Friday, November 22, 2024
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मेल एक्टर्स की तुलना में फीमेल एक्टर्स को कितनी मिलती है सैलरी?

आज हम आपको मेल एक्टर्स की तुलना में फीमेल एक्टर्स को मिलने वाली सैलरी के बारे में बताएंगे! इंडियन क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड बीसीसीआई द्वारा हाल ही में महिला क्रिकेटर्स की फीस को लेकर किए गए ऐतिहासिक फैसले को खेल जगत ही नहीं, बल्कि हर फील्ड में सराहा जा रहा है। बॉलिवुड सिलेब्स ने भी इस फैसले पर काफी खुशी जताई। अनुष्का शर्मा, शाहरुख खान, तापसी पन्नू, अक्षय कुमार, प्रीति जिंटा, आयुष्मान खुराना, दीया मिर्जा समेत कई जानी-मानी हस्तियों ने अपने सोशल मीडिया पर इस फैसले को सेलिब्रेट किया। मगर ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि एंटरटेनमेंट जगत की जानी-मानी हीरोइनें खुद इस भेदभाव का शिकार हैं। आमतौर पर ये एक ठोस धारणा है कि छोटे जॉब्स और असंगठित क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम सैलरी मिलती होगी, मगर आप ये जानकर जरूर सोच में पड़ जाएंगे कि बॉलिवुड की टॉप ऐक्ट्रेस कही जाने वाली दीपिका पादुकोण को भी अपने स्टार पति रणवीर सिंह की तुलना में अनुमानित तौर पर आधी से कम सैलरी मिलती है।

बॉलिवुड के जेंडर पे गैप यानी मेल और फीमेल ऐक्टर्स को मिलने वाली फीस के बड़े फर्क को लेकर अक्सर बड़ी नायिकाओं का दर्द छलकता रहता है। अपने एक इंटरव्यू में तब्बू ने हीरो और हीरोइन के बीच के पैकेज के अंतर पर तंजिया लहजे में कहा था, ‘हीरोइन को ठंड नहीं लगती है, हीरोइन को गरमी भी नहीं लगती है और न ही उसे बारिश में भीगने से कोई परेशानी होती है। सारी परेशानियां हीरो को झेलनी पड़ती हैं और फिर उसे हीरो से कम पैसे दिए जाते हैं।’ वहीं करीना भी एक समिट में कह चुकी हैं कि वे अक्षय कुमार जितनी फीस पाने की ख्वाहिशमंद हैं।

फीस को लेकर किए जाने वाले भेदभाव पर दीपिका पादुकोण ने हमेशा से अपना स्टैंड रखा, तो देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा ने एक टीवी शो में हंसते-हंसते कह दिया था, ‘लोग अक्सर मेरे मेहनताने के बारे में पूछते रहते हैं, मगर मेल ऐक्टर्स के चेक पर जीरोज को लेकर कोई सवाल नहीं उठाता। बेबाक तापसी पन्नू ने तो बिंदास होकर कह डाला कि बॉलिवुड के हीरोज की फीस इतनी ज्यादा होती है कि इतने में एक फीमेल सेंट्रिक फिल्म तैयार की जा सकती है। बीते दौर की आशा पारेख, जीनत अमान, रेवती, मंदाकिनी सरीखी अभिनेत्रियां हों या फिर आज के दौर की अनुष्का शर्मा, कृति सेनन, कंगना रनौत, सोनम कपूर, कटरीना कैफ जैसी नायिकाएं, हर कोई फीस में होनी वाली असमानता पर अपनी आवाज बुलंद कर चुका है।

बधाई दो’, ‘शुभ मंगल सावधान’, ‘गुड बाय’ जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिकाओं द्वारा बॉलीवुड में छा जाने वाली नीना गुप्ता कहती हैं, ‘मैं महिला क्रिकेटर्स के लिए किए गए फैसले को लेकर बहुत खुश हूं, मगर जहां तक बात बॉलिवुड में होने वाले भेदभाव की है, तो मैं इस पोजीशन में नहीं हूं कि कुछ कह सकूं। मुझे तो पैसे ही अभी मिलने शुरू हुए हैं। लेकिन मुझे अच्छे पैसे मिल रहे हैं मेरी मेहनत के और धीरे धीरे रेट बढ़ रहे हैं। मेरी आगामी फिल्म ऊंचाई सफल हो गई तो और रेट बढ़ा दूंगी।’

