गौतम अडानी शायद अब कर्जे से परेशान है! बड़े बुजुर्गों की यह सीख आपने जरूर सुनी होगी कि बेटा उधार मत लेना चाहे रोटी सूखी खानी पड़े। लेकिन कारोबारी दुनिया में इसका उल्टा ही होता है। बड़े कारोबारी घराने कर्ज की नींव पर अपना व्यापार खड़ा करते हैं। कंपनी चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, कारोबारी विस्तार के लिए उसे कर्ज लेना ही पड़ता है। लेकिन अगर एसेट्स और लायबिलिटी में बैलेंस नहीं रहा तो नैया डूबने में भी समय नहीं लगता। कर्ज हो लेकिन एक लिमिट तक। कोरोबारी दुनिया में कर्ज की बात अडानी ग्रुप का नाम लिये बिना संभव नहीं है। अडानी का कर्ज चर्चा में इसलिए है, क्योंकि पैसा जुटाने के लिए यह ग्रुप आने वाले समय में 5 आईपीओ लॉन्च करने वाला है। अडानी ग्रुप पर बार-बार यह आरोप लगते रहे हैं कि वह अपने कारोबारी विस्तार के लिए बेतहाशा कर्ज ले रहा है। भले ही गौतम अडानी इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हों, लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते। 31 मार्च 2022 को पूरे हुए वित्त वर्ष में अडानी ग्रुप का कुल कर्ज 40 फीसदी बढ़कर 2.2 लाख करोड़ रुपये हो गया। फिच ग्रुप के क्रेडिट साइट्स ने यह आंकड़ा जारी किया था। क्रेडिट साइट्स ने अडानी ग्रुप को ओवर लीवरेज्ड बताकर कर्ज पर चिंता जताई थी।
गौतम अडानी और अडानी ग्रुप के अधिकारी कहते हैं कि किसी ने भी उनके सामने कर्ज को लेकर चिंता नहीं जताई है। गौतम अडानी ने खुद कहा है कि कोई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट बनाने में 30-40 फीसदी अपना पैसा और 60-70 फीसदी कर्ज लगता है। वे कहते हैं कि कर्ज के लिए अडानी ग्रुप की साख भारत सरकार के बराबर है। यानी सॉवरेन रेटिंग है। अब सवाल यह है कि जब कर्ज को लेकर चिंता नहीं है, तो शेयर क्यों गिरवी रखे जा रहे हैं। भारी भरकम एफपीओ और उसके बाद 5 कंपनियों के आईपीओ लाने की क्या जरूरत है? क्या गौतम अडानी बाजार से पैसा जुटाकर कर्ज का बोझ कम करना चाहते हैं? सितंबर 2022 में अडानी ग्रुप द्वारा शेयर गिरवी रखे जाने की खबर सामने आई थी। अडानी ग्रुप ने अपनी दो सीमेंट कंपनियों के बड़ी संख्या में शेयर गिरवी रखे थे। ग्रुप ने एसीसी और अंबुजा सीमेंट के 10.36 खरब रुपये कीमत के शेयर गिरवी रखे थे। किसी भी कंपनी की बैलेंसशीट में शेयर प्लेज होने की जानकारी काफी नेगेटिव मानी जाती है। फिर भी अडानी ग्रुप ने शेयर गिरवी रखकर पैसा जुटाया। इससे पहले ब्लूमबर्ग के डेटा से रिपोर्ट सामने आई थी कि एशिया में दूसरा सबसे खराब डेट टू इक्विटी रेश्यो अडानी ग्रीन का रहा। डेट टू इक्विटी रेश्यो किसी भी कंपनी के फंडामेंटल्स को जांचने का एक अहम टूल होता है। इसमें कंपनी की कुल देनदारियों की शेयरधारकों की इक्विटी से तुलना की जाती है।
अब अडानी ग्रुप के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर जुगशिंदर सिंह ने कहा है कि अडानी ग्रुप अपनी और अधिक कंपनियों को अलग करने की योजना बना रहा है। उन्होंने कहा कि अगले तीन से पांच साल में कम से कम 5 यूनिट्स मार्केट में जाने को तैयार होंगी। अडानी ग्रुप इंडस्ट्रीज, अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग्स, अडानी रोड ट्रांसपोर्ट, अडानी कॉनेक्स के साथ ही ग्रुप की मेटल और माइनिंग यूनिट अलग कंपनियां बनेंगी। इसका सीधा सा मतलब है कि 2026 और 2028 के बीच अडानी ग्रुप की कम से कम 5 कंपनियों के आईपीओ मार्केट में आएंगे।
कुछ ही दिन में अडानी ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज बाजार से बड़ी रकम जुटाने जा रही है। 27 जनवरी को अडानी एंटरप्राइजेज का एफपीओ मार्केट में आ रहा है। कंपनियां आईपीओ के बाद एफपीओ के जरिए अतिरिक्त शेयर जारी कर बाजार से पैसा जुटाती है। इस एफपीओ से अडानी ग्रुप 20 हजार करोड़ रुपये जुटाएगा।उन्होंने कहा कि अगले तीन से पांच साल में कम से कम 5 यूनिट्स मार्केट में जाने को तैयार होंगी। अडानी ग्रुप इंडस्ट्रीज, अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग्स, अडानी रोड ट्रांसपोर्ट, अडानी कॉनेक्स के साथ ही ग्रुप की मेटल और माइनिंग यूनिट अलग कंपनियां बनेंगी। इसका सीधा सा मतलब है कि 2026 और 2028 के बीच अडानी ग्रुप की कम से कम 5 कंपनियों के आईपीओ मार्केट में आएंगे। यह एफपीओ इतना बड़ा है कि अगर पूरा भरा तो भारत का दूसरा सबसे बड़ा एफपीओ होगा।
गौतम अडानी बंदरगाहों और कोयला खनन पर केंद्रित अपने कारोबार का तेजी से विस्तार कर रहे हैं। वे एयरपोर्ट्स, डेटा सेंटर्स और सीमेंट के साथ-साथ ग्रीन एनर्जी पर भी ध्यान दे रहे हैं। इस कारोबारी विस्तार के लिए पैसों की जरूरत है, जिसके लिए कर्ज लिया जा रहा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अडानी ग्रुप की आक्रामक विस्तार योजनाओं से कहीं ग्रुप की कंपनियां कर्ज चले दब ना जाएं।