क्या आपको पता है कि जो बाईदन और जिनपिंग की फोन जंग हुई थी! अमेरिका और चीन, न सिर्फ दो देश बल्कि दो दिशाएं जो कभी एक जैसे नहीं हो सकते। लेकिन कूटनीति और व्यापार के इस युग में अमेरिका और सऊदी अरब भी एक मंच पर नजर आ जाते हैं। तमाम असहमतियों और रिश्तों पर जमी धूल को साफ करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने गुरुवार को फोन पर बात की। सुबह 8:33 बजे शुरू हुई और 10:50 बजे खत्म हुई यह बातचीत वैसी नहीं रही जैसी उम्मीद की जा रही थी।
बाइडन और शी ने आखिरी बार रूस की ओर से यूक्रेन पर हमले के कुछ समय बाद मार्च में बातचीत की थी। दोनों देशों की ओर से जारी बयान से तो यही पता चलता है कि सकारात्मक चर्चा के बजाय 2 घंटे 17 मिनट की फोन पर बातचीत बेहद तनावपूर्ण रही। जाहिर है कि इस दौरान प्रमुख मुद्दा ताइवान रहा। हालांकि इस दौरान बाइडन ने भी कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया लेकिन जिनपिंग की भाषा धमकी भरी रही।
लंबा-चौड़ा बयान
बाइडन और जिनपिंग की बातचीत के बाद दोनों देशों ने लिखित बयान जारी किया। दो घंटे की बातचीत के बारे में चीन ने बेहद विस्तृत तरीके से बताया। उसका बयान काफी लंबा-चौड़ा था जिसमें चीन ने और मजबूती से ताइवान पर दावा किया। वहीं दूसरी ओर अमेरिका की ओर से जारी बयान चीन की तुलना में छोटा था। इस लिखित बयान का 70 फीसदी हिस्सा औपचारिक जानकारी से भरा था। वाइट हाउस ने आखिर में बताया कि बाइडन ने ‘स्पष्ट किया कि ताइवान को लेकर अमेरिकी नीति बदली नहीं है’।
बाइडन ने जिनपिंग से कहा कि ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति में बदलाव नहीं आया है और अमेरिका ताइवान जलक्षेत्र में शांति और स्थिरता के खिलाफ एकपक्षीय प्रयासों का कड़ा विरोध करता है। लेकिन जवाब में जिनपिंग ने उन्हें खूब सुनाया। चीन की ओर से जारी बयान के मुताबिक, जिनपिंग ने बाइडन से कहा कि अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग ताइवान जलडमरूमध्य पीआरसी का है। ‘ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों किनारे चीन के हैं।’जिनपिंग ने कहा कि जो आग से खेलते हैं वे इससे नष्ट हो जाते हैं। उम्मीद है कि अमेरिका इस पर स्पष्ट नजर रखेगा। अमेरिका को एक-चीन सिद्धांत का सम्मान करना चाहिए और इसे अपने बयान और कार्य दोनों में लागू करना चाहिए। रक्षा और विदेश मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि यह नया विस्तारवादी दावा एक चेतावनी है कि शी जिनपिंग सही समय आने पर ताइवान पर हमले की योजना बना सकते हैं।
चीन और अमेरिका के बीच तनाव की हालिया वजह है अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी की संभावित ताइवान यात्रा। अमेरिका में रिपब्लिकन सांसद इसके विरोध में है। पेलोसी की यात्रा न सिर्फ ताइवान के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है बल्कि अमेरिका के लिए भी बेहद अहम है। ताइवान पर दावा करने वाला चीन इस यात्रा का लगातार विरोध कर रहा है। वहीं बाइडन प्रशासन भी उनकी यात्रा को लेकर असमंजस की स्थिति में है। उसे डर है कि कहीं नैंसी पेलोसी का ताइवान जाना आग में घी डालने का काम न कर जाए।
रिस्क के बावजूद, विश्लेषकों का कहना है कि पेलोसी के पीछे हटने में अब बहुत देर हो चुकी है। ताइवान की सूचो यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर फांग-यू चेनो के मुताबिक अगर उनकी यात्रा अब रद्द होती है तो अमेरिका के सहयोगी और दुनियाभर के देशों के बीच यह संदेश जाएगा कि एक लोकतांत्रिक देश एक तानाशाह से डर गया। उन्होंने द वाइस को बताया कि इससे पूरी दुनिया में अमेरिकी नेतृत्व को गहरी चोट पहुंचेगी। पेलोसी के ताइवान जाने को लेकर अमेरिका का फैसला आने वाले समय में और स्पष्ट कर देगा कि गुरुवार की बातचीत में बाइडन और जिनपिंग में से किसका पलड़ा भारी था।अमेरिका में रिपब्लिकन सांसद इसके विरोध में है। पेलोसी की यात्रा न सिर्फ ताइवान के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है बल्कि अमेरिका के लिए भी बेहद अहम है। ताइवान पर दावा करने वाला चीन इस यात्रा का लगातार विरोध कर रहा है। वहीं बाइडन प्रशासन भी उनकी यात्रा को लेकर असमंजस की स्थिति में है। उसे डर है कि कहीं नैंसी पेलोसी का ताइवान जाना आग में घी डालने का काम न कर जाए।