कहने को तो भारत में मीडिया आजाद है , पर इसने खुद को बेच रखा है । यहाँ जो मीडिया आजाद है, उसकी जली हुई लाश सड़क पर मिलती है । और जो जिंदा हैं, उन्हें जेल की हवा खाने भेज दिया जाता है।
अभी हाल ही में हुई इन जैसी घटनाओं से हमें पता चलता है कि इंडियन मीडिया की हालत कितनी गंभीर बनी हुई है। जिस देश में पीएम को देश की अर्थव्यवस्था के बारे में सवाल पूछने से ज्यादा पीएम आम कैसे खाते हैं, यह सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण हो वहां मीडिया की ऐसी हालत होना जायज है। एक समय था, जब भारतीय इतिहास में इंडियन मीडिया ईमानदारी और सच्चाई के लिए जानी जाती थी । मगर आज हालत यह है कि लोगों को खुद ही पता चल रहा है कि भारतीय मीडिया कितनी ईमानदार और कितना सच्ची है ।
भारतीय मीडिया भले ही आजादी की बात करती हो मगर उसे मजा गुलामी में ही आता है । यह कहना कहीं से भी गलत नहीं होगा की, जिस तरीके से आजकल कुछ लोग मीडिया की छवि को सबके सामने रख रहे हैं, उस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंडियन मीडिया कितने गहरे पानी में है। ठीक से समझे तो मीडिया पूर्ण रूप से स्वतंत्र है। वह चाहे निष्पक्ष पत्रकारिता करें या एक पक्षीय उसे यहां कोई पूछने वाला नहीं है। पर यह बात अलग है कि, वर्तमान समय की मीडिया को आने वाला समय और इतिहास की किस श्रेणी में रखेगा यह एक सवाल बना रायेगा।
फिलहाल तो सब मौज मस्ती में मस्त है, लेकिन एक बात सुनिश्चित है कि मीडिया अपनी एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से अवश्य मुंह मोडे हुए है। और वह है ,समाज के कमजोर वर्ग की आवाज बनाना। ना सिर्फ इतना ही बल्कि उसने कमजोर और शोषित वर्ग को दबाने, कुचलने और शोषण की परिस्थितियों को खूब बढ़ावा दिया है । जो कि काफी चिंताजनक विषय है। मीडिया आज इतनी आजाद है कि, बिहार में एक पत्रकार को मार दिया जाता है। त्रिपुरा कवर करने गई दो महिला पत्रकारों को डिटेन कर लिया जाता है। गौरी लंकेश जैसे एक नामचीन पत्रकार को दिन दहाड़े मार दिया जाता है । और ऐसी बहुत सारे पत्रकार है जिनकी लिस्ट बहुत लंबी है । पर ना तो इनके लिए की चैनल आवाज़ उठती है और ना ही इस पर बात करती है। तो इस हिसाब से अगर बात की जाए हमारी मीडिया के आजादी की तो मीडिया बहुत बेहतर तरीके से आजाद है । यह बताने वाली बात नहीं है कि, जनतंत्र में मीडिया का महत्वपूर्ण स्थान है। मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी तथा चौथा स्तंभ माना जाता है। सांसद ,विधायका कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा हुई गलतियों को वह लोकतंत्र की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान निभाते हुए इन सब की गलतियों को लोगों के सामने रखता है। मीडिया के कारण ही बड़े-बड़े घोटाले उजागर किए जाते हैं। साथ ही लोगों के हितों की और अधिकारों की रक्षा होती है। मगर क्या हो अगर मीडिया अपना यह कार्य छोड़ कर भ्रष्टाचार का रास्ता अपना ले ? जी हां आजकल की मीडिया यही कर रही है।
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स – भारत की बुरी हालत
बता दे की अभी कुछ दिन पहले प्रेस फ्रीडम इंडेक्स या“नी प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में कुल 180 देशों की लिस्ट में भारत को एक 142वा स्थान प्राप्त हुआ , जो कि 2016 में 133व स्थान था। पर साल 2021 आते-आते यह 142 स्थान पर आ गया है। मगर चलिए यह भी एक खुशी की बात है की कम से कम 142 वा स्थान भारत को हासिल हो गया है। क्योंकि जिस हालत में अभी इंडियन मीडिया है, उसके हिसाब से इसे अंतिम स्थान भी प्राप्त नहीं होना चाहिए था। गौरतलब हो कि रिपोर्ट विदाउट बॉर्डर्स नामक गैर सरकारी संगठन द्वारा जारी किए जाने वाला यह सूचकांक विश्व के कुल 180 देशों और क्षेत्रों में मीडिया और उसकी स्वतंत्रता को दर्शाता है । अब जब