सभी डिजिटल होंगे। नए कानूनों में सात साल या इससे अधिक की सजा वाले अपराधों में फरेंसिक जांच अनिवार्य होगी। न्यायपालिका में भी 21 हजार सब-ऑर्डिनेट न्यायपालिका की ट्रेनिंग हो चुकी है। 20 हजार पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को ट्रेंड किया गया है।

अमित शाह ने कहा कि एक ऐसा झूठ फैलाया जा रहा है कि संसद सदस्यों को बाहर निकालने के बाद यह कानून पारित किए गए। यह गलत है। उन्होंने बताया कि 2020 में सभी सांसदों, मुख्यमंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को पत्र लिखकर उनसे सुझाव मांगे गए। गृह सचिव ने देश के सभी आईपीएस और जिला अधिकारियों से इस संबंध में सुझाव मांगे। शाह ने बताया कि उन्होंने खुद 158 बार इन कानूनों की समीक्षा बैठक की। इसके बाद गृह मंत्रालय की समिति के पास इन्हें भेजा गया। फिर ढाई से तीन महीने तक इन पर गहन चर्चा के बाद कुछ राजनीतिक सुझावों को छोड़ते हुए 93 बदलावों के साथ इन बिलों को फिर से कैबिनेट ने पारित किया।बता दें कि 1 जुलाई से लागू हुए तीनों नए कानूनों को दंड की जगह न्याय देने वाला बताया। उन्होंने कहा कि कानून बनाने से पहले इसके हर पहलू पर चार सालों तक विस्तार से अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा की गई। आजादी के बाद से अब तक किसी भी कानून पर इतनी लंबी चर्चा पहले कभी नहीं हुई।

नए कानूनों में पहली प्राथमिकता महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को दी गई है। इसमें एक नया अध्याय जोड़कर इसे और अधिक संवेदनशील बनाया गया है। जीरो एफआईआर, ई-एफआईआर और चार्जशीट सभी डिजिटल होंगे। नए कानूनों में सात साल या इससे अधिक की सजा वाले अपराधों में फरेंसिक जांच अनिवार्य होगी। न्यायपालिका में भी 21 हजार सब-ऑर्डिनेट न्यायपालिका की ट्रेनिंग हो चुकी है।गृह मंत्री ने कहा कि देश के अलग-अलग राज्यों में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं को देखते हुए तीनों कानून देश की 8वीं अनुसूची की सभी भाषाओं में उपलब्ध होंगे और केस भी उन्हीं भाषाओं में चलेंगे। इसमें केवल हिंदी या इंग्लिश भाषा नहीं रखी गई है। नए कानूनों में आज के समय के हिसाब से धाराएं जोड़ी गई हैं। जिनसे लोगों को परेशानी थी। उन धाराओं को हटा दिया गया है। 20 हजार पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को ट्रेंड किया गया है।यह तीनों नए कानून सबसे आधुनिक न्याय प्रणाली का सृजन करेंगे। फिर ढाई से तीन महीने तक इन पर गहन चर्चा के बाद कुछ राजनीतिक सुझावों को छोड़ते हुए 93 बदलावों के साथ इन बिलों को फिर से कैबिनेट ने पारित किया।

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