Monday, December 23, 2024
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बिहार की गोपालगंज सीट पर कैसे आई बीजेपी?

हाल ही में 7 सीटों पर हुए उपचुनावों में बिहार की गोपालगंज सीट पर बीजेपी आ गई है! गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव में मिली बीजेपी की जीत पार्टी के लिए संजीवनी साबित होगी। यह कामयाबी इसलिए खास है क्योंकि बीजेपी महागठबंधन में शामिल सात दलों के खिलाफ खड़ी थी। यहां सबसे बड़ी बात तो यह साबित हो गई कि बगैर जेडीयू के भी बीजेपी की अपनी स्थिति बरकरार है। मोकामा की तरह गोपालगंज में बीजेपी का आधार वोट यानी सवर्ण मतदाता नहीं दरका। इसके साथ ही जीत में सहानुभूति की लहर का बड़ा हाथ है। गोपालगंज में बीजेपी विधायक सुभाष सिंह के निधन के बाद उपचुनाव हुए। जिसमें बीजेपी ने सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को उम्मीदवार बनाया। उन्होंने आरजेडी के मोहन गुप्ता को करीबी मुकाबले में शिकस्त दी।गोपालगंज में बीजेपी की जीत की कई वजहें रहीं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस बार पार्टी का सवर्ण वोटर नहीं खिसका। राजपूत के लगभग 50 हजार, ब्राह्मण के 35 हजार और 10 हजार भूमिहार के जो वोट बैंक थे बीजेपी ने उसे इधर-उधर जाने से बचा लिया। इसके साथ ही जीत में सहानुभूति की लहर का बड़ा हाथ है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के समय गोपालगंज सीट पर सुभाष सिंह की उम्मीदवारी का विरोध हो रहा था। लेकिन बीजेपी ने विरोध को किसी तरह से जीता और तब सुभाष सिंह की उम्मीदवारी पर मुहर लगी थी। उस समय भी बीजेपी को जीत मिली थी और एक बार फिर पार्टी का इस सीट पर कब्जा बरकरार रहा।

इस जीत में बीजेपी का दूसरा बड़ा आधार वोट जो वैश्यों का है, वहां भी पार्टी ने कुछ हद तक सेंधमारी करने में सफलता हासिल की। खासकर आरजेडी कैंडिडेट मोहन गुप्ता को शराब माफिया के रूप में प्रोजेक्ट करने का असर नजर आया। सूत्र बताते हैं कि वैश्य समुदाय का एक हिस्सा बीजेपी उम्मीदवार के सपोर्ट में आ गया। इस फैक्टर ने अहम रोल निभाया।यह सच है कि बीजेपी को जितना लग रहा था कि ओवैसी की पार्टी AIMIM के उम्मीदवार अब्दुस सलाम मुस्लिम वोट हासिल करेंगे वह नहीं हुआ। ऐसा इसलिए भी कि 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के पांच उम्मीदवार चुनाव जीते जरूर थे लेकिन उनमें से चार आरजेडी के साथ जा मिले। इस लिहाज से इस बार मुस्लिमों का अधिकांश वोट आरजेडी को मिला। लेकिन बीजेपी के जीत का अंतर जो लगभग 2 हजार के आसपास का है, उससे ज्यादा वोट तो जरूर एआईएमआईएम को मिला। ऐसे में अगर AIMIM मैदान में नहीं होती तो निश्चित रूप से यह वोट आरजेडी को मिलता। ऐसे में रिजल्ट कुछ अलग हो सकता था।

जिस तरह से साधु यादव ने तेजस्वी यादव को बाहरी बताकर अपना वोट बैंक 2020 के विधानसभा में मजबूत किया, वो इस बार सफल नहीं हो सका।खासकर आरजेडी कैंडिडेट मोहन गुप्ता को शराब माफिया के रूप में प्रोजेक्ट करने का असर नजर आया। सूत्र बताते हैं कि वैश्य समुदाय का एक हिस्सा बीजेपी उम्मीदवार के सपोर्ट में आ गया। इस फैक्टर ने अहम रोल निभाया।यह सच है कि बीजेपी को जितना लग रहा था कि ओवैसी की पार्टी AIMIM के उम्मीदवार अब्दुस सलाम मुस्लिम वोट हासिल करेंगे वह नहीं हुआ। ऐसा इसलिए भी कि 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के पांच उम्मीदवार चुनाव जीते जरूर थे लेकिन उनमें से चार आरजेडी के साथ जा मिले। इस लिहाज से इस बार मुस्लिमों का अधिकांश वोट आरजेडी को मिला। लेकिन बीजेपी के जीत का अंतर जो लगभग 2 हजार के आसपास का है, उससे ज्यादा वोट तो जरूर एआईएमआईएम को मिला। ऐसे में अगर AIMIM मैदान में नहीं होती तो निश्चित रूप से यह वोट आरजेडी को मिलता। ऐसे में रिजल्ट कुछ अलग हो सकता था। पिछले चुनाव में साधु यादव ने यादव वोटों में सेंधमारी की थी, हालांकि, उपचुनाव में ऐसा नहीं हो सका। तेजस्वी यादव ने अपनी नई भूमिका जिसमें उन्हें बार-बार सीएम के रूप में पेश किया जा रहा है, उसका फायदा गोपालगंज में मिला। यही वजह थी कि इस बार महागंठबंधन का वोट नहीं बंटा।

हालांकि इस बार जेडीयू का साथ आना आरजेडी के लिए भले ही खास फायदेमंद नहीं नजर आया।खासकर आरजेडी कैंडिडेट मोहन गुप्ता को शराब माफिया के रूप में प्रोजेक्ट करने का असर नजर आया। सूत्र बताते हैं कि वैश्य समुदाय का एक हिस्सा बीजेपी उम्मीदवार के सपोर्ट में आ गया। इस फैक्टर ने अहम रोल निभाया।यह सच है कि बीजेपी को जितना लग रहा था कि ओवैसी की पार्टी AIMIM के उम्मीदवार अब्दुस सलाम मुस्लिम वोट हासिल करेंगे वह नहीं हुआ। ऐसा इसलिए भी कि 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के पांच उम्मीदवार चुनाव जीते जरूर थे लेकिन उनमें से चार आरजेडी के साथ जा मिले। इस लिहाज से इस बार मुस्लिमों का अधिकांश वोट आरजेडी को मिला। लेकिन बीजेपी के जीत का अंतर जो लगभग 2 हजार के आसपास का है, उससे ज्यादा वोट तो जरूर एआईएमआईएम को मिला। ऐसे में अगर AIMIM मैदान में नहीं होती तो निश्चित रूप से यह वोट आरजेडी को मिलता। ऐसे में रिजल्ट कुछ अलग हो सकता था। हालांकि, इस उपचुनाव में तेजस्वी ने बीजेपी को हार के बहुत करीब पहुंचाकर बीजेपी नेताओं के पसीने तो छुड़ा दिए।

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