Wednesday, February 5, 2025
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क्या भारत और रूस की दोस्ती से अमेरिका तिलमिला गया है?

भारत और रूस की दोस्ती से अमेरिका तिलमिला चुका है! पांच अगस्त 2019, भारत को एकाकार करने वाला दिन। जब अमित शाह ने धारा 370 और 35A हटाने का ऐलान कर दिया। जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेटस खत्म हो गया। स्पेशल स्टेटस से कश्मीर को भेद-भाव के अलावा कुछ मिल नहीं रहा था। इस स्टेटस के हटने से ये मुख्य धारा में शामिल हो गया। तीन साल बाद जम्मू-कश्मीर में अब चुनाव की तैयारी चल रही है। इस बीच अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिलकर एक नापाक हरकत की है। पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर हमारा अभिन्न हिस्सा है। 22 फरवरी 1994 को हमने संसद से जो प्रस्ताव पारित किया था उसे भी अमेरिका भूल गया। इस प्रस्ताव के तहत पाकिस्तान से हमने दो टूक कहा कि वो जल्दी से जल्दी कब्जे वाले कश्मीर को खाली कर दे। ये बात सही है कि हम अपनी तरफ से पुतिन की तरह अटैक करने से परहेज करते आए हैं। चाहते हैं शिमला और लाहौर घोषणापत्र के मुताबिक बातचीत से बात बन जाए। अमेरिका हमारे स्टैंड से वाकिफ भी है। इसके बावजूद इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी राजदूत डेविड ब्लोम ने पीओके का दौरा किया। यही नहीं उन्होंने अपने बयान में भारत के इस हिस्से को AJK यानी आजाद जम्मू-कश्मीर बताया है। हमारे विदेश मंत्रालय ने इस पर सख्त ऐतराज जताया है लेकिन हमें ये समझना होगा कि अमेरिकी की मंशा क्या है?

दरअसल रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले में भारत पर दबाव की रणनीति काम न आने से जो बाइडन बौखला चुके हैं। अमेरिका को लग रहा है कि अचानक छह महीनों में भारत खुद ही वैश्विक सामरिक समीकरण के केंद्र में आ गया है। इसलिए जो बाइडन उसी रास्ते पर चल पड़े हैं जिसे रिचर्ड निक्सन और उनके सलाहकार हेनरी किसिंजर ने आगे बढ़ाया था। इन दोनों ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय भारत के खिलाफ सातवां बेड़ा भेजकर पाकिस्तान प्रेम का अदभुत नजारा पेश किया था। ये बात और है कि रूस ने इसे फेल कर दिया। इसके बाद जिमी कार्टर (1977-81), रोनाल्ड रीगन (1981-89), सीनियर जॉर्ज बुश (1989-93) ने आगे बढ़ाया। बिल क्लिंटन (1993-2001) ने संतुलन बनाया। जूनियर बुश (2001-09) ने भी जिससे फायदा उसकी मदद वाली नीति अपनाई। जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर अलकायदा का हमला हुआ तो दिमाग की बत्ती खुली। पता चला कि आतंकवाद की आग उन्हें भी जला सकती है। अफगानिस्तान पर अटैक किया लेकिन पाकिस्तान की जरूरत थी तो उसे सहलाते रहे। ये जानते हुए कि अफगानिस्तान में तालेबान को पाकिस्तान ने ही ऑक्सीजन दिया। मजबूरी थी क्योंकि पाकिस्तान में सैन्य अड्डा बनाए बिना अफगानिस्तान को निशाना बनाना मुश्किल था। बाद में बुश को अक्ल आई और आतंकवाद पर भारत कि चिंता से सहमत हुए। 18 जुलाई, 2005 के दिन भारत-अमेरिका ने असैनिक परमाणु सहयोग संधि समझौता किया। ये दोनों देशों के रिश्तों में मील का पत्थर साबित हुआ जिसे बराक ओबामा औऱ डोनाल्ड ट्रंप से आगे बढ़ाया। फिर जो बाइडन के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भी चीन को जद में रखने के लिए भारत के साथ स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप की जरूरत दोहराते रहे। लेकिन अचानक पिछले एक महीने में क्या बदल गया? समझना मुश्किल नहीं है। कश्मीर के अलावा तीन और ऐसे पॉइंट्स हैं जिन्हें समझना जरूरी है।

अमेरिका ने पहले तो पाकिस्तान को अत्याधुनिक फाइटर जेट F-16 प्लेन दिए। ये बात 1981 की है जब रूस और अमेरिका के बीच शीत युद्ध चरम पर था। हालांकि निशाना भारत ही था। कम से कम हमारे नजरिए से क्योंकि हम मिग, सुखोई रूस से ले रहे थे। अब जब पाकिस्तान एयरफोर्स की फ्लीट पुरानी हो गई तो इसके रख रखाव के लिए अमेरिका ने 4.5 करोड़ डॉलर देने का ऐलान कर दिया है। इसके उलट डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को मिलने वाली मिलिट्री सहायता बंद करने की धमकी दी थी। 30 करोड़ डॉलर की कटौती का ऐलान चार सितंबर, 2018 को किया गया। फिर बाइडन प्रशासन ऐसा क्यों कर रहा है? सवाल पूछने पर ब्लिंकन ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ इसका इस्तेमाल होगा। जवाब में हमारे विदेश मंत्री ने कहा – किसे मूर्ख बना रहे हो। और हमारे पास तो इसके सबूत हैं। अमेरिका से समझौते के तहत पाकिस्तान एफ-16 का इस्तेमाल आतंकविरोधी ऑपरेशन के अलावा कहीं और नहीं कर सकता। फिर बालाकोट एयरस्ट्राइक के अगले दिन का मंजर याद कीजिए। जब हमारे मिग बाइसॉन पर सवार विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तानी एफ-16 को चुनौती दी। हमने तब भी सख्त ऐतराज जताया और अमेरिका से पूछा था कि पाक एयरफोर्स एफ-16 कैसे इस्तेमाल कर सकता है।

पिछले दिनों अमेरिका ने मुंबई में रजिस्टर्ड कंपनी तिबालाजी पेट्रोकेमिकल प्राइवेट लिमिटेड पर बैन लगाने का ऐलान कर दिया। इस पर तेहरान से पेट्रोलियम प्रॉडक्टस लेकर दक्षिण और दक्षिणपूर्वी एशिया में बेचने का आरोप लगाया गया है। हाल के कुछ वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है जब अमेरिका ने किसी भारतीय कंपनी को निशाना बनाया हो। वो भी तब जब हमें CAATSA Countering American Adversaries Through Sanctions Act से छूट मिली हुई है। और यूक्रेन युद्ध के बाद ईरान के रास्ते भारत ने रूस से तेल भी मंगाया है। ईरान ने भारत के तेल देने की पेशकश भी की है। 2019 में भारत ने ईरान से तेल लेना बंद कर दिया था। रूस से गलबहियां अमेरिका को रास नहीं आ रही है। भारतीय कंपनी पर बैन के बारे में जब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से पूछा गया तो उनका जवाब था – ये नया मामला है। हम अध्ययन कर रहे हैं। कुछ समय बाद जवाब देंगे।

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