Friday, September 20, 2024
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आखिर पाकिस्तान और ईरान में कैसे मारे गए थे रॉ के एजेंट?

एक समय ऐसा था जब पाकिस्तान और ईरान में रॉ के एजेंट मारे गए थे! हर देश अपने मतलब वाले दूसरे देशों की हलचल पर नजर रखता है। आखिर वहां हो क्या रहा है? क्या तैयारी की जा रही है? अगर वे दुश्मन मुल्क हैं या फिर प्रतिद्वंद्वी तब तो और भी ज्यादा नजर रखी जाती है। कहीं वे कुछ ऐसा तो नहीं प्लान कर रहे जो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा या राष्ट्रीय हितों के लिए खतरा है? इसीलिए देशों की अपनी खुफिया एजेंसी होती हैं जो गुप्त और संवेदनशील सूचनाएं जुटाती हैं। इसके कई तरीके होते हैं- ह्यूमन इंटेलिजेंस, सिग्नल्स इंटेलिजेंस, इमेजरी या सैटलाइट इंटेलिजेंस, ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस…। इनमें सबसे मुश्किल है ह्यूमन इंटेलिजेंस जिसके लिए विदेश में विश्वसनीय एसेट तैयार किए जाते हैं जो आपके लिए संवेदनशील सूचनाएं जुटाते हैं। लेकिन क्या किसी देश में शीर्ष पर बैठे लोग ही विदेश में अपने एजेंट्स की जानकारी, नाम-पता संबंधित देश को देश सकते हैं? आपका जवाब होगा नहीं, हरगिज नहीं। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने एक टीवी कार्यक्रम में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल को लेकर बड़ा दावा किया है। उन्होंने दावा किया कि दोनों ने ईरान और पाकिस्तान को वहां सक्रिय भारतीय एजेंटों के नाम-पता समेत पूरी जानकारी दे दी थी, जिसका नतीजा हुआ कि वे सारे के सारे एजेंट मारे गए। इन झटकों से भारतीय खुफिया एजेंसियां अभी तक पूरी तरह नहीं उबर पाई हैं। इसके अलावा सिंह ने दावा किया कि 2009 में मिस्र के शर्म अल शेख में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कबूल किया था कि भारत पाकिस्तान के बलूचिस्तान में गड़बड़ी कर रहा है। उन्होंने इसे आजादी के बाद भारत की सबसे भयंकर भूल करार दिया। एक कार्यक्रम में एंकर ने चर्चा के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से (2016 में) पाकिस्तान के बलूचिस्तान का नाम लिया था। इससे पहले शायद भारत सरकार की तरफ से कभी बलूचिस्तान या बलूचों के बारे में बात नहीं की गई थी। इस पर पैनल में शामिल सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है। डॉक्टर मनमोहन सिंह ने शर्म अल शेख में बलूचिस्तान पर बयान दिया था। उन्होंने कहा, ‘मनमोहन सिंह ने शर्म-अल शेख में जो बयान दिया, समस्या तो वहां से शुरू हुई। उन्होंने कहा कि हमारे भी लोग बलूचिस्तान में गड़बड़ कर रहे हैं। वहां से पाकिस्तान को एक मुद्दा मिल गया कि देखिए हमारे ऊपर आप कश्मीर में गड़बड़ी का आरोप लगाते हैं और आप खुद ये बलूचिस्तान में करा रहे हैं। आजादी के बाद इससे बड़ी भयंकर गलती शायद दूसरी नहीं हुई।’

मनमोहन सिंह के शर्म अल शेख वाले बयान का जिक्र करते हुए प्रदीप सिंह ने एक और पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को लेकर भी बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा कि गुजराल साहब ने तो पाकिस्तान को भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च ऐंड ऐनालिसिस विंग ( R&AW ) के सभी एजेंट के नाम और पता कागज पर लिखकर दे दिया और वे सभी मार दिए गए। उन्होंने कहा, ‘गुजराल साहब जब प्राइम मिनिस्टर बने तब उन्होंने R&AW के जितने एजेंट्स थे, हमारे एसेट्स थे उन सभी का पता पाकिस्तान को दे दिया। सबके सब मारे गए।’

