हाल ही में विपक्ष ने 2004 का चुनाव भी याद दिला दिया है! एग्जिट पोल में बीजेपी और उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए को बड़ी बढ़त का इशारा मिलते ही विपक्ष लाल हो गया। कांग्रेस, सपा, आरजेडी से लेकर कई विपक्षी दलों ने कहा कि यह दरअसल बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के इशारे पर पेश किया गया अनुमान है। उनका दावा है कि असली रिजल्ट एग्जिट पोल के विपरीत आएगा और विपक्ष 295 सीटें जीतकर सरकार बनाएगा। वहीं, ऐसे बीजेपी और मोदी विरोधी भी भरे पड़े हैं जो बीजेपी की तरफ से ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा आने के बाद से ही याद दिला रहे हैं कि 2004 में भी कुछ हुआ था। वो बता रहे हैं कि कैसे 2004 में भी सत्ता पक्ष को लेकर बड़े रोजी पिक्चर बनाए जा रहे थे, सारे एग्जिट पोल भी सरकार की वापसी की घोषणा कर रहे थे, लेकिन असली परिणाम आया तो सारे अनुमान और दावे हवा-हवाई हो गए। तो क्या, सच में इस बार भी 2004 जैसे परिणाम आ सकते हैं? क्या 2004 में अटल सरकार की तरह ही इस बार भी मोदी सरकार की विदाई हो सकती है? सबसे बड़ा सवाल कि क्या सच में 2004 में कांग्रेस ने बीजेपी को बुरी तरह परास्त किया था? आइए इन सवालों के जवाब ढूंढते हुए यह जानने की कोशिश करते हैं कि इस बार का माहौल भी 2004 जैसा ही है! 1999 में बीजेपी ने 182 सीटें जीतकर केंद्र में सरकार बनाई थी। दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 1998 में ही बन गई थी, लेकिन तमिलनाडु के सहयोगी दल एआईएडीएमके के हाथ खींचने से मात्र एक वोट से सिर्फ 13 महीनों में ही सरकार ने विश्वास मत खो दिया था। तब विपक्षी दल मिलकर सरकार नहीं बना पाए थे, इसलिए चुनाव हुआ था। 1999 के उस चुनाव में बीजेपी 182 सीटें लेकर दोबारा सरकार में आ गई। पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। उससे पहले वो दो बार प्रधानमंत्री बन चुके थे, लेकिन पहली बार तो सिर्फ 13 दिन में सरकार गिर गई थी। 1999 में दूसरी बार बनी सरकार का हश्र ऊपर बताया जा चुका है।
तीसरी बार अटल बिहारी की सरकार ने पांच साल पूरा किया तो उसके कई योजनाओं की बड़ी तारीफ हुई। अटल सरकार ने स्वर्णिम चतुर्भज योजना, नई टेलिकॉम पॉलिसी, सर्व शिक्षा अभियान, पोखरण में परमाणु परीक्षण, चंद्रयान-1 मिशन, केंद्रीय मंत्रालय में उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए नए विभाग का गठन जैसे कई क्रांतिकारी काम किए। अटल सरकार ने विनिवेश मंत्रालय बनाकर निजीकरण को बढ़ावा दिया और घाटे में जा रही कई सरकारी कंपनियों से किनारा कर लिया। 2004 में बीजेपी ने ‘इंडिया शाइनिंग’ के नारे के साथ मतदाताओं से अटल सरकार की वापसी का मौका देने की अपील की। ऐसा लग रहा था मानो जनता अटल सरकार की उपलब्धियों से बहुत खुश है और उसे एक और मौका देने का मन बना चुकी है। एग्जिट पोल्स में भी अटल सरकार की वापसी बताई गई, लेकिन जब मतगणना शुरू हुई तो रिजल्ट पलट गए।
बीजेपी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में 364 कैंडिडेट उतारे थे। पार्टी को 37.91% की स्ट्राइक रेट से 138 सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं, कांग्रेस पार्टी की स्ट्राइक रेट 34.77% रही और उसके कुल 417 उम्मीदवारों में 145 चुनकर संसद पहुंचे। यानी, बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस को सिर्फ सात सीटें ज्यादा आईं। जहां तक वोटों की बात है तो बीजेपी को कुल 8 करोड़, 63 लाख, 71 हजार, 561 यानी कुल 22.61% वोट मिले। वहीं, कांग्रेस को 10 करोड़, 34 लाख, 8 हजार, 949 यानी 26.53% वोट मिले थे। इस लिहाज से देखें तो बीजेपी को प्रति कैंडिडेट औसतन 2,37,284 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा 247,983 रहा था। इस चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश से बहुत बड़ा झटका मिला था। पांच साल पहले जिस उत्तर प्रदेश ने बीजेपी को 29 सांसद दिए थे, वहां वो 10 सीटों पर सिमट गई थी। एक प्रदेश में ही 19 सीटों का घाटा। कांग्रेस ने तब यूपी में नौ सीटें हासिल कर ली थी। कांग्रेस को 2004 के चुनाव में सबसे अधिक आंध्र प्रदेश से 29 सीटें मिल गई थीं। वहीं बीजेपी को सबसे ज्यादा 25 सीटें मध्य प्रदेश से मिली थीं।
मजे की बात है कि इस चुनाव में भी कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले ज्यादा वोट मिले थे। तब कांग्रेस को 10,31,20,330 यानी 28.30% जबकि बीजेपी को 8,65,62,209 यानी 23.75% वोट मिले थे। बीजेपी को 1999 में 53.69% के स्ट्राइक रेट से 182 सीटों पर जीत मिली थीं। उसने कुल 339 कैंडिडेट चुनाव मैदान में उतारे थे। उस चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 29-29 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस को यूपी में क्रमशः 10 और 11 सीटें मिली थीं। उसे सबसे ज्यादा 18 सीटें कर्नाटक से मिली थीं जबकि आंध्र प्रदेश से उसे सिर्फ 5 सीटें मिली थीं। साफ है कि 2004 के चुनाव में जिस तरह उत्तर प्रदेश ने बीजेपी को तगड़ा झटका दिया, उसके उलट आंध्र प्रदेश ने कांग्रेस को बड़ी बढ़त दिला दी।