आखिर कैसे कम हुआ मुइज्जू का चीनी प्रेम?

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आज हम आपको बताएंगे कि मुइज्जू का चीनी प्रेम कैसे काम हुआ है! मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर बीती 8 मई को नई दिल्ली की यात्रा पर पहुंचे थे। चीन के गुलाम मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद ये मालदीव की सरकार में किसी बड़े नेता की पहली भारत यात्रा थी। मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में इंडिया आउट की मुहिम चलाने वाले मोहम्मद मुइज्जू ने पद संभालने के बाद से ही जहर उगलना शुरू कर दिया था। इसके बाद भी जब मालदीव के विदेश मंत्री ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कर्ज के रोलओवर के लिए अनुरोध किया तो भारत ने इसे स्वीकार कर लिया। इसके तहत मालदीव को 5 करोड़ डॉलर के कर्ज भुगतान से एक साल के लिए राहत मिल गई। मालदीव के विदेश मंत्री ने इस कदम की जमकर तारीफ की थी और इसे भारत की सच्ची सद्भावना बताते हुए धन्यवाद दिया था। ऐसे में सवाल है कि चीन परस्त मालदीव आखिर भारत के पास वापस क्यों आ रहा है। ये पहली बार नहीं है जब भारत ने मालदीव की तरफ बड़े भाई की तरह हाथ बढ़ाया है। कुछ हफ़्ते पहले, नई दिल्ली ने चावल, गेहूं का आटा, चीनी, आलू और अंडे सहित आवश्यक वस्तुओं के निर्यात कोटा में वृद्धि की थी। इसके पहले जब मुइज्जू ने मालदीव को उपहार में दिए गए हेलीकॉप्टरों और डोर्नियर विमान का संचालन और रखरखाव करने वाले सैन्य कर्मियों के वापस बुलाने की मांग की तो भी भारत ने सहयोगात्मक रवैया अपनाया था। 10 मई को जब मूसा जमीर नई दिल्ली से मालदीव के लिए रवाना हुए, उसी दिन मालदीव में रह रहे 76 भारतीय सैनिकों का आखिरी बैच वापस देश लौटा था। उनकी जगह एचएएल के नागरिक पायलटों और तकनीशियनों ने ले ली है।

भारत ने मालदीव के साथ हमेशा से दोस्ती वाला रवैया अपनाए रखा है। माले में सरकार चाहे कोई भी रही हो नई दिल्ली ने कभी भेदभाव नहीं किया। लेकिन मुइज्जू ने आते ही भारत के जहर उगलना शुरू कर दिया। मालदीव की शह के बाद उनके तीन मंत्रियों ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणियां की, जिसके बाद भारत में मालदीव के बायकॉट को लेकर सोशल मीडिया पर लहर सी उठ गई। मालदीव में भी जनता ने विरोध किया और विरोध बढ़ता देख मुइज्जू को अपने मंत्रियों की छुट्टी करनी पड़ी। नई दिल्ली दौरे के दौरान मूसा जमीर ने एएनआई के साथ इंटरव्यू में अतीत के लिए ‘माफी’ मांगी और दोहराया कि मंत्रियों के विचार व्यक्तिगत थे। यह मालदीव की तरफ से रिश्तों को सुधारने की कोशिश थी।

इसी साल जनवरी में जब मुइज्जू चीन की यात्रा की तो उन्होंने भारत के खिलाफ जहर उगला। उन्होंने कहा ‘मालदीव किसी का बैकयार्ड नहीं है’ और ‘किसी को भी हमें धमकाने का लाइसेंस नहीं’ है। उन्होंने तुर्की की आधिकारिक यात्रा के बारे में भी बात की और ये भी बताया कि उनका देश किसी एक देश पर अपनी निर्भरता को खत्म करेगा। हालांकि, मुइज्जू ने भारत का नाम नहीं लिया था, लेकिन ये साफ था कि वे नई दिल्ली के बारे में बात कर रहे थे। मालदीव की योजना पश्चिम एशिया से माल मंगाने की योजना पर तब पानी फिर गया जब लाल सागर पर हूती चरमपंथियों ने हमले शुरू कर दिए। अधिकांश जहाज अफ्रीका को घूमकर आने लगे और कर्ज में डूबे मालदीव के लिए महंगी कीमत पर सामान खरीदना मुश्किल हो गया। इस दौरान भारत ने आवश्यक वस्तुओं का कोटा बढ़ाकर मालदीव को इस संकट से राहत दी।

मालदीव ने चीन से 1.5 अरब डॉलर का कर्ज ले रखा है, जो उसके कुल कर्ज का अकेले 20 फीसदी है। मालदीव पिछले काफी समय से चीन के सामने कर्ज के पुनर्गठन की गुहार लगा रहा था। मुइज्जू ने दावा किया था कि बीजिंग ने उन्हें आश्वासन दिया है लेकिन अब चीन ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। मालदीव में चीनी राजदूत वांग लिक्सिन ने हाल ही में साफ किया कि उनके देश का ऐसा कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि कर्ज के पुनर्गठन से मालदीव को आगे ऋण में मुश्किल आ सकती है। ये वही समय है जब भारत ने मालदीव को कर्ज चुकाने के लिए एक साल का रोलओवर दे दिया। इन घटनाओं ने मालदीव को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उसे चीन से नजदीकी भले रखनी चाहिए लेकिन भारत से रिश्ते बिगाड़ने की जरूरत नहीं है। मुइज्जू सरकार को समझ आ गया है कि भारत ही वो पड़ोसी देश है जिसने हमेशा मुश्किल समय में माले का साथ दिया है।