सीनियर जर्नलिस्ट के दावे बड़े जरूर हैं मगर सनसनीखेज नहीं। उनके दावों की हकीकत चाहे जो हो लेकिन भारत के इतिहास में ऐसे उदाहरण पहले से मौजूद हैं जब शीर्ष पदों पर बैठे जिम्मेदार लोगों ने ऐसी गलतियां कीं, जिससे भारतीय खुफिया एजेंसियों को बहुत ही तगड़े झटके लगे। पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई तो पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बड़ी मुश्किल से जुटाई गई संवेदनशील सूचना के बारे में पाकिस्तान के ही शासक को बता दिया था। नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान में सक्रिय भारत के सारे एजेंट और एसेट को वहां की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई ने मरवा दिया।

दरअसल, 70 के दशक में पाकिस्तान परमाणु बम बनाने की दिशा में तेजी से काम कर रहा था। इस बात की भनक भारत को लग गई। दरअसल, इस्लामाबाद के नजदीक कहूटा में पाकिस्तान के वैज्ञानिक किसी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। वैज्ञानिक जिस सैलून में अपना बाल कटवाने जाते थे, भारतीय एजेंट ने वहां से कटे बालों को सैंपल के तौर पर चुरा लिया और भारत भेज दिया। यहां बालों की जब लैब में हुई जांच में जो जानकारी आई वो होश उड़ाने वाली थी। बालों में रेडियोएक्टिव रेडिएशन के सबूत मिले। इससे भारत को पता चल गया कि कहूटा में पाकिस्तानी वैज्ञानिक जिस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं वह तो उनकी न्यूक्लियर प्लांट है। फिर क्या था, पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्लांट और उसकी परमाणु योजना के बारे में डीटेल जानकारी के लिए भारत ने वहां अपने खुफिया नेटवर्क को सक्रिय कर दिया।

1977 में रॉ के एजेंट के हाथ कहूटा न्यूक्लियर प्लांट का पूरा का पूरा ब्लू प्रिंट ही लग गया। इस बीच इमर्जेंसी के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हो गईं और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार आ गईं। उधर एजेंट ने कहूटा न्यूक्लियर प्लांट का ब्लूप्रिंट देने के लिए भारत से 10 हजार डॉलर की मांग की। लेकिन ब्लूप्रिंट के लिए पैसा देना तो दूर, मोरारजी देसाई ने तो सीधे पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक जिया-उल-हक को फोन करके बता दिया कि उन्हें सब पता है कि कहूटा में क्या चल रहा है। आप परमाणु बम बना रहे हो। इसके बाद तो हक के कान खड़े हो गए और उसने आईएसआई को भारतीय एजेंटों की पहचान करने और उन्हें खत्म करने के काम पर लगा दिया। भारत के हाथ पाकिस्तानी न्यूक्लियर प्लांट का ब्लूप्रिंट भी नहीं मिला और वहां उसके सारे एसेट्स भी मार दिए गए।

इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल ने तो पाकिस्तान के लिए बनी R&AW की स्पेशल विंग को ही भंग कर दिया। भारतीय एजेंसियों को आदेश दे दिया गया कि वे पाकिस्तान में कोई भी कोवर्ट ऑपरेशन न चलाए। गुजराल के आदेश पर R&AW को पाकिस्तान में अपने पूरे नेटवर्क को खत्म करने के लिए मजबूर होना पड़ा। गुजराल की इस गलती की कीमत भारत ने करगिल युद्ध के तौर पर चुकाई। दो साल बाद ही 1999 में भारत को करगिल में पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ के बारे में पता चला और दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ। पाकिस्तानी सेना लंबे समय से तैयारी कर रही थी और भारतीय इलाकों में घुसकर बंकर वगैरह बना लिए थे। वहां भारी हथियार पहुंचा लिए थे। वह इतने बड़े पैमाने पर तैयारी कर रहा था लेकिन भारत को इसकी भनक तक नहीं लगी। हमें तो करगिल में पाकिस्तान के नापाक मंसूबों के बारे में तब पता चला जब चरवाहों ने जानकारी दी कि पाकिस्तानी सेना भारतीय इलाकों में घुसी हुई है।

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