नाराज किसानों ने बीजेपी से कैसे निकाली नाराजगी?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर नाराज किसानों ने बीजेपी से नाराजगी कैसे निकाली! लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बीजेपी के लिए काफी चौंकाने वाले रहे हैं। चुनाव के नतीजों से बीजेपी को सबसे बड़ा झटका लगा है। बीजेपी ‘अबकी बार 400 पार’ का स्लोगन लेकर चुनाव प्रचार कर रही थी। लेकिन जनता ने बीजेपी को 240 सीटों पर ही रोक दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले 303 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार बीजेपी को 63 सीटों का बड़ा नुकसान हुआ है। हालांकि बीजेपी एनडीए के अन्य घटक दलों के सहयोग से सरकार बनाने जा रही है, लेकिन ‘खिचड़ी’ सरकार में बीजेपी की ताकत और फैसले लेने की क्षमता पहले की तरह नहीं होगी। बीजेपी को भारी सीटों के नुकसान के पीछे के कारणों को लेकर पार्टी ने मंथन शुरू कर दिया है। राजनीतिक गलियारों में भी बीजेपी की कमजोर हुई स्थिति को लेकर चर्चा तेज है। बीजेपी को हुए भारी नुकसान के पीछे किसानों की मोदी सरकार से नाराजगी को सबसे बड़ी वजह के तौर पर देखा जा रहा है। कृषि कानूनों को लेकर बीजेपी के खिलाफ देश में बड़ा आंदोलन हुआ था। कई दिनों तक दिल्ली में किसान धरने पर बैठ गए थे। हालांकि मोदी सरकार ने किसानों के गुस्से को देखते हुए कृषि कानून वापस ले लिए थे। लेकिन किसानों का गुस्सा शांत कराने में मोदी सरकार काफी हद तक असफल रही। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बीजेपी का वोट शेयर 2019 में 39.5% से गिरकर अब 35% हो गया है। इसके अलावा किसानों के विरोध के चलते बीजेपी को 40 सीटों के नुकसान का अनुमान भी लगाया जा रहा है।

2019 में बीजेपी ने ग्रामीण वोट का 39.5% हासिल किया। इस बार इसने 35% हासिल किया। उन्हीं पांच वर्षों में इसका शहरी वोट शेयर 33.6% से बढ़कर 40.1% हो गया। लेकिन जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, ‘भारत अपने गांवों में बसता है।’ शहरी क्षेत्रों में 6.5 प्रतिशत अंकों की यह बढ़त ग्रामीण क्षेत्रों में 4.5 प्रतिशत अंकों के नुकसान की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस 4.5 प्रतिशत अंकों के अंतर ने बीजेपी को सरकार बनाने के आंकड़े से दूर कर दिया और बीजेपी आप एनडीए के सहयोगियों के दम पर बैसाखी वाली सरकार बनाने जा रही है।

अमृतसर लोकसभा सीट इस बात का अच्छा उदाहरण है। इस सीट में शहर और गांव दोनों शामिल हैं। बीजेपी ने विकास के वादों के जरिए शहर के लोगों को रिझाने की कोशिश की। नतीजों ने दिखाया कि ये रणनीति कुछ हद तक कामयाब रही। बीजेपी उम्मीदवार तरनजीत सिंह संधू शहर वाले अमृतसर उत्तर क्षेत्र में सबसे आगे रहे। उन्होंने ये कारनामा पहली बार चुनाव लड़ने के बावजूद किया, वो भी उस पार्टी की तरफ से जिसे गांवों में घुसने तक नहीं दिया गया। अमृतसर उत्तर में डाले गए 1 लाख 10 हजार से ज्यादा वोटों में से संधू को 47 हजार से ज्यादा वोट मिले। ये कांग्रेस के गुरजीत सिंह औजला से बहुत ज्यादा था। अमृतसर मध्य में भी, जो एक शहरी क्षेत्र है, संधू को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले। लेकिन अमृतसर पूर्व में, जहां ज्यादातर लोग निम्न-मध्यम वर्ग के हैं, संधू कांग्रेस के उम्मीदवार को थोड़े से वोटों से ही हरा पाए। पर फिर भी, संधू पूरी सीट हार गए क्योंकि ग्रामीण इलाकों ने बीजेपी को नकार दिया। वो कुल मिलाकर तीसरे नंबर पर रहे। बीजेपी ग्रामीण क्षेत्रों में चौथे स्थान पर रही। उदाहरण के लिए, मजीठा क्षेत्र में संधू को सिर्फ 8 हजार वोट मिले, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार को 16 हजार से ज्यादा वोट मिले। यहां शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले।

बीजेपी की मजबूत उपस्थिति खासतौर पर शहरी केंद्रों में स्पष्ट थी। यह दिल्ली में स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां पार्टी ने एक बार फिर बड़े अंतर से सभी 7 सीटें हासिल कीं। दूसरी ओर विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन ग्रामीण क्षेत्रों में दबदबा बनाते दिखा। लेकिन किसानों का गुस्सा शांत कराने में मोदी सरकार काफी हद तक असफल रही। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बीजेपी का वोट शेयर 2019 में 39.5% से गिरकर अब 35% हो गया है। इसके अलावा किसानों के विरोध के चलते बीजेपी को 40 सीटों के नुकसान का अनुमान भी लगाया जा रहा है।गठबंधन के अहम दल कांग्रेस ने ग्रामीण क्षेत्रों में अपने वोट शेयर को 2019 में 17.1% से थोड़ा बढ़ाकर 17.6% देखा। वहीं समाजवादी पार्टी को ग्रामीण क्षेत्रों से 62.7% समर्थन मिला, जिसने मोदी और योगी के नेतृत्व के ‘डबल इंजन’ प्रभाव के बावजूद उत्तर प्रदेश में डंका बजा दिया।