Friday, November 22, 2024
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कैसे पाएं स्टारलिंक इंटरनेट का कनेक्शन? जानिए महत्वपूर्ण बात!

हाल ही के दिनों में आसमान में एक चमकती हुई तारों की ट्रेन देखने को मिली थी! आसमान में तारों की चलती हुई ट्रेन… आप कहेंगे क्या बेवकूफी है, ऐसा भी कभी होता है! लेकिन आसमान में इन दिनों कुछ ऐसे ही नजारे दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में कई जगहों पर आसमान में चमकते तारों की एक लंबी कतार देखी गई है। यह कुछ ऐसा था, जैसे आकाश में तारों की ट्रेन चल रही हो। सीरीज बल्बों की तरह चमकती यह कतार देखकर लोग अचरज में पड़ गए। कुछ लोगों को लगा कि यह कहीं एलियंस के विमान तो नहीं हैं। कई लोग इस चमकती लाइन को देखकर डर भी गए। लोगों को आसमान पर जो दिखा, वह न तो कोई यूएफओ है और ना ही तारे हैं। दरअसल, ये दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क के स्टारलिंक सैटेलाइट हैं। आइए जानते हैं कि स्टारलिंक आखिर क्या है और कैसे काम करता है।

आपके फोन में इंटरनेट कहां से आता है? आप कहेंगे कि आपने एक टेलीकॉम ऑपरेटर की सेवाएं ले रखी हैं। उस टेलीकॉम ऑपरेटर के जगह-जगह टावर लगे हुए हैं, जहां से आपको नेटवर्क मिलता है। जिस जगह टावर्स नहीं होते हैं या दूर होते हैं, वहां नेटवर्क कम आते हैं। जैसे- जंगल आदि। अब कैसा हो कि आपको टावर्स की बजाए सीधे सैटलाइट से इंटनेट मिले। अगर ऐसा हुआ, तो चाहे जंगल हो या बेसमेंट, कहीं भी इंटरनेट की स्पीड कम नहीं आएगी। स्टारलिंक ऐसी ही सेवा प्रदान करता है।

एलनमस्क की एक कंपनी है स्पेसएक्स। स्टारलिंग एक सैटेलाइट इंटरनेट ‘तारामंडल’ है, जिसे स्पेसएक्स ऑपरेट करती है। स्टारलिंक 40 देशों को सैटेलाइट इंटरनेट की सुविधा प्रदान करता है। स्पेसएक्स ने साल 2019 में स्टारलिंक सैटेलाइट लॉन्च करना शुरू किया था। कंपनी का 2023 के बाद सैटेलाइट पर्सनल कम्युनिकेशन सर्विस के साथ ग्लोबल कवरेज का लक्ष्य है।

इस सर्विस में कंपनी अपने ग्राहकों को एक किट देती है। इस किट में वाई-फाई राउटर, पावर सप्लाई, केबल और एक माउंटिंग ट्राइपॉड होता है। किट में मिला राउटर सीधे सैटेलाइट से जुड़ा होता है। इससे ही इंटरनेट सर्विस मिलती है। बताया जाता है कि स्टारलिंक का इंटरनेट फाइबर ऑप्टिक केबल की तुलना में 47% तेज होता है।

स्पेसएक्स अपने फॉल्कन-9 रॉकेट से हर दो महीने में अंतरिक्ष में स्टारलिंक सैटलाइट भेजता है। यह दो स्टेज में पुरा होता है। पहला स्टेज 9 महीने बाद पृथ्वी पर वापस लौट आता है। वहीं, दूसरा स्टेज सैटेलाइट्स को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करता है। ये सैटेलाइट धरती का चक्कर लगाते हैं। ये सैटेलाइट धरती से 550 से 570 किलोमीटर की ऊंचाई पर होते हैं। स्पेसएक्स एक बार में 46 से 60 स्टारलिंक सैटेलाइट्स लॉन्च करता है।

स्टारलिंक सैटेलाइट धरती से काफी अधिक ऊंचाई पर होते हैं। ऐसे में धरती के दूसरी तरफ से इन पर सूरज की रोशनी पड़ती है। इसके कारण ये रात में तारों की तरह चमकते दिखाई देते हैं। यह एक खूबसूरत नजारा होता है। ऐसा लगता है, जैसे आसमान में तारों की ट्रेन चल रही हो। ये सैटेलाइट जब पृथ्वी की निचली कक्षा में होते हैं, तो नंगी आंखों से दिख जाते हैं। ये सैटेलाइट जब अपनी तय कक्षा में पहुंच जाते हैं, तो ये दिखाई नहीं देते हैं।

स्टारलिंक करीब 40 देशों में अपनी बेहतरीन और तेज स्पीड वाली इंटरनेट सेवा देता है। एशिया में सिर्फ फिलिपींस ही स्टारलिंक की इंटरनेट सेवाएं लेता है। स्टारलिंक के 4 लाख सब्सक्राइबर्स हो चुके हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान एलन मस्क ने यूक्रेन को भी स्टारलिंक सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट सुविधा दी थी।

एलन मस्क की सबसे सफल कंपनियों में शामिल टेस्ला और स्टारलिंक दोनों ही अभी तक भारत में नहीं आई हैं। भारतीय लंबे समय से स्टारलिंक इंटरनेट का इंतजार कर रहे हैं। ट्विटर पर भी कई बार यूजर्स एलन मस्क से यह सवाल कर चुके हैं। एक यूजर ने एक सवाल पूछा था कि भारत में स्टारलिंक के इस्तेमाल की अनुमति मिलने पर क्या अपडेट है और यह सर्विस भारत में कब आएगी। इसके जवाब में मस्क ने लिखा था- ‘हम सरकार से अनुमति मिलने का इंतजार कर रहे हैं।’ स्टारलिंक ने यह भी दावा किया था कि उसे भारत में अपनी सेवाओं के लिए 5,000 से अधिक प्री-ऑर्डर्स मिले हैं। वहीं, भारत में जियो और एयरटेल भी स्टारलिंक जैसी सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवाओं पर काम कर रही हैं।सैटेलाइट इंटरनेट प्रोवाइडर ह्यूजेस कम्युनिकेशंस इंडिया ने सोमवार को इसरो द्वारा संचालित भारत की पहली सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस के कमर्शियल लॉन्च की घोषणा की है। कंपनी का लक्ष्य देशभर में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड सर्विस देना है। आईएएनएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी उन दूरदराज के क्षेत्रों में भी इंटरनेट सर्विस देगी, जहां जमीन पर नेटवर्क की पहुंच नहीं है।

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