वहीं अनुपम खेर का कहना है, ‘मेरे हिसाब से स्पोर्ट्स वाले लोग देश को रिप्रेजेंट करते हैं, जबकि फिल्म के लोग हर बार देश को नहीं रिप्रेजेंट करते। लेकिन मैं ये नहीं कह रहा कि उनको पैसा नहीं मिलना चाहिए, बिल्कुल मिलना चाहिए लेकिन मेरा पॉइंट ये है कि बदलाव में थोड़ा-सा वक्त लगता है। हमारी एक आदत है कि कहीं किसी को उपलब्धि हासिल होती है, तो हम तुरंत उस उपलब्धि को दरकिनार करके एक और तकलीफ गिनाने लगते हैं। अभी इस वक्त हमें क्रिकेट के इस बड़े फैसले का जश्न मनाना चाहिए, क्योंकि ये बड़ी उपलब्धि है।’जाने-माने ट्रेड विश्लेषज्ञ तरन आदर्श इस मुद्दे पर कहते हैं, ’80 के दशक से लेकर आज 2022 तक फीस के इस अंतर को देखता आ रहा हूं । ये तब भी था और आज भी है। हां, सन 2000 के बाद हालात थोड़े बदले हैं, मगर भुगतान में अंतर तो फिर भी बना हुआ है। आज की तारीख में दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट सरीखी हीरोइनें मोटी फीस पा रही हैं, इसके बावजूद भुगतान के मामले में वे अक्षय कुमार, सलमान खान, शाहरुख खान का मुकाबला नहीं कर सकतीं। बॉलिवुड हीरो प्रधान इंडस्ट्री है। यहां हीरो के लिए रोल लिखे जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि ऑडियंस भी उन्हीं को देखने आती है। फिल्म में पैसा लगाने वाले बड़े स्टूडियोज भी हीरो के नाम पर पैसा लगाते हैं। हीरोइन को प्रॉफिट शेयरिंग में रेयरली रखा जाता है। आप ही देखिए न, पोस्टर में चाहे दोनों बड़े स्टार हों, मगर हीरो का फेस हीरोइन से ज्याद बड़ा रखा जाता है।’

बाल कलाकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाली सारिका, जो बॉलिवुड की नायिका बनने के बाद अब चरित्र अभिनेत्री हैं, उनका कहना है, ‘आज अगर महिला क्रिकेटर वो फीस पा रही हैं, तो वे डिजर्व करती हैं। उन्होंने अपने बलबूते पर खुद को साबित किया है। मगर जहां तक बॉलिवुड की बात है, तो ये फर्क निरंतर बना हुआ है। क्या हमारे 100 करोड़ मांगने से हमें मिल जाएंगे? नहीं मिलेंगे। इस मुद्दे पर मिल बैठकर गंभीर चर्चा करनी होगी, क्योंकि इसको बदलने में बहुत वक्त लगेगा। अगर पश्चिम में लोग इस मुद्दे पर आज भी लड़ रहे हैं, तो आप सोचिए हम तो उनसे 20 साल पीछे हैं।’ ट्रेड एनालिस्ट तरन आदर्श भी सारिका की बात से सहमत नजर आते हैं। उनका कहना है, ‘डर्टी पिक्चर, मर्दानी, कहानी, इंग्लिश इंग्लिश, नो वन किल्ड जेसिका, मेरीकॉम, थप्पड़, छपाक जैसी महिला प्रधान फिल्मों के ट्रेंड के बाद ये बदलाव देखने मिला है कि हीरोइनों को महत्व मिलने लगा है। गंगूबाई में 100 करोड़ पार कर चुकीं आलिया ने बॉक्स ऑफिस पर ये भी साबित कर दिया कि हीरोइन अपने दम पर बॉक्स ऑफिस कलेक्शन ला सकती है। इसके बावजूद दिल्ली अभी दूर है। आज भी हमारी इंडस्ट्री कॉन्टेंट ड्रिवन नहीं बल्कि हीरो ड्रिवन है।’

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