भारत और पाकिस्तान को अलग हुए कई साल बीत चुके हैं! भारत से अलग होकर बना पाकिस्तान आज अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। मोहम्मद अली जिन्ना की जिद पर धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान के लिए यही धर्म ही भस्मासुर बन गया है। जिन्ना ने कराची में पाकिस्तान की संविधान सभा में दिए अपने पहले भाषण में कहा था कि देश में जाति और धर्म के भेदभाव के बिना सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त होगा। पाकिस्तान के कायद-ए-आजम कहे जाने वाले जिन्ना का यह सपना का आज मिट्टी में मिल चुका है। पाकिस्तान हिंदुओं, ईसाइयों और अहमदिया समुदाय के मुस्लिमों के लिए नरक बन गया है। हालत यह है कि पाकिस्तान में सेना का राज चल रहा है और लोकतंत्र को गला अक्सर घोंट जाता रहता है। पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था डिफाल्ट होने की कगार पर है और उसे कर्ज के लिए भीख मांगना पड़ रहा है। यही वजह है कि जिन्ना के इस पाकिस्तान को ‘एशिया का सिकमैन’ कहा जाने लगा है।
पाकिस्तान के जन्म के बाद ही साल 1950 में ही जिन्ना का सपना टूटना शुरू हो गया। पाकिस्तान में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। बड़ी संख्या में हिंदुओं की हत्या कर दी गई, उनके घर जला दिए गए। करीब 3 महीने तक चली हिंसा में हालात इतने खराब हो गए कि बड़ी तादाद में हिंदुओं को पाकिस्तान छोड़कर भारत भागना पड़ा। आजादी के 75 साल बाद भी पाकिस्तान के हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। यही सिलसिला यही नहीं थमा और आजादी के 75 साल पूरे होने पर भी पाकिस्तान में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के हालात बहुत खराब हैं। अक्सर हिंदू लड़कियों का अपहरण कर लिया जाता है और उन्हें जबरन मुस्लिम बनाकर शादी कर ली जाती है। यही नहीं हिंदुओं के मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। पाकिस्तान के हिंदू इस्लामाबाद में अपनी जमीन पर मंदिर बनाना चाह रहे हैं लेकिन उन्हें कट्टरपंथी बनाने नहीं दे रहे हैं।
हिंदुओं के बाद पाकिस्तान में अहमदियां मुस्लिमों को निशाना बनाया गया। लाहौर में साल 1953 में अहमदिया लोगों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी। इसमें बड़ी संख्या में अहमदिया लोगों की हत्या कर दी गई और उनके घरों को लूटकर उसमें आग लगा दी गई। इसके बाद लाहौर में 3 महीने तक मार्शल लॉ लगाया गया और तब जाकर हालात काबू में आए। वहां की सरकार को भी बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान और आधुनिक बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली जनता पर जमकर अत्याचार किया। पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की बड़ी तादाद में हत्या कर दी गई। जो सच बोलने का साहस करता था, उसको जेल में डाल दिया जाता था। इसके बाद जनता ने विद्रोह किया और भारत की मदद से बांग्लादेश का जन्म हुआ। हालांकि पाकिस्तान ने बांग्लादेश में जो धार्मिक जहर का बीज बोया था, उसका असर अभी भी बना हुआ है और अक्सर वहां हिंदुओं के ऊपर हमले होते रहते हैं।
मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने भाषण में अल्पसंख्यकों से कहा था, ‘आप स्वतंत्र हैं। पाकिस्तान में आप अपने मंदिरों में जाने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, आप अपनी मस्जिदों या अन्य पूजास्थलों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं। धर्म और जाति के आधार पर पाकिस्तान में कोई भेदभाव नहीं होगा। देश में सबको नागरिकता के समान अधिकार प्राप्त होंगे।’ पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई हिंसक घटनाओं ने जिन्ना के सपनों को कुचलकर रख दिया और पाकिस्तान एक कट्टरपंथी इस्लामिक देश बन गया। यही नहीं पाकिस्तान कभी एक सफल लोकतंत्र नहीं बन सका। आजादी के मात्र 11 साल बाद ही मेजर जनरल अयूब खान ने मार्शल लॉ लगा दिया। उसके बाद जनरल याह्या खान, साल 1977 में जनरल जिया उल हक और साल 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने लोकतंत्र को अपने फौजी जूते के नीचे रौंद कर रख दिया। वर्तमान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा भी पर्दे के पीछे से शासन चला रहे हैं। वह नवाज शरीफ और इमरान खान को सत्ता से बेदखल कर चुके हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी सेना के रहम पर चल रहे हैं।
यही नहीं जिस पाकिस्तान के विकास के लिए जिन्ना ने सपना देखा था, वह आज आतंकियों की फैक्ट्री के लिए जाना जाता है। लश्कर-ए-तैयबा, तालिबान, जैश-ए-मोहम्मद, अलकायदा जैसे संगठनों के आतंकी पाकिस्तान को अपना घर मानते हैं। ओसामा बिन लादेन को तो पाकिस्तानी जमीन पर अमेरिकी सेना ने घुसकर मारा था। पाकिस्तान में टीएलपी और टीटीपी जैसे कट्टरपंथी संगठन लगातार अपने आपको मजबूत कर रहे हैं। टीटीपी तो पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करना चाहता है। पाकिस्तान की आर्थिक हालत इतनी खराब है कि वह डिफाल्ट होने की कगार पर है। पाकिस्तानी सेना प्रमुख चीन से लेकर अमेरिका तक से कर्ज की भीख मांग रहे हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान अब ‘दक्षिण एशिया का सिकमैन’ बन चुका है। पाकिस्तान में कोई पैसा नहीं लगाना चाहता है और देश की जनता आसमान छूती महंगाई से जूझ रही है। पाकिस्तानी जनता जहां एक-एक रोटी के लिए परेशान है, वहीं पाकिस्तानी नेता आपस में सिर फुटव्वल कर रहे हैं और कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं। इन सबके बीच सेना प्रमुख जनरल बाजवा आलीशान जिंदगी जी रहे हैं और पूरी सरकार को अपने इशारे पर चला रहे हैं।