संसद के मानसून सत्र को शुरू हुए कई दिन बीत चुके हैं! संसद का मानसूत्र विपक्ष के हंगामे के कारण अधिकतर बाधित रहा है। इस दौरान 24 सांसदों को सस्पेंड भी किया गया। वहीं, कई सांसद संसद भवन परिसर में धरने पर भी बैठे। सदन में बिना चर्चा के ही बिल पारित हुए। 1 अगस्त तक लोकसभा में सिर्फ 23 घंटे ही काम हुआ जबकि राज्य सभा में सिर्फ 13 घंटे। सोमवार को सरकार और विपक्ष पर सहमति बनने के बाद दो दिन भले ही सदन में महंगाई समेत अन्य विषयों पर चर्चा हुई हो लेकिन इसे पूरी तरह से उपयोगी नहीं कहा जा सकता है।
17वीं लोकसभा का पहला सत्र बहुत उपयोगी रहा। इसमें किसी भी तरह का कोई व्यवधान नहीं रहा। इसके बाद 2022 का बजट सत्र भी दूसरा सबसे अधिक प्रोडक्टिव सेशन रहा। इसमें व्यावधान के कारण सिर्फ 1.6% कार्यसमय ही खराब हुआ। 2021 का मानसून सत्र सबसे अधिक बाधा वाला रहा। इसमें सिर्फ सिर्फ 20% सेशन ही उपयोगी रहा।
कम हो रहा काम
उपयोगिता के हिसाब से लोकसभा में अब पहले की तुलना में कम काम हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो लोकसभा की प्रोडक्टिविटी घट रही है। लोकसभा की सामान्य बैठक 6 घंटे तक चलती है। यदि जरूरत हो तो इसको बढ़ाया जा सकता है।15वीं लोकसभा के दौरान जब कांग्रेस नीत यूपीए केंद्र की सत्ता में थी उस समय वित्त और विनियोग विधेयक को छोड़कर एक तिहाई से अधिक बिल ऐसे पारित हुए जिन पर 30 मिनट से भी कम चर्चा हुई। राज्य सभा में कुल बिल में से सिर्फ 38% पर ही दो घंटे से अधिक चर्चा हुई। 16वीं लोकसभा में पीएम मोदी की सरकार में लोकसभा में 32% बिल ऐसे थे जिन पर तीन घंटे से अधिक चर्चा हुई। यह आंकड़ा पिछली दो लोकसभा से अधिक है।
संसद के दोनों सदनों की बैठक में भी कमी देखने को मिल रही है। 1952 में पहली लोकसभा के बाद से लेकर अबतक दोनों सदनों की सबसे अधिक बैठक साल 1956 में हुई थी। साल 2020 में दोनों सदनों की महज 33 बैठक हुई। यह 1952 के बाद से सबसे कम थी। हालांकि, इसमें कोरोना महामारी भी एक बड़ी वजह थी।
संसद में अब पहले के मुकाबले औसतन कम बिल पारित हो रहे हैं। लोकसभा के हर कार्यकाल में पारित होने वाले बिलों की संख्या घटती जा रही है। पांच साल तक चली सभी लोकसभा में से, अब तक 8वीं लोकसभा में सबसे अधिक 355 बिल पारित हुए। सबसे कम 192 बिल 15वीं लोकसभा में पास हुए। 1975 में जिस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री और इमरजेंसी लागू की गई, 5वीं लोकसभा के कार्यकाल को बढ़ाया गया। यह 1971 से 1977 तक 5 साल से अधिक चली थी। सदन के कार्यकाल को एक साल में दो बार विस्तार किया गया था लेकिन यह कुल 5 साल 10 महीने और 6 दिन के बाद भंग की गई।उपयोगिता के हिसाब से लोकसभा में अब पहले की तुलना में कम काम हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो लोकसभा की प्रोडक्टिविटी घट रही है। लोकसभा की सामान्य बैठक 6 घंटे तक चलती है। यदि जरूरत हो तो इसको बढ़ाया जा सकता है।15वीं लोकसभा के दौरान जब कांग्रेस नीत यूपीए केंद्र की सत्ता में थी उस समय वित्त और विनियोग विधेयक को छोड़कर एक तिहाई से अधिक बिल ऐसे पारित हुए जिन पर 30 मिनट से भी कम चर्चा हुई। राज्य सभा में कुल बिल में से सिर्फ 38% पर ही दो घंटे से अधिक चर्चा हुई। 16वीं लोकसभा में पीएम मोदी की सरकार में लोकसभा में 32% बिल ऐसे थे जिन पर तीन घंटे से अधिक चर्चा हुई। यह आंकड़ा पिछली दो लोकसभा से अधिक है।
संसद के दोनों सदनों की बैठक में भी कमी देखने को मिल रही है। 1952 में पहली लोकसभा के बाद से लेकर अबतक दोनों सदनों की सबसे अधिक बैठक साल 1956 में हुई थी। साल 2020 में दोनों सदनों की महज 33 बैठक हुई। यह 1952 के बाद से सबसे कम थी। हालांकि, इसमें कोरोना महामारी भी एक बड़ी वजह थी।लोकसभा की सामान्य बैठक 6 घंटे तक चलती है। यदि जरूरत हो तो इसको बढ़ाया जा सकता है।15वीं लोकसभा के दौरान जब कांग्रेस नीत यूपीए केंद्र की सत्ता में थी उस समय वित्त और विनियोग विधेयक को छोड़कर एक तिहाई से अधिक बिल ऐसे पारित हुए जिन पर 30 मिनट से भी कम चर्चा हुई। राज्य सभा में कुल बिल में से सिर्फ 38% पर ही दो घंटे से अधिक चर्चा हुई। 16वीं लोकसभा में पीएम मोदी की सरकार में लोकसभा में 32% बिल ऐसे थे जिन पर तीन घंटे से अधिक चर्चा हुई। यह आंकड़ा पिछली दो लोकसभा से अधिक है।