इंडियन मीडिया की स्वतंत्रता 180 देश में 142 स्थान पर है, तो आप सबके लिए (आम नागरिक) यह एक चिंता का विषय होना चाहिए। क्योंकि यह लगातार धीरे-धीरे कम होता जा रहा है । बीते वर्ष भारत इस सूचकांक में 140वे स्थान पर था। एक रिपोर्ट की माने तो देश में अभी भी लगातार मीडिया की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है । जिसमें पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस हिंसा और अपराधिक समूहों या भ्रष्टाचार स्थानीय अधिकारियों द्वारा उठाए गए विरोध शामिल है। साथ ही यह बात भी सामने आ रही है कि, भारत में जो लोग एक विशेष विचारधारा का समर्थन करते हैं वे अब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी सभी विचारों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं ,जो उनके विचार से मेल नहीं खाती ।
इसके अतिरिक्त देश में उन सभी पत्रकारों के विरुद्ध एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है जो सरकार और राष्ट्र के बीच के अंतर को समझते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं । अभी कुछ दिन पहले ही एक रिपोर्ट में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि भारत में अपराधिक धाराओं को उन लोगों खासकर पत्रकारों के विरोध में प्रयोग किया जा रहा है जो अधिकारियों की आलोचना कर रहे हैं । उदाहरण के लिए बीते दिनों देश में पत्रकारों पर भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 124 ए जो कि राष्ट्रद्रोह कहलाती है का प्रयोग कई मामलों में किया गया था । अब आप बताइए कि जब किसी अधिकारी के विरोध में (अगर वह गलत कर रहा है ) मीडिया विरोध करती है और उसे आम जनता के सामने रखती है तो उस पत्रकार को ही दोषी ठहरा दिया जाता है । ऐसी स्थिति में क्या वह पत्रकार अगली बार दोबारा फिर किसी अधिकारी , नेता, या राजनेता के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी समझेगा। आजक ज्यादातर मीडिया टीआरपी के पीछे भाग रही है । यानी उसे लोगों को सच्चाई दिखाने से कोई मतलब नहीं रह गया है,उसे बस अब पैसे कमाने से मतलब है। मीडिया का काम होता है जनता की आवाज बनाना, जनता के लिए आवाज उठाना और सरकार सरकार तक पहुंचाना । पर अफसोस आजकल सरकार ने मीडिया के उपर जबरदस्त कंट्रोल जमा लिया है, स्पेशली टीवी मीडिया के ऊपर । सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म अभी भी जर्नलिस्टो को एक ऐसी जगह उपलब्ध करवा रहे हैं ,जहां वह खुलकर अपनी बातों को रख सकते हैं।
मीडिया नहीं उठा रही काम के मुद्दे डिबेट शो में –
डिबेट शो एक ऐसी जगह है ,जहां एक्सपर्टस अपनी बातों,विचारो को रखते हैं कि आखिर किसी मुद्दे पर सरकार को क्या हल निकालना होगा। मगर हमारे इंडियन मीडिया के डिबेट शोज पर सिर्फ पाकिस्तान विरोधी, चाइना विरोधी, मोदी भक्त, राम मंदिर इन ही जैसे विषयों पर चर्चा होती रहती हैं । कुछ विषय जिन पर चर्चा होना काफी जरूरी है जैसे कि बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था, हमारी इकोनॉमी, भुखमरी, गरीबी प्रदूषण, स्वच्छता, रेप केसेस, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और डेवलपमेंट इन जैसे विषयों पर शायद ही कभी कोई डिबेट शो किए जाते हो । इन डिबेट शो को देखकर ऐसा लगता है ,जैसे कोई धारावाही यानी कि कोई टीवी सीरियल चल रही हो। अमेरिका और नॉर्वे जैसे देश ऐसे हैं जहां पत्रकार प्रधानमंत्री और बड़े राजनेताओं के सामने सवाल करने से डरते नहीं हैं मगर भारत इसके ठीक विपरीत है। आजकल की मीडिया लोगों को को सच्चाई बताने से अधिक इंफ्लुन्स करने का काम कर रही है।
आखिर क्यों डरती है मीडिया सच्चाई बताने से –
