यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हवाई जहाज पर बिजली गिरने का असर नहीं होता है! बिहार में हाल ही में आसमानी बिजली गिरने से कम से कम 15 लोगों की मौत हो गई है। कहीं पशुपालक तो कहीं किसान ने जान गंवाई है। बिजली की चपेट में आने से आरा में 3, जहानाबाद में 4, रोहतास में 3, औरंगाबाद में 4 और गया में 1 व्यक्ति की जान चली गई। मरने वालों में बच्चे और महिलाएं भी हैं। बिहार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में बिजली गिरने की घटनाएं हाल के दिनों में बढ़ी हैं। बीते जून से लेकर जुलाई के दौरान देश भर में बिजली की चपेट में आने से कम से 150 से ज्यादा लोगों की मौत की रिपोर्ट दर्ज की गई हैं। भारी बारिश के दौरान आसमानी बिजली आफत बनकर टूटती है, जिसमें फसलें और पेड़-पौधे नष्ट हो जाते हैं। वहीं, कई इंसानों की जान तक चली जाती है। आइए- समझते हैं कि क्या है आसमानी बिजली, यह कितनी घातक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, एक आसमानी बिजली में औसतन 10,000 वोल्ट जितना करंट होता है। वहीं, एक बिजली का तापमान 54 हजार डिग्री फॉरेनहाइट तक पहुंच सकता है। यानी यह हमारे सूर्य के सतह के तापमान से 5 गुना ज्यादा गर्म हो सकता है। आमतौर पर आसमानी बिजली की रफ्तार गोली से 30 हजार गुना तेज होती है। ब्रिटेन की वेबसाइट मेट ऑफिस के अनुसार, दुनिया में हर साल 140 करोड़ बिजली आसमान से गिरती है। यानी 1 दिन में औसतन 30 लाख बिजली धरती पर गिरती है। बिजली गिरने की रफ्तार इतनी तेज होती है कि यह चंद्रमा पर 55 मिनट में पहुंच सकती है। यानी दिल्ली से देहरादून तक जाने में इसे महज 1.5 सेकेंड ही लगेंगे।
लंदन स्थित मौसम विभाग की एक स्टडी के अनुसार, दुनियाभर में हेलीकॉप्टरों की वजह से भी काफी बिजली गिरती है। दरअसल, आसमान में उड़ते वक्त हेलीकॉप्टर निगेटिव चार्जेज को सोखते हैं। ऐसे में अगर ये हेलीकॉप्टर ऐसे इलाकों से गुजरते हैं जहां बादल पॉजिटिव रूप से चार्ज हों तो वहां पर आसमानी बिजली गिरने की आशंका बढ़ जाती है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सना रहमान के अनुसार, आकाशीय बिजली को अक्सर साइलेंट किलर भी कहा जाता है। क्योंकि इससे हर साल होने वाली मौतें लू, बाढ़, भूस्खलन और चक्रवात से भी ज्यादा हैं। इसके बाद भी इस बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती और न ही यह अखबारों या न्यूज चैनलों की सुर्खियां बन पाती है। चूंकि, बिजली गिरने का समय और जगह अलग-अलग होती है, ऐसे में शायद इसे प्राकृतिक आपदा भी नहीं माना जाता है।
हमारी धरती के वायुमंडल में जब विद्युत आवेश डिस्चार्ज होता है तो उससे पैदा हुई गड़गड़ाहट यानी थंडरिंग को गाज या आसमानी बिजली कहते हैं। दुनिया में हर साल 140 करोड़ आसमानी बिजली पैदा होती है। इसे सबसे पहले 1872 में वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने पहचाना था, जिन्होंने पहली बार बिजली चमकने की सटीक वजह बताई थी। उन्होंने बताया कि आकाश में बादल छाने के दौरान उसमें मौजूद पानी की छोटी-छोटी बूंदों में मौजूद कण हवा की रगड़ से चार्ज हो जाते हैं। कुछ बादलों पर पॉजिटिव तो कुछ पर निगेटिव चार्ज आ जाता है। जब ये दोनों तरह के चार्ज वाले बादल मिलते हैं तो उनके मिलने से लाखों वोल्ट की बिजली पैदा होती है। एक बिजली में 10 हजार वोल्ट जितना करंट पैदा होता है।
आसमानी बिजली से एक बार 1.60 लाख ब्रेड सेंकी जा सकती है। अगर ग्लोबल वॉर्मिंग पर लगाम समय रहते नहीं लगाई गई तो साल 2100 में आज के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा बिजली गिरने की आशंका रह सकती है। आसमान में उड़ने वाले प्लेन पर भी बिजली गिरती है, मगर इन पर इसका असर नहीं होता है। दरअसल, 1963 के बाद हवाई जहाजों पर बिजली गिरने से कोई हादसा नहीं हुआ है, क्योंकि अब प्लेन को खास तरीके से डिजाइन किया जाता है, जिससे बिजली इसे नहीं छूती है। ज्यादातर प्लेन एल्युमिनियम के बने होते हैं जो बिजली को प्लेन के बाहरी हिस्से पर चारों ओर फैला देते हैं और अंदर नहीं जाने देते हैं। प्लेन की ईंधन टंकी को भी बिजली के खतरनाक प्रवाह से गुजार दिया जाता है, ताकि किसी तरह की विस्फोट की आशंका न रहे।
छत्तीसगढ़ शासन के लाइटनिंग मैनेजमेंट मैगजीन के अनुसार, बिजली गिरने की सबसे ज्यादा आशंका दोपहर में होती है। यह इंसान के सिर, गले और कंधे पर सबसे ज्यादा असर करती है। इसमें एक्सरे होती है। आसमान से गिरने वाली बिजली करीब 5 किलोमीटर तक लंबी हो सकती है। बिजली की रफ्तार ध्वनि से कई गुना तेज होती है। यही वजह है कि हमें गिरती हुई बिजली पहले दिखाई देती है और उसकी गड़गड़ाहट बाद में सुनाई देती है। अगर बारिश न हो रही हो और बादल भी न हो, तो भी आप बिजली से सुरक्षित नहीं है, क्योंकि बिजली तूफान के सेंटर से 3 मील दूर तक गिर सकती है।