यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या मोदी सरकार का मिडिल क्लास पर भरोसा उठ गया है या नहीं! मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में अब मिडिल क्लास पर टैक्स का बोझ अधिक पड़ सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल में देश को अमृत काल की ओर ले जाने का वादा किया था, लेकिन पिछले हफ्ते मोदी सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में किए गए इस वादे को किनारे करते हुए मिडिल क्लास पर टैक्स का बोझ बढ़ा दिया है। मोदी सरकार ने शेयर बाजार में निवेश, प्रॉपर्टी की बिक्री पर टैक्स नियमों में बदलाव किए हैं, जिससे मिडिल क्लास के हाथों में कम पैसे बचेंगे। वहीं अमीरों पर बोझ लग्जरी सामानों पर ज्यादा टैक्स लगाकर किया गया है लेकिन वे दुबई और सिंगापुर से खरीदारी करके इसे आसानी से टाल सकते हैं। मोदी सरकार का कहना है कि इन बदलावों का मकसद टैक्स सिस्टम को आसान बनाना है, लेकिन मिडिल क्लास को लग रहा है कि उन पर टैक्स का बोझ और बढ़ा दिया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट भाषण में अमृत काल शब्द का इस्तेमाल तक नहीं किया, जबकि पिछले दो सालों में उन्होंने अपने भाषणों में कई बार इस शब्द का इस्तेमाल किया था। शायद यह सही ही था क्योंकि अब मोदी सरकार को संसद में पहले जैसा बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में मोदी का वादा अब सपना नहीं, बल्कि एक चुनौती बन गया है। समृद्धि का स्वर्णिम दौर तो अपने आप आ जाएगा, लेकिन फिलहाल मिडिल क्लास, जो प्रधानमंत्री के सबसे बड़े समर्थकों में से एक है, उन्हें ज्यादा टैक्स चुकाने के लिए तैयार रहना होगा।
कोरोना महामारी के बाद से शेयर बाजार में निवेश एक राष्ट्रीय जुनून बन गया है। अब इस पर ज्यादा सख्ती से टैक्स लगाया जाएगा। यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन अब सरकार लंबे समय के निवेश पर भी मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में लेगी, जिसमें बायबैक से होने वाला मुनाफा भी शामिल है। इसके साथ ही, प्रॉपर्टी की बिक्री पर महंगाई के मुकाबले इंडेक्सेशन बेनिफिट को भी खत्म कर दिया गया है, जिससे लोगों को कम टैक्सेबल प्रॉफिट दिखाने का मौका मिलता था। हालांकि, कैपिटल गेन टैक्स को 20% से घटाकर 12.5% कर दिया गया है। लेकिन यह राहत ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। ज्यादातर बड़े शहरों में, जो लोग एक या दो दशक पहले खरीदी गई प्रॉपर्टी को बेचने की योजना बना रहे हैं, उन्हें टैक्स चुकाने के बाद उम्मीद से कम पैसे मिलेंगे। उनके लिए कम से कम इतना तो किया जा सकता था कि 2019 से पहले होने वाले कैपिटल गेन को टैक्स फ्री कर दिया जाता।
1988 में ब्रिटेन ने भी ऐसा ही तरीका अपनाया था। उनका मानना था कि काम और संपत्ति से होने वाली आय पर समान रूप से टैक्स लगना चाहिए। सरकार का कहना है कि उसका मकसद टैक्स सिस्टम को आसान बनाना है, न कि ज्यादा राजस्व कमाना। लेकिन संपत्ति रखने वाले लोग इन बदलावों को इसी नजरिए से देख रहे हैं। तथाकथित ‘ऑक्टोपस क्लास’ यानी लगभग 10 लाख सुपर-एलीट खर्च करने वालों के लिए 10 लाख रुपये से ज्यादा कीमत वाले हैंडबैग, घड़ियों और अन्य लग्जरी सामानों पर विदहोल्डिंग टैक्स लगेगा। यह 18% से 28% के माल और सेवा कर (जीएसटी) के अलावा होगा। हालांकि, अमीर लोग अपनी जरूरत का सामान खरीदने के लिए दुबई और सिंगापुर जा सकते हैं।
इस साल के टैक्स कोड में हुए बदलावों से मिडिल क्लास काफी परेशान है। कुल कर राजस्व में व्यक्तिगत कर का योगदान पहले ही 30% है, जो कंपनियों द्वारा दिए गए 26% से ज्यादा है। भारत में 10 में से 8 काम करने वालों को नियमित वेतन नहीं मिलता है। जो लोग नौकरी करते हैं, उनमें से 10% से भी कम लोग 50,000 रुपये प्रति माह से ज्यादा कमाते हैं। मोदी उन लोगों से और कितना पैसा वसूलना चाहते हैं, जो अमृत काल पर विश्वास करते हुए महंगाई के बीच गुजारा करने के लिए कर्ज में डूबते जा रहे हैं। क्रेडिट कार्ड और अन्य असुरक्षित कर्ज सहित खुदरा कर्ज अब उद्योगों को वर्किंग कैपिटल या विस्तार के लिए दिए जाने वाले बैंक कर्ज से 1.5 गुना ज्यादा है। इस बीच, कंपनियों के लिए कम कर व्यवस्था नए निवेश को प्रोत्साहित नहीं कर रही है। 2019 में दी गई एक बड़ी छूट, जिसकी कीमत सरकारी खजाने को 100 अरब डॉलर पड़ी, ने कॉर्पोरेट मुनाफे को तो बढ़ाया है, लेकिन इससे रोजगार सृजन में कोई खास सुधार नहीं हुआ है।
2020 में, केंद्र सरकार ने निर्माताओं के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों के रूप में और 24 अरब डॉलर की पेशकश की थी। लेकिन इससे अब तक केवल 8,50,000 नौकरियां ही पैदा हुई हैं। जबकि भारत को हर साल 80 लाख नौकरियों की जरूरत है। हालिया केंद्रीय बजट में, सरकार ने नौकरियों और इंटर्नशिप के लिए 24 अरब डॉलर की पेशकश की, जिसमें आखिरकार उस रोजगार संकट को स्वीकार किया गया, जिसने मोदी के वोटों में सेंध लगाई। 2014 और 2019 में, गरीबों की तुलना में अमीर और मध्यम वर्ग के मतदाताओं के एक बड़े हिस्से ने मोदी का समर्थन किया था। मोदी के अमीर समर्थकों को उस समय कोई दिक्कत नहीं हुई, जब उन्होंने 2016 में देश की 86% नकदी पर रातोंरात प्रतिबंध लगा दिया था। कुछ महीनों बाद जीएसटी जिस तरीके से लागू किया उससे छोटी कंपनियां उत्पादन नेटवर्क से बाहर हो गईं।
2020 में कोरोना महामारी के दौरान लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं। इस आपदा में भी मिडिल क्लास पर तगड़ी मार पड़ी। इन सबके बावजूद मिडिल क्लास ने मोदी के पक्ष में वोट किया। कुछ महीने पहले चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री विपक्ष पर मुस्लिमों के बीच पुनर्वितरण के लिए निजी संपत्ति को छीनने की साजिश रचने का आरोप लगा रहे थे। अब वह क्या कर रहे हैं और उनके फैन क्लब को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है – चाहे अमृत काल आए या न आए।