कहने को तो अच्छे दिन आ रहे हैं पर कहां है पता नहीं क्योंकि अच्छे दिन की हालत यह है कि अब इंडियन मीडिया हमें उन चीजों से रूबरू नहीं करवा रही हैं, जो हमारे लिए सही है । वह बस हमें वही चीजें दिखा रही हैं, जो उन्हें लगता है कि उनके टीआरपी को बढ़ाने में मदद कर सकती है । दरअसल हाल ही में एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि इंडियन मीडिया अब टीआरपी की रेस के लिए भाग रही है। भारतीय मीडिया आजकल देश में हो रही लोगों की परेशानियों से रूबरू करवाने की बजाय बाकी सारी बातें लोगों को दिखाती हैं। माना जाए तो भारतीय मीडिया , मीडिया नहीं अब एक ड्रामा के रूप में काम कर रही है । कुछ लोगों के कारण तो भारत की मीडिया को 142 वा स्थान भी मिल गया नहीं तो शायद हम इस लिस्ट में दूर-दूर तक नजर नहीं आते । देश में इतनी समस्या होने के बाद भी यह लोग एक परसेंट भी सही खबर नहीं दिखा पाते हैं। हमारे मीडिया चैनल में आखिर क्यों इस तरह के हालात बने हैं। चलिए आपको बताते हैं की, कैसे पॉलीटिकल पार्टीज मीडिया चैनल का फंडिंग करती है,या उसे चलाती है। और किन हाथों में है यह मीडिया चैनल
नेटवर्क 18 ग्रुप का नाम आप बखूबी जानते होंगे, इसको मुकेश अंबानी चलाते हैं । यानी इसकी फंडिंग मुकेश अंबानी करते हैं । मुकेश अंबानी नरेंद्र मोदी के करीबी मित्र माने जाते हैं , अब यह सोचने वाली बात है कि जब आप इतने बड़े राजनेता के मित्र हो तो उनके खिलाफ बोलना गलत होगा। इसमें दूसरा नाम है ज़ी न्यूज़ ग्रुप और इसके जितने भी न्यूज़ चैनल है । वह सारे सुभाष चंद्रा चलाते हैं । जिन्हें 2016 में बीजेपी ने हरियाणा से राज्यसभा में एमपी नियुक्त किया था। तो जाहिर सी बात है कि उनके न्यूज़ चैनल में या फिर अखबारों में बीजेपी के खिलाफ बोलना अच्छा नहीं माना जाएगा । तीसरे नंबर पर आती है अरनव गोस्वामी के द्वारा चलाई जाने वाली न्यूज़ चैनल जिस का नाम रिपब्लिक भारत है। जिस पर अर्णब गोस्वामी जी चीख चीख कर अपनी बातों को रखते हैं। पर उन्हें यह समझने की जरूरत है कि सिर्फ चीखने और चिल्लाने भर से कोई न्यूज़ चैनल जानकारी नहीं दे सकता । खैर , अरनव के इस चैनल को जुपिटर कैपिटल नामक एक कंपनी ने फंडिंग किया है । जिसके मालिक है राजीव चंद्रशेखर जो बीजेपी के वाइस चेयरमैन है केरला स्टेट से , इस हिसाब से इनका कनेक्शन भी बीजेपी से जुड़ता है । तो जाहिर सी बात है कि एक चैनल के लिए या चैनल के एंकर के लिए ऐसी पार्टी के खिलाफ बोलना थोड़ा मुश्किल जरूर होगा जिसकी फंडिंग वह राजनेता कर रहा हो जिसके पैसे से उसका चैनल चल रहा है ।
बात इंडिया टीवी की करे तो रजत शर्मा की आप की अदालत को आप बखूबी जानते होंगे , इनका पॉलिटिकल कनेक्शन प्रधानमंत्री और अरुण जेटली से था। तो उनके लिए भी ऐसे सवाल करना जो देश के हित में हो और देश के राजनेताओं को मुश्किल में खड़ा कर दे , थोड़ा मुश्किल होगा। साथ ही अरुण जेटली और रजत शर्मा दोनों ने एक ही कॉलेज में पढ़ाई की है, तो दोनों की मित्रता काफी पुरानी है । ऐसे में देश में हो रही समस्याओं को लेकर सवाल करना उनके लिए खतरे से खाली नहीं होगा। प्रधानमंत्री से कोई ऐसा सवाल ना करना जो उनकी छवि खराब करें इस कारण ही आज इंडियन मीडिया को लोग गोदी मीडिया अधिक कह रहे हैं । मीडिया चैनल के बड़े -बड़े अधिकारियों, पत्रकारों को यह समझने की जरूरत है कि , किसी के तलवे चाट लेने भर से उनकी टीआरपी नहीं बढ़ने वाली । उन्हें देश की समस्याओं को ,युवाओं की समस्याओं को ,महिलाओं की समस्याओं को ,अशिक्षा, भुखमरी और अर्थव्यवस्था की समस्याओं को राजनेताओं और प्रधानमंत्री के सामने रखना होगा। ताकि इन पर बातें हो सके और उनका हल निकाला जा सके। वरना वह दिन दूर नहीं जब प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की लिस्ट में हमारा नाम साउथ कोरिया के भी बाद आएगा। आज हमारी इंडियन मीडिया उतनी ही सच्ची और सही है, जितनी यह बातें सही थी कि देश में अच्छे दिन आएंगे, 2000 के नोट में चिप था, ब्लैक मनी वापस लाया जाएगा ,भारत भ्रष्टाचार मुक्त बनेगा ,गंगा प्रदूषण मुक्त बनेगी ।